भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक कविता के कुछ अंश हैं- हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा। लगता है अटल जी की इन पंक्तियों का अरविंद पप्पू साहब पर बहुत गहरा असर हुआ है।
शायद इसीलिए मौहम्मद गौरी की तरह बार-बार लगातार असफलताओं का मुहं देखने के बावजूद भी अरविंद कुमार उर्फ पप्पू चेयरमैन ने हार नहीं मानी है।
पप्पू एक लंबे समय से टिकट की जद्दोजहद में हैं
अरविंद कुमार उर्फ पप्पू चेयरमैन एक लंबे समय से भाजपा के टिकट के लिए जद्दोजहद करने में लगे हैं। 2017 के चुनावों में भी उन्होंने काफ़ी कोशिशें की थीं। लेकिन उनके हाथ नाकामयाबी आई थी।
पप्पू ने 2007 में लड़ा था पहला चुनाव
अरविंद पप्पू ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2007 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा था। उस समय उन्हें कुल 17, 831 (10.89%)मत प्राप्त हुए थे। और उन्हें चौथा स्थान प्राप्त हुआ था।
2012 में महान दल के उम्मीदवार बने
इसके बाद उन्होंने 2012 में अपना दूसरा विधानसभा चुनाव महान दल के उम्मीदवार के रूप में लड़ा था। जिसमें उन्हें कुल 31,495 (16.47%) मत प्राप्त हुए थे। इस बार भी उन्हें चौथा स्थान प्राप्त हुआ।
नगरनिकाय चुनाव में मिला था भाजपा का टिकट
2017 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चांदपुर नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था। यहां उन्हें लगभग 9,000 मत प्राप्त हुए थे। और उन्हें तीसरा स्थान प्राप्त हुआ था।
अपने ही समाज से मिल रही कड़ी चुनौतियां
वर्तमान में वह एक बार फिर से किस्मत आजमा रहे हैं। लेकिन इस बार उन्हें अपने ही समाज के कुछ लोगों की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल, चुनावों में पप्पू साहब की एक के बाद एक लगातार विफलताओं के बाद, उनके ही समाज में कुछ नौजवानों ने उनके नेतृत्व क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाने आरम्भ कर दिए हैं। कुछ युवानेताओं ने तो अपने उत्तराधिकार का दावा ठोंकने की भी ठान ली है। और वही सब लोग पप्पू साहब के लिए परेशानियों का सबब बने हुए हैं।
किस्मत के सितारे बदलने वाले हैं
वैसे लगता है कि शायद इस बार अरविंद पप्पू की किस्मत के सितारे बदलने वाले हैं। कहावत में है कि 12 साल बाद तो कूड़ी का भाग्य भी जाग जाता है।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में।
वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले।।
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