एक समय था जब चांदपुर को मिनी छपरौली कहा जाता था। यह 2009 से पहले की बात है। लेकिन 2009 में हुए परिसीमन के बाद से जाट बाहुल्य क्षेत्रों को बिजनौर विधानसभा में जोड़ दिया गया।
परिसीमन के बाद जाट मतदाताओं की संख्या घटी है
2009 से पहले चांदपुर विधानसभा में जाट मतदाताओं की संख्या लगभग 40,000-42,000 के करीब थी। लेकिन परिसीमन के बाद यह संख्या घटकर मात्र 28,000 से 32,000 के बीच ही रह गई। ऐसा कहा जाता है।
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1957 से आज तक समाजवादी पार्टी कोई चुनाव नहीं जीत पाई
इस विधानसभा में एक और ख़ास बात यह है कि 1957 से लेकर आज तक यहां समाजवादी पार्टी कभी कोई चुनाव नहीं जीत पाई। और न ही गठबंधन प्रत्याशी को कभी कोई खास कामयाबी मिली है। हालांकि जाट समुदाय के स्वामी ओमवेश ने 2002 में भाजपा और रालोद के गठबंधन प्रत्याशी के रूप में यह मिथक तोड़ा था औऱ जीत हासिल की थी। उस समय स्वामी ओमवेश को 60,595 वोट मिले थे।
क्या जाट समुदाय रालोद के साथ खड़ा हुआ है
अब 2022 में स्वामी ओमवेश एक बार फिर से सपा-रालोद के गठबंधन प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। स्वामी ओमवेश जाट समुदाय से हैं। और फिलहाल यह माना जा रहा है कि जाट समाज राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के साथ खड़ा हुआ है। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है यह तो 10 मार्च के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा।
समाजवादी ढोल तो खूब पीट रहे हैं
फिलहाल क्षेत्र में गठबंधन प्रत्याशी जाट समुदाय के स्वामी ओमवेश का काफी ढोल पिट रहा है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या स्वामी ओमवेश सपा को जीत दिलाने में सक्षम हो पाएंगे? अभी तक के इतिहास में सपा को सबसे अधिक वोट 2012 में मिले थे। उस समय शेरबाज पठान सपा उम्मीदवार थे। शेरबाज पठान को कुल 39, 928 मत प्राप्त हुए थे।
2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों का प्रभाव रहेगा?
इधर 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच जो खाई खुदी थी, उसे अभी तक भी नहीं भरा जा सका है। भले ही सपा मुखिया अखिलेश यादव और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के साथ-साथ राकेश टिकैत भी किसान हितों की आड़ में अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु जाट-मुस्लिम एकता की बात करते हों। परन्तु आज भी यह प्रश्न ज्यों का त्यों है कि 2013 में बेरहमी से मारे जाने वाले लोग भी किसान ही थे। जिन दो भाइयों की हत्या की गई थी वह भी तो किसी किसान की आंखों के तारे ही थे।
बहरहाल, इन सवालों का जवाब न तो अखिलेश यादव के पास है, न जयंत चौधरी के और न ही खुद को किसान नेता कहने वाले राकेश टिकैत के पास ही कोई तर्क है।
डॉ. शकील हाशमी अकेले मुस्लिम उम्मीदवार हैं
एक और बात जो स्वामी ओमवेश खेमे के लिए परेशानी खड़ी कर सकती है, वह है मुस्लिम समुदाय का रुख़। दरअसल, बसपा ने डॉ. शकील को मैदान में उतार दिया है। डॉ. शकील हाशमी मुस्लिम शेख़ बिरादरी से आते हैं और वर्तमान में शेख़ बिरादरी के मतदाताओं की संख्या करीब 42,000 के करीब है। जो कि 2007 से अभी तक अपने वजूद को कायम रखे हुए है। साथ ही डॉ. शकील हाशमी एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार हैं और यह उनका सकारात्मक बिंदु भी है।
क्या स्वामी ओमवेश इस सब से पार पा सकेंगे?
चांदपुर विधानसभा में कुल 28,000 से 32,000 जाट मतदाता, 20,000 से 25,000 हरिजन समुदाय और 1, 20,000 से 1, 25,000 तक मुस्लिम मतदाता हैं। हालांकि कुल दलित समुदाय के 46, 000 के लगभग मतदाता हैं। लेकिन सभी दलित बसपा के वोटर्स नहीं हैं।
फिलहाल मुस्लिम समाज का झुकाव गठबंधन के पक्ष में है
ऐसे में यह तय कर पाना कि स्वामी ओमवेश क्या कोई इतिहास बना पाएंगे, बहुत ही मुश्किल है। अलबत्ता अभी तक अधिकांश मुस्लिम समुदाय का झुकाव गठबंधन प्रत्याशी स्वामी ओमवेश के पक्ष में ही दिखाई दे रहा है। अब कल क्या होगा, यह तो ऊपर वाला ही बेहतर जान सकता है।
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स्वामी ओमवेश मुस्लिम समाज के खैरख्वाह तो हो सकते हैं लेकिन मुस्लिम प्रतिनिधि कभी नहीं