चांदपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के टिकट के लिए दावेदारों की एक लंबी लाईन लगी हुई है। और सभी दावेदार अपने आपको हिंदुओं का हिंदुत्व का अलमबरदार समझ रहे हैं।
हिंदुओं के कथित मसीहा कहाँ सो रहे थे
लेकिन हम जानना चाहते हैं कि कोरोना काल में जब कुछ हिन्दू परिवार दाने-दाने को मोहताज थे। तब यह हिंदुओं के स्वयंभू मसीहा कहाँ सो रहे थे? क्या उनके भूखे और मासूम बच्चों का करुण क्रंदन इनकी कुम्भकर्णी नींद को नहीं तोड़ पाया?
सिर्फ पानी पी-पीकर दिन गुजारे
तीन दिन तक कुछ परिवारों ने पानी पी-पीकर। और भूख से बिलखते अपने बच्चों को झूठी तसल्लियां और लोरियां गा-गाकर सुलाया। लेकिन किसी कथित हिन्दू ठेकेदार ने उनके घर में जाकर उन परिवारों का हालचाल तक नहीं पूछा। आज सभी अपने को सावरकर ब्रांड हिन्दू बताने का हरसम्भव प्रयास कर रहे हैं।
मुख़्तार ने दिया खाने-पीने का सामान
उस वक्त बसपा के एक पूर्व विधायक के छोटे भाई और वर्तमान में दिल्ली हज कमेटी के चेयरमैन मुख़्तार अहमद ने उस परिवार के लिये दो बैगों में खाने-पीने का लगभग हर प्रकार का सामान भेजा था। और साथ ही शहर के एक मुस्लिम समाजसेवी ने उनके यहाँ एक हजार रुपये की आर्थिक मदद भी भिजवाई थी।
हम चश्मदीद गवाह हैं
लेकिन उस समय किसी तथाकथित “हिन्दू ठेकेदार” ने उनकी कोई मदद नहीं की थी। यह बात हम पूरे दावे के साथ इसलिये कह पा रहे हैं। क्योंकि हम खुद इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के चश्मदीद गवाह हैं। और हमारे द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर ही मुख्तार साहब और उन मुस्लिम समाजसेवी ने सहयोग किया था।
उल्लेखनीय है कि उन परिवारों ने कुछ हिन्दू ठेकेदारों से भी सम्पर्क किया था। लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात ही निकला था।
जो काम कर रहे थे वह टिकट नहीं मांग रहे
हालांकि उस समय हिन्दू संगठनों से जुड़े कुछ लोग वास्तव में समाजसेवा कर रहे थे। जिनके विषय में हमें बाद में जानकारी हुई। लेकिन उनमें से कोई भी व्यक्ति आज टिकट की दावेदारी नहीं कर रहा है।
केवल गाल बजाने से काम नहीं चलेगा
हम पूछना चाहते हैं कि जो लोग आज हिंदुओं के वोटों के ठेकेदार बन रहे हैं। और भाजपा के टिकट पर अपने दावे ठोक रहे हैं। वह जरा बताएं कि उन्होंने कोरोना काल में कितने परिवारों को खाने-पीने का सामान बांटा। और उनकी आर्थिक सहायता की है। जरा वह सूची दिखाएं जिसमें उन स्थानों के नाम हों, जिन्हें आर्थिक सहायता पहुंचाई गई।
किसी की मजबूरी का मज़ाक बनाना हमारा उद्देश्य नहीं
हमारा आशय किसी की मजबूरी का मज़ाक बनाना अथवा किसी के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने का नहीं है। परन्तु यह जानने का अधिकार उस प्रत्येक व्यक्ति को है, कि जो लोग जनता के प्रतिनिधि बनना चाहते हैं, उन्होंने आपत्तिकाल में आम जनता को कितना सहयोग किया है। केवल गाल बजाने से काम नहीं चलेगा साहब, तथ्यात्मक आंकड़े भी प्रस्तुत करने होंगे।