भारत के लोकतंत्र के लिए इससे बड़ी विडम्बना और शर्मनाक क्या हो सकता है कि लोकतंत्र के मंदिर (संसद) में बैठने वाला एक सांसद एक निर्दोष और निर-अपराध की हत्या को सार्वजनिक रूप से उचित ठहराए और उसके हत्यारों को प्रोत्साहित करते हुए उनकी पीठ थपथपाए। क्या शफीकुर्रहमान बर्क जैसे जिन्नावादी लोगों को नासूर नहीं कहा जायेगा।
शफीकुर्रहमान बर्क ने बाबर की हत्या को सही ठहराया
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में भाजपा की जीत का जश्न मनाने वाले मुस्लिम युवक बाबर की हत्या को समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने सही ठहराया। शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि
“मुसलमान नहीं चाहते कि भाजपा का समर्थन किया जाए। उन्होंने कहा कि भाजपा में मुसलमानों के साथ गलत हो रहा है।”
-शफीकुर्रहमान बर्क
सपा सांसद से जब पूछा गया कि क्या बाबर ने लड्डू बांटकर गलत किया था? इस पर शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि, “हां, वह गलत कर रहा था।”
यहाँ प्रश्न यह बनता है कि क्या लोकतंत्र में किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी इच्छा से अपने मत का प्रयोग कर सके। क्या मिठाई बांटकर अपनी खुशी को ज़ाहिर करने वाले बाबर को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिये थी।
शफीकुर्रहमान बर्क हिजाब से महिलाओं को नियंत्रित करना चाहते हैं
सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने अभी हाल ही में मीडिया को दिए अपने एक बयान में कहा कि
“इस्लाम कहता है कि जब बच्ची बड़ी होनी लगे, जवान होने लगे तो उसे हिजाब में रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिजाब इसलिए भी जरूरी है कि बच्चियां कंट्रोल में रहे जिससे हालात भी संभले रहेंगे।”
-शफीकुर्रहमान बर्क
शफीकुर्रहमान बर्क की हिज़ाब पर तालिबानी सोच
सपा सांसद का यह बयान उनकी तालिबानी और रूढ़िवादी विचारधारा का स्पष्ट उदाहरण है। दरअसल शफीकुर्रहमान बर्क जैसे लोग महिलाओं की स्वतंत्रता के घोर विरोधी हैं। यह लोग अभी भी मुगलकाल में ही जी रहे हैं। पुरुष प्रधान मानसिकता और पूर्वाग्रह से ग्रसित बर्क जैसे लोग महिलाओं को केवल अपने पैर की जूती समझते हैं। इनके लिये महिला केवल भोग की वस्तु है और बच्चे बनाने की मशीन।
अखण्ड रामायण की अज़ान से तुलना
दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए लाउडस्पीकर के मुद्दे पर शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा, “अजान 3-4 मिनट के अंदर खत्म होती है, इसपर किसी को क्या ऐतराज हो रहा है। जबकि अखंड रामायण कई घंटे होता है तो उसको नहीं कहा जा रहा है कि (ध्वनि) प्रदूषण हो रहा है। लेकिन जो अजान 3-4 मिनट में खत्म हो जाती है उससे ध्वनि प्रदूषण की बात कर रहे हैं, तो ये नफरत की पॉलिसी है।”
बर्क का यह कट्टरपंथी बयान बेतुका और बेहद आपत्तिजनक है। अखण्ड रामायण का पवित्र स्थान है और रामायण भारतीय संस्कृति, सभ्यता और परम्परा का हिस्सा है। अखण्ड रामायण का पाठ केवल विशेष समय और काल में एक निश्चित समय के लिये होता है। जबकि अज़ान प्रतिदिन 5 समय होती है। अगर प्रतिदिन 3-4 मिनट के लिए 5 बार अजान पढ़ी जाती है तो एक दिन में 20 मिनट का ध्वनि प्रदूषण होता है। लेकिन यह बात सपा सांसद की समझ से परे है। बर्क जैसे पूर्वाग्रह से ग्रसित लोगों की मानसिकता केवल कुतर्कों को ही समझती है, तर्क से इनका दूर तक कोई वास्ता नहीं है।
तालीम से ज़्यादा शादी को अहमियत देते हैं
एएनआई से बात करते हुए सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा था कि
“यह गरीब देश है। यहां हर कोई यही चाहता है कि हमारी बेटी की जल्दी शादी हो जाए और वो अपने घर चले जाए। जहां तक तालीम की बात है वो घर पर भी होती है और ससुराल में भी हो सकती है।”
-शफीकुर्रहमान बर्क
बेटियों को किताब नहीं हिजाब
शफीकुर्रहमान बर्क जैसी कट्टरपंथी और बीमार मानसिकता के लोग बेटियों के पास किताब नहीं बल्कि हिजाब देखना चाहते हैं। बाल विवाह जैसी कुरीतियों को प्रोत्साहन देने वाले यह रूढ़िवादी लोग, कतई नहीं चाहते कि हमारी बेटियां पढ़ें और बढ़ें। जबकि यहां उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी पढ़ें बेटियां, बढ़ें बेटियां के नारे लगाती रही है। बर्क जैसे लोग ही बेटियों की शिक्षा की सबसे बड़ी रुकावट हैं।
तालिबान समर्थक है बर्क
बर्क ने अफगानिस्तान में तालिबान पर कब्जे की तुलना भारत में ब्रिटिश राज से कर दी थी. उन्होंने कहा था, हिंदुस्तान में जब अंग्रेजों का शासन था और उन्हें हटाने के लिए हमने संघर्ष किया, ठीक उसी तरह तालिबान ने भी अपने देश को आजाद किया. तालिबान ने रूस, अमेरिका जैसे ताकतवर मुल्कों को अपने देश में ठहरने नहीं दिया.
इस नासूर का ईलाज बहुत जरूरी है
सच्चाई तो यह है कि इस देश में शफीकुर्रहमान बर्क जैसे लोगों की कट्टरपंथी और रूढ़िवादी तालिबान मानसिकता इस देश के स्वस्थ लोकतंत्र, संविधान और एकता-अखण्डता के लिए नासूर बन गई है। जिसका जल्द से जल्द ईलाज करना बहुत जरूरी है, अन्यथा इसका ज़हर आने वाली पीढ़ियों की नसों में बहुत तेजी के साथ फैलने लगेगा।
क्या शफीकुर्रहमान बर्क़ जैसे लोग भारत में तालिबानी विचारधारा को पुष्पित-पल्लवित कर रहे हैं
धर्मनिरपेक्षता का मतलब सरकार को किसी धर्म या धार्मिक मामलो से मतलब नहीं।धर्म व्यक्ति एवं पन्थो एवं उसके मतावलम्बियो का आन्तरिक मामला है।जिसका प्रचार प्रसार पालन करने ना करने के लिए उस धर्म के मतावलम्बी स्वतंत्र हैं।पर्शनल लाॅ बोर्ड , हज भवन, हजसब्सिडी, मजारों पर चादर चढाना और इफ्तारी कराना सरकार का काम नहीं है।अल्पसंख्यक आयोग, बक्फ बोर्ड, कब्रगाहो का बाऊण्ड्री कराना सरकार का काम नहीं ।हिन्दु मन्दिरों का धन लेना ।सनातन धर्म के मान्यताओ , परंपराओं मे सुधार या मानवता या समानता की स्थापना की कोशिश न तो सरकार न ही न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र का विषय है।सरकार को और सांसदो को धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा समझने चाहिए।यह गुढ तत्व दर्शन पर आधारित चीजे हैं जिसके विषय धर्माचार्यों द्वारा निर्धारित होते हैं ।जो धर्म के पूर्ण जानकार होते हैं ।राजनीतिक व्यक्ति एवं न्यायपालिका को सिर्फ न्याय व्यवस्था के उल्लंघन संबंधित या विवादित मामलो को जो उनके सामने पेश हो धर्माचार्यों की सहमति के आधार पर निर्णय लेने का अधिकार है। राजसत्ता धर्मसत्ता से ऊपर नहीं किन्तु अगर कोई धर्म संविधान के दायरे के बाहर जाकर अधर्म अमानवीयता असहिष्णुता को धर्म आस्था मानकर किसी धर्म पर प्रहार करे किसी की धार्मिक स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र के लिए खतरा बने ।कानून को अपने मन मुताबिक हाथ मे लेने की कोशिश करे तो वह अधर्म है और उस अधर्ममय वाद को नष्ट करना धर्म है।समाज , राजसत्ता एवं न्यायपालिका इससे नही निपटाती तो वह अधर्म और अन्याय के राह पर है और नागरिक सुरक्षा को खतरे मे डालना चाहती है। सरकार का परम कर्तव्य है कि वैश्विक स्तर पर व्याप्त ऐसी समस्या का हल ढुंढने के लिए विश्व जनमत को इसके लिए तैयार करे।संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्तराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एवं संयुक्तराष्ट्र के अन्तराष्ट्रीय अदालत मे अपील दायर करे।विश्व व्यापी बहस छिडवावे।कबीलाई युग का अन्त हो चुका है।विश्व शान्ति सहिष्णुता एवं मानवाधिकारो एवं धार्मिक स्वतंत्रता की यह लडाई लडी जानी चाहिए ।शुद्ध सनातन धर्म संस्कृति की अपनी व्यवस्था है ।इसमे वर्णव्यवस्था समाहित है।जिसमे गुण प्रकृति स्वभाव के अनुरूप अधिकार और कर्तव्य निर्धारित हैं ।आज भी भारत की बडी जनसंख्या इस मत के आधार पर चल रही है।यह व्यवस्था उसे पुस्तैनी रोजगार देकर बेरोजगारी को समाप्त करके ।धर्ममय जीवन जी सकने हेतु रोजगार का भी सृजन करता है।जिसकी अर्थव्यवस्था काफी सुरक्षित है ।वैश्विक अर्थ व्यवस्था की मन्दी और मुद्रास्फीति और अर्थ तंत्र को ध्वस्त होने पर भी भारत को बचा लेगी। सरकार सबको रोजगार यानि नौकरी नही दे सकती।नये व्यवसाय करने पर सीखने एवं अकुशलात पूर्ण प्रबंधन से पूंजी डुबने की संभावना अधिक होती है।बैंको मे एन पी ए का कारण यही है। अतः बेरोजगारी दूर करने हेतु एवं लघु कुटिर उद्योगो को पुन: उसीरूप मे जीवित करने के प्रयास किये जाने चाहिए ।जिसमे सनातन धर्म की सुरक्षा एवं तनाव मुक्त जीवन मिल सके जो भक्ति और मुक्ति के लिए परमावश्यक है।मानव जीवन का परम पुरुषार्थ भक्ति और ज्ञानप्राप्ति ही है।कर्तव्य कर्म ही धर्म है ।कर्म बंधन से मुक्ति एवं कर्तापन के अहंकार से रहित होने एवं साक्षी भाव मे आने के लिए स्वाभावज कर्तव्य कर्म करना ही भक्ति है।मुक्ति का साधन है।जीवन क्षणभंगुर है।यह दृष्य जगत मिथ्या है ।एक भुलभुलैया है।चौरासी लाख योनियो मे से भटकते हुए मानव जीवन के मुक्ति का द्वार मनुष्य जीवन ही है।माया मोह मे फंसे जीव को ईसाईयत के भौतिकवादी चंकाचौध की कामना एवं समृद्धि मे फंसने की जरूरत नहीं लेकिन इसका मतलब यह भी नही की ईमानदारी से धन को बढाने के प्रयास बन्द किये जाने चाहिए ।विद्या ददाति विनयम् ।विनयाद्याति पात्रताम्।पात्रतवाम् धनमाप्नोति।धनात्धर्म: ततःसुखम्।प्रभाकर चौबे चिंतक ब्राह्मण नेता ।