विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पूर्व गन्ना राज्यमंत्री और सपा के वरिष्ठ नेता स्वामी ओमवेश को चांदपुर विधानसभा के लिए समाजवादी पार्टी की ओर से प्रत्याशी बनाया जाना लगभग तय हो चुका है। अब केवल औपचारिक घोषणा होने की देर है।
स्वामी ओमवेश को टिकट मिलने से बसपा मजबूत होगी
इस ख़बर के बाद से ही चांदपुर के राजनीतिक गलियारों में यह प्रश्न चर्चा का विषय बन गया है कि क्या स्वामी ओमवेश को टिकट मिलने से बसपा को मज़बूती मिलेगी।
सवाल थोड़ा अटपटा सा जरूर है। लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक दृष्टिकोण से यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण भी है।
सपा ने दिखाया स्वामी ओमवेश पर भरोसा
क्योंकि चांदपुर विधानसभा में अभी तक केवल बसपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर विश्वास जताया है। जबकि समाजवादी पार्टी जो कि ख़ुद को “मुसलमानों का मसीहा” समझती है, ने मुस्लिम प्रतिनिधित्व को किनारे कर स्वामी ओमवेश पर भरोसा दिखाया है।
मुस्लिम समाज में भी स्वामी ओमवेश की पकड़ मज़बूत है
उधर भाजपा की ओर से भी किसी हिन्दू प्रत्याशी को चुना जाना तय है। अब ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय होने के पूरे-पूरे आसार बनते नज़र आ रहे हैं। स्वामी ओमवेश को जाट समाज का प्रतिनिधि माना जाता है। और समाजवादी पार्टी के टिकट के चलते उनसे यादव व अन्य पिछड़ा समाज भी बहुतायत में जुड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि मुस्लिम समाज में भी स्वामी ओमवेश की पकड़ बेहद मज़बूत मानी जा रही है।
डॉ. शकील हाशमी हैं एकमात्र मुस्लिम प्रत्याशी
लेकिन इसके बावजूद यदि केवल डॉ. शकील ही एकमात्र मुस्लिम प्रत्याशी रह जाते हैं। तो ऐसे में मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग का झुकाव बसपा की ओर जाना तय है।
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हिन्दू समाज का वोट बंटने की प्रबल संभावना
अगर दूसरे शब्दों में कहें तो यदि सपा, बसपा और भाजपा में त्रिकोणीय मुकाबला होता है। तो हिन्दू समाज का वोट काफ़ी हद तक बंटेगा, जबकि मुस्लिम समाज एकजुट होकर बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी के पक्ष में जा सकता है।
डॉ. शकील हाशमी की छवि साफ़-सुथरी है
कुल मिलाकर यहां “बांटो और राज करो” की रणनीति पूरी तरह सफ़ल होती दिखाई दे रही है। जिसका सीधा फायदा केवल और केवल बहुजन समाज पार्टी को मिलता दिखाई दे रहा है। यहां यह भी गौरतलब है कि डॉ. शकील हाशमी की छवि पूरी तरह से साफ़-सुथरी है। उनके साथ एंटी इनकम्बेंसी का कोई दुमछल्ला भी नहीं लगा हुआ है।
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जबकि स्वामी ओमवेश 1996 और 2002 में विधायक रह चुके हैं। 2002 में तो वह गन्ना राज्यमंत्री भी रहे हैं। इसलिए कहीं न कहीं एंटी इनकम्बेंसी का असर जरूर दिखाई देता है।
और यदि भाजपा भी एक बार फिर से श्रीमती कमलेश सैनी को चुनती है। तो उनके कार्यकाल की असफलताएं और जनता की उनसे नाराज़गी भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकती हैं।
पिक्चर तो अभी बाकी है
बहरहाल, अभी तो यह सिर्फ़ ट्रेलर है। पूरी पिक्चर तो बाकी है मेरे दोस्त।