कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीष तिवारी ने हाल ही में लिखी अपनी पुस्तक “10 फ्लैश पॉइंट्स : 20 ईयर्स – नेशनल सिक्योरिटी सिचुएशन दैट इम्पैक्टेड इंडिया” (10 Flash Points: 20 Years – National Security Situation that Impacted India) में लिखा है कि- “कई बार संयम कमजोरी की निशानी होती है और भारत को 26/11 हमले के बाद कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए थी.”
मनीष तिवारी : संयम ताक़त की पहचान नहीं है
पुस्तक में उन्होंने लिखा, “अगर किसी देश (पाकिस्तान) को निर्दोष लोगों के कत्लेआम का कोई खेद नहीं है तो संयम ताकत की पहचान नहीं है, बल्कि कमजोरी की निशानी है. ऐसे मौके आते हैं जब शब्दों से ज्यादा कार्रवाई दिखनी चाहिए. 26/11 एक ऐसा ही मौका था.”
मनीष तिवारी ने मुम्बई आतंकी हमले को भारत का 9/11 बताया
तिवारी ने मुंबई आतंकी हमले को क्रूर हमला करार देते हुए इसे ‘भारत का 9/11’ बताया. उन्होंने कहा, ‘इसलिए मेरा विचार है कि भारत सरकार को भारत के 9/11 के बाद के दिनों में एक तेज गति की प्रतिक्रिया के साथ कार्रवाई करनी चाहिए थी.’
हमले में 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोग मारे गए थे
उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादी समुद्री मार्ग से मुंबई के विभिन्न इलाकों में घुस गए थे। और उन्होंने अलग-अलग स्थानों पर गोलीबारी शुरू कर दी थी। उस हमले में 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोग मारे गए थे। इस आतंकवादी हमले में एकमात्र जिंदा बचे अजमल कसाब को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसे चार साल बाद 21 नवंबर, 2012 को फांसी दे दी गई थी।
मनीष तिवारी कांग्रेस के G-23 ग्रुप में शामिल हैं
गौरतलब है कि मनीष तिवारी कॉंग्रेस के एक वरिष्ठ नेता हैं और यूपीए के कार्यकाल में वह कई महत्वपूर्ण पदों पर भी रह चुके हैं। 2012-14 में वह सूचना और प्रसारण मंत्री भी रह चुके हैं। हालांकि आजकल वह तिवारी कांग्रेस के उस ‘जी 23’ समूह में शामिल हैं, जिसने पिछले साल सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में व्यापक संगठनात्मक बदलाव और जमीन पर सक्रिय अध्यक्ष की मांग की थी.
क्या मनीष तिवारी ने गांधीवाद पर हमला बोला है
कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने जो कुछ भी कहा और लिखा है। क्या यह कांग्रेस की उस गांधीवादी विचारधारा पर सीधा हमला है। जो कहती है कि “अगर कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, तो तुम्हें अपना दूसरा गाल भी उसके आगे कर देना चाहिए।”
गांधीवाद की आड़ में हमेशा से ही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति की
कांग्रेस ने गांधीवाद की आड़ में हमेशा से ही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति का जो घिनौना खेल खेला है। कहीं न कहीं तिवारी ने शायद उसी पर अपना विरोध दर्ज कराने की कोशिश की है। कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने यह हमला सिर्फ कांग्रेस के गांधीवाद पर ही नहीं बोला। बल्कि यह मणिशंकर अय्यर, सैफुद्दीन सोज और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे तमाम ‘पाकिस्तान परस्त’ नेताओं के मुहं पर करारा तमाचा है। जो न केवल हमेशा से पाकिस्तान की वकालत करते रहे हैं। बल्कि कर्नल बाजवा और इमरान खान के गले भी मिलते रहे हैं।
अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति ने नुकसान पहुंचाया
चाहे वह 1947 का मामला हो अथवा कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ हो। कांग्रेस की गांधीवादी विचारधारा और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति ने इस देश को हमेशा ही नुकसान पहुंचाया है। कांग्रेस ने वोटबैंक की राजनीति के चलते हमेशा “आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता” जैसे शब्दजाल बुनकर सच्चाई को बाहर आने से रोके रखा। कांग्रेस ने देश विरोधी ताकतों के समक्ष घुटने टेक दिए और उनकी शर्मनाक हरकतों पर हमेशा ख़ामोशी अख्तियार कर ली।
ख़ामोशी भी कभी-कभी अपराध बन जाती है
लेकिन ऐसा करने से पहले शायद कांग्रेस यह भूल गई कि ख़ामोशी भी कभी-कभी अपराध बन जाती है। 26/11 की दर्दनाक घटना पर कांग्रेस की “शर्मनाक खामोशी” पर कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने जो सवालिया निशान लगाये हैं। उन सवालों के जवाब का इस देश और देश के करोड़ों देशवासियों को हमेशा इंतज़ार रहेगा। आज नहीं तो कल कांग्रेस और सोनिया परिवार को इन सवालों के जवाब देने ही होंगे।
हक़ीक़त में ख़ामोशी भी कभी चुप नहीं रहती।
कभी तुम गौर से सुनना बहुत किस्से सुनाती है।।
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