हिंदुत्व को लेकर एक राष्ट्रीय चैनल पर हुई डिबेट के दौरान एक सवाल के जवाब में स्वामी दीपांकर ने कहा कि “हिन्दू शरीर है और हिंदुत्व उसकी आत्मा है। आप शरीर से आत्मा को कैसे अलग कर सकते हैं।”
हिंदुत्व के बिना हिन्दू धर्म का अस्तित्व ही नहीं बचता
स्वामी दीपांकर ने यह कितना सार्थक प्रश्न रखा है। आप शरीर से आत्मा को अलग नहीं कर सकते हैं। क्योंकि बिना आत्मा के शरीर केवल “शव” बन जाता है। निर्जीव हो जाता है। हिन्दू और हिंदुत्व को मिलाकर ही हिन्दू धर्म का अस्तित्व बनता है। यदि इसमें से हिंदुत्व को अलग कर दिया जाए तो हिन्दू धर्म का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
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हिंदुत्व की खोज 1923 में हुई
विनायक दामोदर सावरकर ने 1923 में “हिंदुत्व” शब्द की खोज की थी और हिंदुत्व का विचार दिया था। सावरकर ने कहा कि
“वह हिंदू हैं जो भारत को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि मानते हों।”
सावरकर
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हिंदुत्व भारतीयों की जीवन शैली है
11 दिसंबर 1995 में जस्टिस जे. एस. वर्मा की एक बेंच ने फैसला दिया था कि “हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों की जीवन शैली की ओर इंगित करता है। हिंदुत्व को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता।”
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व के इस्तेमाल को ‘रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल ऐक्ट’ की धारा-123 के तहत करप्ट प्रैक्टिस नहीं माना था। 1995 के इस फैसले में हिंदुत्व को जीवन शैली बताया गया था और कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने से किसी उम्मीदवार पर प्रतिकूल असर नहीं होता। 1995 के फैसले पर सवाल उठने के बाद यह मामला फिर जनवरी 2014 में पांच जजों की बेंच के सामने आया, जिसे 7 जजों की बेंच को रेफर कर दिया गया था।
हिंदुत्व पर मोहन भागवत के विचार
हिंदुत्व के मसले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने कहा कि
“हिंदू ही एक ऐसा शब्द है जो भारत को दुनिया के सामने सही तरीके से पेश करता है। भले ही देश में कई धर्म हों, लेकिन हर व्यक्ति एक शब्द से जुड़ा है जो हिंदू है। यह शब्द ही देश की संस्कृति को दुनिया के सामने पेश करता है।”
-मोहन भागवत
मैं हिन्दू हूँ यह कैसे भूल सकता हूँ
पुणे में भाषण देते हुए दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदुत्व के बारे कहा था,
“मैं हिन्दू हूं, ये मैं कैसे भूल सकता हूं? किसी को भूलना भी नहीं चाहिए। मेरा हिंदुत्व सीमित नहीं हैं। संकुचित नहीं हैं। मेरा हिन्दुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे बंद नहीं कर सकता है। मेरा हिन्दुत्व अंतरजातीय, अंतरप्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता है। हिंदुत्व सचमुच बहुत विशाल है।”
-अटल बिहारी वाजपेयी
हिंदुत्व ISI और बोको हरम जैसा है
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता सलमान ख़ुर्शीद ने अपनी नई किताब ‘सनराइज़ ओवर अयोध्या’ में एक जगह लिखा है-
“भारत के साधु-संत सदियों से जिस सनातन धर्म और मूल हिन्दुत्व की बात करते आए हैं, आज उसे कट्टर हिन्दुत्व के ज़रिए दरकिनार किया जा रहा है। आज हिंदुत्व का एक ऐसा राजनीतिक संस्करण खड़ा किया जा रहा है, जो इस्लामी जिहादी संगठनों आईएसआईएस और बोको हराम जैसा है।”
हिन्दू धर्म और हिंदुत्व में अंतर है
राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक प्रशिक्षण शिविर को वर्चुअली संबोधित करते हुए कहा, “हिंदू धर्म और हिन्दुत्व में फर्क़ है. अगर फर्क़ नहीं होता तो नाम एक होता. हिंदू को हिंदुत्व की ज़रूरत नहीं होती?“
उन्होंने आगे कहा, “क्या हिंदू धर्म किसी सिख या मुस्लिम को मारने का नाम है? लेकिन हिंदुत्व है. क्या हिंदू धर्म अख़लाक को मारने के बारे में है? किस किताब में ये लिखा है? मैंने उपनिषद पढ़ा है उसमें नहीं लिखा. किस हिंदू धर्म की किताब में लिखा है कि किसी बेगुनाह को मार सकते हैं? मैंने नहीं पढ़ा है. लेकिन हिन्दुत्व में मैं इसे देख सकता हूँ।
मैं किसी प्रकार के हिंदुत्व में विश्वास नहीं रखता
राहुल गांधी ने मीडिया से हुई एक वार्ता में कहा,
“मैं हिन्दुत्व के किसी भी प्रकार में विश्वास नहीं रखता, चाहे वह नरम हिंदुत्व हो या कट्टर हिंदुत्व। हिंदू हैं, बस हो गया..जो धर्म की राजनीति करते हैं, वे हिंदुत्व की बात करते हैं। हमें धर्म की राजनीति नहीं करनी है। हिंदू होना और धर्म की राजनीति करना, दो अलग-अलग चीजें हैं।”
-राहुल गांधी
यह राजनीतिक लामबंदी का एक साधन है
कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता शशि थरूर का कहना है कि “हिन्दुत्व का हिंदू धर्म के साथ विश्वास या धर्म के रूप में कुछ भी मेल नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान का एक बैज और राजनीतिक लामबंदी का एक साधन है।”
यही सांसद और लेखक शशि थरूर एक और बयान में कहते हैं- “ध्रुवीकरण और एकरूपता की संघीवादी तलाश दरअसल हिंदू धर्म को वह बनाने की ललक है जो वह है ही नहीं. उसे वह स्वरूप देने की ललक, जिससे वह कथित ‘आक्रांताओं’ के धर्मों की तरह दिखाई दे, संहिता और रूढ़ सिद्धांतों से बंधा धर्म.”
क्या कहते हैं प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश
प्रोफ़ेसर ज्ञान प्रकाश कहते हैं, “हम हिन्दुत्व और हिंदू धर्म को एक नहीं मानते हैं. ये दोनों अलग-अलग हैं. हिंदुत्व एक राजनीतिक आंदोलन है जबकि हिंदू धर्म इससे बिलकुल अलग है. हिन्दुत्व के समर्थक हमेशा ये कहने की कोशिश करते हैं कि हिंदुत्व ही हिंदू धर्म है. लेकिन वास्तव में ये बिलकुल अलग-अलग हैं. हम ये मानते हैं कि हम हिंदुत्व के ख़तरे को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं. हम देख रहे हैं कि पिछले छह-सात सालों या उससे पहले से हिंदुस्तान में हिंसा हुई है. वैश्विक स्तर पर भी ये लोग ये कहने की कोशिश करते हैं कि हिन्दुत्व ही हिंदू धर्म है.”
वहीं प्रोफ़ेसर ज्ञान प्रकाश के इस तर्क को ख़ारिज करते हुए विजय पटेल कहते हैं, "ये लोग मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुए कुछ अपराधों की वजह से समूचे हिंदू समाज को एक रंग में रंगना चाहते हैं लेकिन इस तरह के अपराध तो हिंदुओं के ख़िलाफ़ भी हुए हैं. ऐसे में कुछ असंगठित अपराधों की वजह से समूचे हिंदू समाज को बदनाम नहीं किया जा सकता है. भारत एक सहिष्णु राष्ट्र है।"
मिथकों की समसामयिक प्रासंगिकता पर निरंतर लिखने वाले देवदत्त पटनायक कहते हैं-
हिन्दुत्व का तो पूरा वास्ता ही पीड़ा और आहत भावना से है. वह हिंदुओं का अपमान और हिंदू सभ्यता की पराजय को ”कभी नहीं भूलेगा” जो आक्रांताओं के हाथों हजार साल की ”गुलामी” से मिली है, पहले मुसलमानों, फिर ईसाई मिशनरियों और अंत में अंग्रेजों से।
-देवदत्त पटनायक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के.एन. गोविंदाचार्य कहते हैं-
हिन्दुत्व को लेकर विरोधाभासी विचार हैं. एक, यह सार्वभौमिकता का संदेश देता है. दूसरा भाव है कि यह एक उन्माद का नाम है जो मुसलमानों को निशाना बनाता है. ऐसे विरोधाभासी विचार अकारण नहीं हैं. राजनीति में धुएं के लिए आग का होना जरूरी नहीं।
-के.एन. गोविंदाचार्य
डॉ. विनय सहस्रबुद्धे कहते हैं-
दिक्कत यह है कि हिंदुस्तान, खासकर राजनैतिक संदर्भों में अमूमन हिंदू धर्म को खारिज करके और हिंदू समाज को ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ में बांटकर सियासी ताकत हासिल की जाती रही है. उस हिंदू को अच्छा कहा जाता है, जो वह घनघोर बुरे बर्ताव के बावजूद विनम्र और दब्बू बना रहता है. मगर जब वह अपने मूल्यों के लिए लड़ता-झगड़ता है, तब वह ‘बुरा’ हो जाता है यानी ‘हिन्दुत्व‘ वाला या ‘दूसरों के प्रति असहिष्णु’ हिंदू हो जाता है.
-विनय सहस्त्रबुद्धे
मरियम-वेबस्टर के विश्व धर्मों के विश्वकोश के अनुसार
हिन्दुत्व “भारतीय सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और धार्मिक पहचान” की अवधारणा है। “भौगोलिक रूप से आधारित धार्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान को जोड़ता है: एक सच्चा ‘भारतीय’ वह है जो इस ‘हिंदू-नेस’ का हिस्सा है।
नफरत से प्रेरित विचारधारा है
डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’ नाम से हुई एक वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में हिंदुत्व को नफ़रत से प्रेरित विचारधारा बताया गया और इस पर सवाल खड़े किए गए.
10-12 सितंबर के बीच ऑनलाइन हुए इस सम्मेलन को अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के 53 विश्वविद्यालयों के 70 से अधिक केंद्रों, इंस्टीट्यूट्स, कार्यक्रमों और अकादमिक विभागों का समर्थन प्राप्त था.
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अमेरिका की हार्वर्ड, स्टेनफर्ड, प्रिंस्टन, कोलंबिया, बर्कले, यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो, द यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिलवीनिया और रटजर्स जैसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों का सहयोग और समर्थन प्राप्त था.
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यह इस देश की विडम्बना है
कुल मिलाकर कुछ देशविरोधी और विदेशी ताकतों के द्वारा हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व बदनाम करने का षड्यंत्र एक लंबे समय से चल रहा है। हालांकि इन हिन्दू विरोधी ताकतों को कभी कोई सफलता हासिल नहीं हुई। बावजूद इसके हिंदी, हिन्दू और हिंदुत्व का विरोध लगातार जारी है। विडम्बना यह है कि इस सबमें हमारे ही देश की कुछ तथाकथित “धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक शक्तियों” की भी सहभागिता है।