भारत में जलियांवाला कांड और जनरल डायर को कभी नहीं भुलाया जा सकता। स्वतंत्र भारत में भी जलियांवाला बाग की तरह ही नरसंहार हुए, औऱ इस बार “जनरल डायर” कोई ब्रिटिश नहीं था बल्कि भारतीय नेता थे।
भारत में अंग्रेजी शासन में निहत्थे लोगों पर गोलियां
पंजाब के अमृतसर में एक जगह का नाम है जलियांवाला बाग. 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के शुभ मौके पर यहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होकर स्वतंत्रता सेनानी सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन कर रहे थे.
इसी बीच अंग्रेज ब्रिगेडियर जनरल डायर ने बच्चों महिलाओं और पुरुष जो वहां बैठकर अपना विरोध जता रहे थे उनपर गोली चलाने का आदेश अंग्रेजी सैनिकों को दिया. अंग्रेजों ने केवल 10 मिनट के भीतर करीब 1650 राउंड गोलियां चलाई थी. इन गोलियां से बचने के लिए लोग बाग में बने कुएं में कूद गए थे. थोड़ी ही देर में यह कुआ लाशों से भर गया.
भारत में जनरल डायर की यह करनी अंग्रेजी हुकूमत को ले डूबी
इस भीषण नरसंहार ने स्वतंत्रता आंदोलन की आग में घी का काम किया और उसके बाद अंग्रेजों की सियासत के दिन लद गए। जनरल डायर के गुनाहों की सज़ा पूरी अंग्रेजी हुकूमत को भुगतनी पड़ी और भारत से अंग्रेजी हुकूमत का दौर समाप्त हो गया।
स्वतंत्र भारत का पहला जनरल डायर
7 नवंबर 1966 को श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार के समय संसद के सामने एक बहुत बड़ा मंच बनाया गया था, सुबह 8:00 बजे से ही नगर के विभिन्न भागों से गौभक्तों के समूह इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए संसद पर पहुंचने शुरू हो गए थे, मंच पर दो-ढाई सौ नेता विराजमान थे इनमें चारों शंकराचार्य, हिंदू ह्रदय सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज, रामचंद्र वीर जी के साथ-साथ आर्य-समाज, गौ सेवा अभियान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, नामधारी समाज तथा दर्जनों संगठनों के नेता सम्मिलित थे और भाषणों का दौर शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा था।
पत्रकार मनमोहन शर्मा बताते हैं कि वह वक्ताओं के भाषण को रिपोर्ट करने हेतु संसद भवन के प्रेस रूम में बैठे हुए थे कि अचानक लोकसभा सुरक्षा दल के एक प्रमुख अधिकारी घबराए हुए प्रेस रूम में पहुंचे और उन्होंने यह सूचना दी कि गौभक्तोपर और साधु संतों पर पुलिस गोलियां चल रही है।
चारों ओर गोभक्तों की लाशें बिखरी पड़ी थीं
मनमोहन शर्मा ने रुमाल पानी से भिगोकर आँखों व् नाक पर बांधा और संसद भवन परिसर की ओर निकल गए, वहां उन्होंने पाया कि जहां तक उनकी दृष्टि जा रही थी वहां चारों तरफ केवल लाशें ही लाशें बिखरी हुई थी, चारों और खून बह रहा था जिससे सड़क पूरी तरह से लाल हो गई थी, सड़क पर भारी संख्या में लोगों के जूते चप्पल बिखरे हुए थे, संसद भवन से लेकर पटेल चौक तक शव बिखरे हुए थे, घायल जहाँ तहाँ जमीन पर पड़े कराह रहे थे और पानी मांग रहे थे। (मनमोहन शर्मा द्वारा प्रकाशित लेख के अनुसार)
स्वामी करपात्री महाराज ने जनरल डायर बनी इंदिरा गांधी दिया श्राप
बताया जाता है कि इस भीषण हत्याकांड से व्यथित होकर स्वामी करपात्री महाराज ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को श्राप दिया था। गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ में इस घटना के बारे में छपा था। पत्रिका में करपात्री महाराज के हवाले से इंदिरा गांधी के लिए छपा था- मुझे इस बात का दुख नहीं कि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या कराई, बल्कि तूने गोहत्या करने वालों को छूट देकर पाप किया है। यह माफी के लायक नहीं है। गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा।
कौन थे स्वामी करपात्री महाराज
स्वामी करपात्री महाराज ज्योतिरमठ के शंकराचार्य ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य थे और वाराणसी स्थित धर्म संघ के संस्थापक थे और सनातन दर्शनशास्त्र संस्थान अद्वैता वेदांत में शिक्षक भी थे, 1948 में उन्होंने “संमार्ग” नामक समाचार पत्र आरंभ किया था, तथा 1948 में ही उन्होंने एक पारंपरिक हिंदू राजनीतिक पार्टी “ राम राज्य परिषद”का गठन किया था और हिंदू कोड बिल के भेदभाव पूर्ण नियमों के विरुद्ध उन्होंने एक बहुत बड़ा जन-आंदोलन भी किया था इसके अतिरिक्त में गौ-हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने हेतु भी कार्य करते थे।
स्वतंत्रत भारत का दूसरा जनरल डायर
अक्टूबर 30, 1990- यही वो दिन है जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाकर एक और जलियांवाला बाग कांड दोहराया था। इसके बाद लोगों ने उन्हें ‘मौलाना मुलायम’,
‘मुल्ला मुलायम’ जैसे तमगों से नवाजा था।
यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता
तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या के बारे में बयान दिया था कि “वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता।” लेकिन 30 अक्टूबर 1990 को कोठारी भाइयों ने गुम्बद के ऊपर भगवा ध्वज फहराकर मुलायम सिंह को सीधी चुनौती दी। 30 अक्टूबर तक क़रीब 1 लाख लोग वहाँ पहुँच चुके थे, जिसमें 20,000 साधु-संत ही थे। सरयू नदी के पुल पर जब कारसेवक जमा हुआ, तब पुलिस ने गोली चलाई।
अयोध्या के मंदिर और सड़कें निर्दोषों के खून से सन गई थीं
हेमंत शर्मा लिखते हैं कि इस गोलीकांड के बाद अयोध्या की सड़कें, छावनियाँ और मंदिर खून से सन गए थे। सुरक्षा बलों ने अंधाधुंध फायरिंग की थी। जब कार सेवक सड़कों पर बैठ कर रामधुन गए रहे थे, तब उन पर गोलियाँ चलवाई गईं। जब वो जन्मस्थान परिसर के पास पहुँचे भी नहीं थी, तब भी उन पर गोलियाँ चलीं।
ईश्वर के यहां देर है परन्तु अंधेर नहीं
आज गांधी परिवार और मुलायम परिवार सत्ताविहीन हो चुके हैं। इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या हुई, उनके दोनों पुत्र राजीव गांधी और संजय गांधी भयंकर दुर्घटनाओं में मारे गए। जबकि राहुल गांधी केवल मज़ाक का विषय बनकर रह गए हैं।
उधर मुलायम परिवार में भीतरी कलह रुकने का नाम नहीं ले रही। बेटे ने “अब्बाजान” को जबरन गद्दी से उतार दिया। चचाजान अपनी ढफली,अपना राग अलाप रहे हैं। मुलायम सिंह यादव आज अपनों के बीच रहते हुए भी बहादुर शाह ज़फ़र की तरह एकांतवास काट रहे हैं। पूरा यादव परिवार 3-13 हो चुका है।
सही मायने में बहुत जल्द ही यह देश “कांग्रेस मुक्त” और उत्तर प्रदेश “सपा मुक्त” हो जाएगा। ईश्वर के यहाँ देर हैं, परन्तु अंधेर नहीं है।