अभी कुछ दशक पहले तक भारत के मौलवियों में यह बहस छिड़ी हुई थी कि लाउडस्पीकर पर अज़ान देना इस्लामी है या गैर इस्लामी।
लगभग हर मस्जिद में लगे हैं लाउडस्पीकर
आज भारत के लाखों मस्जिदों में शायद ही ऐसी कोई मस्जिद हो जहां लाउडस्पीकर का इस्तेमाल न हो रहा हो।
रमजान के महीने में तो कई मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर तरावीह (एक ख़ास नमाज़) और नमाज़ें भी प्रसारित की जाती हैं. सुबह तीन बजे से ही लाउडस्पीकरों से रोज़ेदारों को पूरी ताकत से जगाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
सऊदी अरब में लाउडस्पीकर पर लगा था बैन
इस्लाम की शुरुआत सऊदी अरब से हुई थी। उसी सऊदी अरब के इस्लामिक मामलों के मंत्री डॉक्टर अब्दुल लतीफ़ बिन अब्दुल्ला अज़ीज़ अल-शेख ने अपने एक आदेश में लिखा, “मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर का प्रयोग सिर्फ़ धर्मावलंबियों को नमाज़ के लिए बुलाने (अज़ान के लिए) और इक़ामत (नमाज़ के लिए लोगों को दूसरी बार पुकारने) के लिए ही किया जाए और उसकी आवाज़ स्पीकर की अधिकतम आवाज़ के एक तिहाई से ज़्यादा ना हो.”
उन्होंने यह भी लिखा कि “इस आदेश को ना मानने वालों के ख़िलाफ़ प्रशासन की ओर से कड़ी कार्रवाई की जाएगी.”
सऊदी अरब में नींद ख़राब होने की हुई थी शिकायत
अपने आदेश के बाबत उन्होंने बताया था कि “उन्हें ऐसी भी शिकायतें मिलीं, जिनमें कुछ अभिभावकों ने लिखा कि लाउडस्पीकर की तेज़ आवाज़ से उनके बच्चों की नींद ख़राब होती है.”
इस्लामिक शरीयत में भी है मनाही
इस्लामिक मामलों के मंत्रालय ने इस आदेश के पीछे शरियत की दलील देते हुए कहा कि “सऊदी प्रशासन का यह आदेश पैगंबर-ए- इस्लाम हजरत मोहम्मद की हिदायतों पर आधारित है जिन्होंने कहा कि
“हर इंसान चुपचाप अपने रब को पुकार रहा है. इसलिए किसी दूसरे को परेशान नहीं करना चाहिए और ना ही पाठ में या प्रार्थना में दूसरे की आवाज़ पर आवाज़ उठानी चाहिए.”
यह कुरान शरीफ का भी अपमान है
यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि इस्लाम धर्म को मानने वालों के अनुसार, अज़ान और इक़ामत का मक़सद लोगों को यह बताना होता है कि इमाम अपने स्थान पर बैठ चुके हैं और नमाज़ बस शुरू होने वाली है. उधर सऊदी प्रशासन ने अपने आदेश में तर्क दिया है कि
“इमाम नमाज़ शुरू करने वाले हैं, इसका पता मस्जिद में मौजूद लोगों को चलना चाहिए, ना कि पड़ोस के घरों में रहने वाले लोगों को. यह बल्कि क़ुरान शरीफ़ का अपमान है कि आप उसे लाउडस्पीकर पर चलाएँ और कोई उसे सुने ना या सुनना ना चाहे.”
–सऊदी प्रशासन
नमाज़ पढ़ने वालों को अज़ान की जरूरत नहीं
इस्लामिक मामलों के मंत्री डॉक्टर अब्दुल लतीफ़ बिन अब्दुल्ला अज़ीज़ अल-शेख ने सरकारी टीवी पर दिखाए गए एक बयान में कहा,
“जिन लोगों को नमाज़ पढ़नी है, वो वैसे भी अज़ान (इमाम की अपील) का इंतज़ार नहीं करते.”
–सऊदी प्रशासन
चैन की नींद लेना नागरिकों का मूल अधिकार
संविधान की धारा 21 के तहत चैन की नींद सोना नागरिकों के अधिकारों के दायरे में आता है।
इसी अधिकार को दृष्टांगत करते हुए इसके मद्देनजर रात दस बजे से सुबह छह बजे तक लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल पर पांबदी लगा दी गई थी।
माननीय हाईकोर्ट ने भी जताई थी कड़ी आपत्ति
कुछ समय पहले माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी राज्य में ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण में नाकामी को लेकर कड़ी नाराजगी जताई थी और राज्य सरकार से पूछा था कि क्या प्रदेश के सभी धार्मिक स्थलों, मस्जिदों, मंदिरों, गुरुद्वारों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगे लाउडस्पीकर संबंधित अधिकारियों से इजाजत लेने के बाद लगाये गये हैं?
केरल में भी लाउडस्पीकर पर लगा दिया था बैन
भारत में केरल राज्य से खबर आई थी कि मुस्लिम बाहुल मल्लपुरम में कुछ मस्जिदों ने अज़ान के लिए अपनी मर्जी से लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल बंद कर दिया था ताकि स्थानीय लोगों, खासकर गैर-मुसलमानों को दिक्कत न हो।
रूढ़िवादी नहीं चाहते कोई सुधार
लेकिन कुछ रूढ़िवादी और कट्टरपंथी और उनके हितैषी दल मस्जिदों से लाउडस्पीकर उतारने की मांग का विरोध कर रहे हैं, और सोशल मीडिया पर इसके ख़िलाफ़ अभियान चला रहे हैं। ये लोग कह रहे हैं कि रेस्तरां, कैफ़े और बाज़ारों में बजने वाले तेज़ आवाज़ संगीत पर भी फिर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। इससे संबंधित हैशटैग सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं. ठीक ऐसा ही विरोध सऊदी अरब में भी हुआ था। लेकिन सऊदी प्रशासन ने इन कट्टरपंथियों की एक नहीं सुनी थी।
कश्मीरी मस्जिदों से हुआ था ऐलान
19 जनवरी 1990 की रात को कश्मीर की मस्जिदों से लाउडस्पीकरों पर ऐलान हो रहा था कि “काफिरों को मारो, हमें कश्मीर चाहिए पंडित महिलाओं के साथ न कि पंडित पुरुषों के साथ, यहां सिर्फ़ निजामे मुस्तफ़ा चलेगा।”
मस्जिदों के लाउडस्पीकरों पर साफ़-साफ़ सुनाई दे रहा था – या तो इस्लाम अपनाओ, या कश्मीर छोड़ जाओ अन्यथा मर जाओ। इसके बाद जो वहशत, दरिंदगी और वासना का नँगा नाच हुआ वह अब किसी से छुपा हुआ नहीं है।
प्रेम और सौहार्द का संदेश दिया जाना चाहिए
किसी भी धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर लगाने का केवल और केवल एक ही कारण होता है, और वह है आध्यात्म, शांति, मानवता और प्रेम का संदेश ज्यादा से ज़्यादा दूर तक जाए। लेकिन कश्मीरी मस्जिदों से घृणा, वैमनस्यता और मानवता को खण्ड-खण्ड करने वाले सन्देश बहुत ही वहशियाना अंदाज़ में बयान किये गए।
हालांकि यह जरूरी नहीं है कि जिस प्रकार के सन्देश कश्मीरी मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से प्रसारित किए गए। ठीक वैसे ही नफ़रत भरे सन्देश भारत के अन्य राज्यों की मस्जिदों से भी प्रसारित किए जाएंगे। लेकिन ऐसा न होने की कोई ख़ास वजह भी नहीं है। इंसान भले ही बदल जाए लेकिन उसकी फ़ितरत कभी नहीं बदलती।
अगर किसी को आपत्ति है तो लाउडस्पीकर बन्द हों
हमारा मानना है कि यदि धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर से आम नागरिकों को तकलीफ पहुंच रही है तो उसे हटा देना एक मानवीय और धार्मिक कर्तव्य है। इसे जानबूझकर राजनीतिक मुद्दा बनाने अथवा धार्मिक हठधर्मिता से जोड़ना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
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