भारत दुनिया का शायद एकमात्र ऐसा देश है जिसमें अपने ही देश पर आक्रमण कर लूटने वाले आक्रान्ताओं और लुटेरों का गुणगान ही नहीं किया जाता अपितु उनके नाम पर स्मारक, इमारतें, संग्रहालय और सड़कें इत्यादि भी बनाई गई हैं। शहरों औऱ गांवों के नामकरण तक इन मुस्लिम आक्रांता और लुटेरों के नाम पर किये गए हैं।
मुस्लिम आक्रांता इनके पूर्वज थे
इस सबका मूल कारण रहा कि पूर्ववर्ती सरकारों ने जिन लोगों को भारत का इतिहास लिखने की जिम्मेदारी दी थी, वह लोग उन आक्रान्ताओं और लुटरों को न केवल अपना पूर्वज मानते थे बल्कि उन्हें अपना आदर्श भी समझते रहे हैं। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी शासकों ने भी एक साजिश के तहत मुस्लिम आक्रान्ताओं को सही सिद्ध करने की पुरजोर कोशिश की और ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर भारतीय समाज के समक्ष परोसा गया।
इस देश का पहला शिक्षामंत्री ही पूर्वाग्रह से ग्रसित था और उसने जानबूझकर उस अप्रमाणिक इतिहास को हमारे सर मढ़ दिया जिसका वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई सरोकार न था।
मुस्लिम आक्रांता कैसे बनाये गए नायक
इरफान हबीब और रोमिला थापर सहित तमाम दरबारी इतिहासकारों ने एक पूर्वनियोजित षड्यंत्र के तहत भारतीय नायकों यथा महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज जैसे महान देशभक्तों को बागी सिद्ध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
दूसरे शब्दों में कहें तो इन स्वघोषित बुद्धिजीवियों ने जहां एक ओर भारतीय क्रांति के सूत्रधारों को खलनायक बनाने का कुप्रयास किया वहीं दूसरी ओर बेहद चतुराई के साथ मुस्लिम आक्रांता यथा बाबर, तैमूर लंग, गजनवी, मौहम्मद गौरी, अकबर और औरंगजेब जैसे क्रूर हत्यारों, अय्याश और लुटेरों को बहादुर योद्धा और निपुण शासक दिखाने का हरसम्भव प्रयास किया, और ऐसा करने में वह काफी हद तक सफ़ल भी रहे।
और उनकी इस सफ़लता का सबसे मुख्य आधार था कांग्रेस और वामपन्थी मानसकिता के शासकों का अपरोक्ष समर्थन व सहयोग।
तुष्टिकरण की हर सीमा को लांघा गया
कांग्रेस, वामपंथ और जिन्नावादियों ने गांधीवाद की आड़ में तुष्टिकरण की हर सीमा को लांघते हुए इन मुस्लिम आक्रांता और लुटेरों का महिमामंडन करने में किसी तरह का कोई संकोच नहीं किया।
सत्य तो यह है कि टुकड़े-टुकड़े गैंग, गजवा गैंग और मुग़लभक्तों ने मुस्लिम आक्रान्ताओं को भारत के इतिहास का नायक बना दिया और जिन मुस्लिम सूफियों ने इस देश में धर्मांतरण करने में महती भूमिका निभाई थी, उन सबको समाजसुधारक के रूप में प्रस्तुत किया।
भारत का अभिन्न मानती है आज की पीढ़ी
स्थिति यह है कि आज की हिन्दू पीढ़ी मुस्लिम आक्रान्ताओं और दरवेशों को भारत के इतिहास का अभिन्न हिस्सा मानती है और अरब संस्कृति, वेशभूषा व सभ्यता को भारतीय परम्परा से जोड़कर देखने लगी है।
इससे बड़े दुर्भाग्य और दुःख का विषय और क्या हो सकता है कि हम विदेशी लुटेरों, भाषा और पहनावे को अपनाने से कोई परहेज़ नहीं करते हैं।
आज नहीं तो कल सत्य को स्वीकार करना ही होगा
आज नहीं तो कल हमें इस सत्य को स्वीकारना ही होगा कि अरब देशों से आई संस्कृति, सभ्यता और वेशभूषा भारतीय परम्पराओं का हिस्सा कभी नहीं बन सकते और न ही इस देश का इतिहास मुस्लिम लुटेरों और हत्यारों को अपना आदर्श स्वीकार कर सकता है।
अब अकबर नहीं रहेगा महान
धन्य है मोदी सरकार जिसने इस ओर विशेष ध्यान दिया है और हमारे वास्तविक इतिहास को हमारे समक्ष प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया है। भारत सरकार का यह प्रयास वास्तव में स्वागत योग्य है और इस कदम का लाभ हमारी आने वाली पीढ़ियों को अवश्य पहुंचेगा। अब शायद अकबर कभी महान नहीं बन पाएगा, और न ही बाबर महान योद्धा समझा जाएगा।
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