चांदपुर विधानसभा-23 से भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान विधायक श्रीमती कमलेश सैनी पर यह आरोप लगाया जाता है कि अपने कार्यकाल के दौरान वह अक्सर यह कहती सुनाई देती थीं कि “भैया, मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है”.
कमलेश सैनी अक्सर शिकायत करती थीं
हालांकि हम ऐसे किसी भी आरोप की पुष्टि नहीं करते हैं। लेकिन आम जनमानस में आजकल यह चर्चा का विषय बना हुआ है। लोगों का कहना है कि श्रीमति सैनी अक्सर यह शिकायत किया करती थीं कि प्रशासनिक अधिकारी उनके आदेशों को नहीं सुनते हैं।
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जब कमलेश सैनी धरना देना पड़ा
इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो प्रत्यक्ष रूप से तब दिखाई दिया था जब श्रीमती सैनी को अपने ही एक मामले में एसपी ऑफिस के सामने धरना देने को मजबूर होना पड़ा था। उस मामले की गूंज दिल्ली से लेकर लखनऊ तक सुनाई पड़ी थी।
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पिछले 5 वर्षों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं
हालांकि एक कड़वा सत्य यह भी है कि कमलेश सैनी एक अकेली ऐसी विधायक नहीं हैं जिनकी शासन-प्रशासन में कोई सुनवाई नहीं हुई। बल्कि पिछले लगभग 5 वर्षों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें कई बार प्रशासनिक स्तर के अधिकारियों द्वारा सत्ता पक्ष के विधायक और मंत्रियों तक के आदेशों को ताक पर रख दिया गया।
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कमलेश सैनी बेहद सरल स्वभाव की महिला हैं
श्रीमती सैनी एक बेहद सरल और विनम्र महिला हैं। और पूरे विधानसभा क्षेत्र में उनकी छवि एक शांत और विनम्र नेता की बनी हुई है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि श्रीमती कमलेश सैनी को जनता ने उनके विनम्र और सरल स्वभाव के कारण ही ऐतिहासिक जीत दिलाई थी। परन्तु बाद में उनकी वही सादगी और विनम्रता आम जनता के लिए दिक्कतों का कारण भी बन गई। क्योंकि जिस सादगी और विनम्रता से श्रीमती कमलेश सैनी प्रशासनिक अधिकारियों से बात करती थीं। उसे प्रशासनिक अधिकारियों ने उनकी कमजोरी समझ लिया था।
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भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी दोषी है
इसके लिए अकेले श्रीमती सैनी को दोषी ठहराना कदापि उचित नहीं होगा। इसके लिए काफी हद तक भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी दोषी है। जिसने प्रदेश में लालफीताशाही को बढ़ावा दिया। दूसरे शब्दों में कहें तो पिछले 5 वर्षों में प्रदेश में जनप्रतिनिधियों को कोई विशेष महत्व नहीं दिया गया। और लालफीताशाही पूरी तरह से हावी रही। और इसका खामियाजा श्रीमती कमलेश सैनी जैसे सरल और विनम्र जनप्रतिनिधियों को भुगतना पड़ा।
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तो टिकट की लाईन में क्यों हैं
परन्तु अब यक्ष प्रश्न यह है कि जब प्रदेश में डबल इंजन की सरकार के रहते हुए भी श्रीमती सैनी जैसे विधायकों की सुनवाई नहीं हुई तो फिर वही लोग 2022 के लिए टिकट की लाइन में खड़े क्यों दिखाई दे रहे हैं। क्या 2022 के बाद आने वाली भाजपा सरकार में जनप्रतिनिधियों की सुनवाई होगी? क्या किसी कमलेश सैनी को यह कहते हुए नहीं सुना जाएगा कि “भैया, मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है”. फिलहाल इन सवालों के जवाब तो भविष्य के गर्भ में जुड़े हैं।