श्री रामायण में प्रभु श्री लक्ष्मण ने माता सीता को यह समझाया कि आप लक्ष्मण रेखा को मत लांघना, परन्तु जब महाराज रावण साधु का वेश बनाकर आये, उन्होंने भिक्षा मांगी और कहा कि वह भिक्षा तभी लेंगे जब माता सीता उस रेखा को पार करेंगी जिसे श्री लक्ष्मण ने खींचा था। माता सीता ने साधु के वेश में आये उस रावण को नहीं पहचाना और लक्ष्मण रेखा को लांघ दिया, उसके बाद जो कुछ हुआ वह सभी को मालूम है।
यहाँ यह समझना परम आवश्यक है कि माता सीता के हरण के लिए केवल रावण ही उत्तरदायी नहीं था, अपितु उसके लिए स्वयं माता सीता, प्रभु श्री राम, श्री लक्ष्मण और महाराज रावण के मामा मारीच भी उत्तरदायी हैं।
चूंकि यदि मामा मारीच ने रावण का कहना मानकर हिरन का भेष न बनाया होता तो सीता जी उसके छद्म वेश पर मोहित न होतीं, यदि श्रीराम ने माता सीता की हठ को स्वीकार न किया होता और वह मृग रूपी मारीच के पीछे न भागे होते तो रावण सम्भवतः सीता के हरण का दुस्साहस न करता। यदि श्री लक्ष्मण मारीच द्वारा निकाली गई “हे राम” की छद्म वाणी को पहचान लिए होते तो भी माता सीता की रक्षा हो जाती। और स्वयं माता सीता ने हठ न की होती अथवा लक्ष्मण रेखा को न लांघा होता तो भी सीता जी का हरण न हुआ होता।
आज इस देश में ठीक वैसे ही कई रावण भेष बदलकर घूम रहे हैं, जो साधु का छद्दम वेश बनाकर मंदिरों में माथा टेकते और हे राम-हे राम करते घूम रहे हैं, यह वही शैतान हैं जो कल तक श्रीराम को काल्पनिक बता रहे थे, जिन्होंने श्रीरामभक्तों पर गोलियां चलवाईं, जिन्होंने श्रीरामलला को कई वर्षों तक टेंट में रखा, जिन्होंने श्रीराम मंदिर का विरोध किया, जिन्होंने मंदिरों से लाउडस्पीकर उतरवा दिए, जिन्होंने ब्राह्मणों को “चोट्टा” बताया और हिन्दू त्योहारों पर तमाम बंदिशें लगवाईं।
इन रावणों का एक मामा मारीच भी है जो छद्म “अन्नदाता” का वेश बनाकर सरकार का ध्यान भटकाने में लगा हुआ है, ताकि सरकार जनता की रक्षा, सुरक्षा और उसके विकास की ओर ध्यान केंद्रित न कर पाए। यहां जनता जनार्दन ही तो माता सीता है जो इन रावणों को पहचान नहीं पा रही है, और इन रावणों के छद्म वेश के छल प्रपंच में फंसकर “योगी रेखा” को लांघकर इन रावणों को अपना “मत” देने का मन बना रही है।
परन्तु वह भूल रही है कि यह रावण थे, रावण हैं और सदैव रावण ही रहेंगे।हमें समझना होगा कि प्रत्येक “श्रीराम विरोधी” केवल और केवल “रावण” ही हो सकता है, साधु कदापि नहीं हो सकता।
इन रावणों से सावधान रहना होगा, आज हमें उस ऐतिहासिक भूल को दोहराने से बचना ही होगा जो किसी समय में माता सीता ने की थी।
*विशेष नोट* – उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने का नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।