इस्लाम में दो तरह की तालीम दिए जाने का ज़िक्र होता है। पहला दीनी तालीम और दूसरी दुनियावी तालीम। जिसमें से दीनी तालीम को अनिवार्य माना जाता है।
दीनी तालीम देने वाले संस्थान ही मदरसा हैं
दीनी तालीम देने वाले मरकज़ ही मदरसा (मदिरसा) कहलाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो इस्लाम धर्म की मूल शिक्षा औऱ उसके प्रचार-प्रसार का मरकज़ ही मदरसा हैं। मूल रूप से मदरसों में छात्रों को इस्लामिक शिक्षा दी जाती है, इनमें कुरान में कही गई बातों को पढ़ाया जाता है और इस्लामिक कानूनों और इस्लाम से जुड़े दूसरे विषयों की पढ़ाई होती है.
भारत में मदरसा क्यों शुरू हुआ
दरअसल भारत में मदरसों की शुरुआत का मुख्य उद्देश्य ही भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार था। भारत पर आक्रमण करने वाले मुस्लिम आक्रान्ताओं ने इन मदरसों की नींव रखी थी।
भारत में मौहम्मद गौरी ने रखी थी मदरसा की नींव
हमारी जानकारी के अनुसार भारत में पहला मदरसा शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी द्वारा अजमेर में स्थापित किया गया था।इल्तुतमिश ने भी दिल्ली में मदरसा की स्थापना की और इसका नाम मोहम्मद गोरी रखा।अला-उद-दीन खिलजी ने हौज़-ए-ख़ास से जुड़े एक मदरसे की स्थापना की। मुहम्मद तुगलक ने भी 1346 में दिल्ली में एक मदरसा की स्थापना की और इसे एक मस्जिद से जोड़ा।
20 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं इन मदरसों में
भारत में 4 राज्य ऐसे हैं जहां 10 हजार से ज्यादा मदरसें हैं, जिनमें 20 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं. इनमें से सबसे ज्यादा मदरसे उत्तर प्रदेश में हैं, जहां 8 हजार से ज्यादा मदरसों में 18 लाख से भी अधिक छात्र पढ़ते हैं.
मदरसों को मदरसा बोर्ड से एफिलेशन मिलता है।
पूरे देश में दो तरह के मदरसे हैं. एक मदरसे तो वो हैं, जो चंदे से चलते हैं और दूसरे वो हैं जिन्हें सरकार की ओर से फंड मिलता है. मदरसों में भी बोर्डिंग की सुविधा होती है. यानी की मदरसों में रहकर भी पढ़ाई की जा सकती है. इसके अलावा लड़कियों के लिए अलग से मदरसे होते हैं, जिन्हें कुल्लिया कहा जाता है.
18 राज्यों में मदरसों को केंद्र से सहायत मिलती है
भारत में असम समेत इस समय कुल 18 राज्य ऐसे हैं जहां मदरसों को केंद्र सरकार से फंडिंग मिलती है. इनमें मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य भी शामिल हैं.
किन मदरसों को मिलती है आर्थिक सहायता
3 दिसंबर, 2014 को तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि केंद्र सरकार की ओर से 2008-09 से ही मदरसों के लिए दो तरह के कार्यक्रम चला रही है. पहला है मदरसों में अच्छी शिक्षा देना (Scheme for Providing Quality Education in Madarsas-SPQEM) और दूसरा है प्राइवेट ऐडेड या नॉन ऐडेड माइनॉरिटी इंस्टीट्यूट्स के इन्फ्रास्ट्रक्टर का विकास करना (Scheme for Infrastructure Development in Private Aided/Unaided Minority Institutes). स्मृति ईरानी ने उस वक्त बताया था कि SPQEM के तहत उन मदरसों को आर्थिक मदद दी जाती है जिनमें आधुनिक विषय जैसे विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिंदी और अंग्रेजी जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं. स्मृति ईरानी ने कहा था कि 2014-15 में मदरसों के आधुनिकिकरण के लिए 100 करोड़ रुपये दिए गए थे.
केंद्र सरकार की दो महत्वपूर्ण घोषणाएं
11 जून, 2019. केंद्र में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने दो घोषणाएं की. पहली घोषणा ये कि सरकार अगले पांच साल में पांच करोड़ अल्पसंख्यक छात्रों को प्री-मैट्रिक और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप देगी. इस स्कॉलरशिप में 50 फीसदी हिस्सा लड़कियों का होगा. सरकार के फैसले के मुतबिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की लड़कियों के लिए बेगम हजरत महल बालिका स्कॉलरशिप दी जाएगी.
सरकार की ओर से दूसरी घोषणा ये की गई कि देश भर के मदरसों का आधुनिकीकरण किया जाएगा. अब इन मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और कंप्यूटर जैसे सब्जेक्ट्स पढ़ाए जाएंगे. इसके लिए मदरसों के शिक्षकों को अलग से ट्रेनिंग दिलवाई जाएगी. सरकार ने फैसला किया है कि अल्पसंख्यक बच्चों की शिक्षा के लिए पढ़ो और बढ़ो जागरूकता अभियान चलाया जाएगा.
हालांकि असम सरकार ने इस कुप्रथा पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि सरकार के पैसों से बच्चों को कुरान नहीं पढ़ाई जा सकती और अगर सरकारी खर्चे पर कुरान पढ़ाई जा सकती है तो फिर गीता या बाइबल क्यों नहीं पढ़ाई जा सकती?
भाजपा के कई नेताओं ने उठाये सवाल
यहां उल्लेखनीय है कि भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा और मदरसों की आड़ में होने वाली कई कथित संदिग्ध गतिविधियों पर उंगलियां उठाते हुए मदरसों को बंद करने तक कि मांग की है।
शिया सेंट्रल बोर्ड ने मदरसों को बंद करने की सिफारिश की
शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया था कि देश में मदरसों को बंद कर दिया जाए. बोर्ड ने आरोप लगाया कि ऐसे इस्लामी स्कूलों में दी जा रही शिक्षा छात्रों को आतंकवाद से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है.
प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में शिया बोर्ड ने मांग की है कि मदरसों के स्थान पर ऐसे स्कूल हों जो सीबीएसई या आईसीएसई से संबद्ध हों और ऐसे स्कूल छात्रों के लिए इस्लामिक शिक्षा के वैकल्पिक विषय की पेशकश करेंगे. बोर्ड ने सुझाव दिया है कि सभी मदरसा बोर्डों को भंग कर दिया जाना चाहिए.
सन्त समाज भी है ख़िलाफ़
देशभर के संत समाज मदरसों को बंद की जाने को लेकर सरकार से मांग उठा रहे हैं। जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यतींद्र गिरी के बयान आने के बाद अब अयोध्या के संत भी उनके समर्थन में हैं।
मदरसों में वहाबी विचारधारा को बढ़ावा देने की ख़बर
एक बेहद प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार एजेंसी की जांच से सामने आया है कि केरल के कुछ मदरसे वहाबी विचारधारा को पढ़ाने में लगे हैं. ये सऊदी प्रायोजित कट्टरपंथी गुट हैं, जिसे विश्व भर में फैले आतंकवाद से जुड़ा माना जाता है.
पेट्रो डॉलर की भरमार वाले खाड़ी देशों से हवाला फंडिंग के जरिए पैसा हासिल करने वाले ये मदरसे आसानी से प्रभावित हो सकने वाले युवाओं में कट्टरवाद का जहर घोल रहे हैं. ये सब ISIS के उस शैतानी मंसूबे के मुताबिक है, जिसके तहत वो दुनिया भर में लड़ाई छेड़कर इस्लामी खिलाफत, शासन बनाने के अपने लक्ष्य को हासिल करने की बात करता है.
इसी जांच से ये भी सामने आया कि इस तरह के ज्यादातर मदरसों को खाड़ी देशों में स्थित अज्ञात लोगों से फंडिंग मिलती है.
मदरसों में कट्टरता को मिलता है
हालांकि इन आरोपों-प्रत्यारोपों में कितनी सच्चाई है। यह जांच का विषय है। परंतु इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि भारत में मदरसों का मूल उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार के साथ-साथ, अप्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने में धर्मांतरण करना भी रहा है। मदरसों में दीनी तालीम की आड़ में कहीं न कहीं “ब्रेनवाश” का काम भी किया गया है। जिसका सीधा असर बुरहान वाणी जैसे नौजवानों पर साफ दिखाई दिया।
मदरसों को सरकारी अनुदान क्यों
कट्टरपंथी मदरसों को सरकारी अनुदान क्यों मिल रहा है यह महत्वपूर्ण है। अगर मदरसों में वास्तव में कट्टरता का पाठ पढ़ाया जा रहा है तो अभी तक कोई जांच क्यों नहीं बैठाई गई? ऐसे तमाम मदरसों पर बुल्डोजर क्यों नहीं चलवा दिए गए जो संदिग्ध हैं, अथवा जिनमें सन्दिग्ध गतिविधियां होती रही हैं.
योगी सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे
उत्तरप्रदेश में योगी सरकार को इस दिशा में कड़े कदम उठाने होंगे, और कट्टरपंथी मदरसों की फंडिंग को तत्काल प्रभाव से बंद करना होगा। सामान्य मदरसों को सरकार द्वारा पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेना ही श्रेयस्कर होगा।
आखिर इस धर्मनिरपेक्ष भारत में किसी धर्म विशेष की कट्टरपंथी शिक्षा को सरकारी धन (जो कि जनता की खून-पसीने की कमाई से आता है) पुष्पित-पल्लवित क्यों किया जा रहा है?? यह एक यक्ष प्रश्न है।
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