कृष्णानन्द राय हत्याकांड
25 नवंबर 2005 को उत्तरप्रदेश की मोहम्मदाबाद सीट से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय एक क्रिकेट टूर्नामेंट के उद्घाटन के बाद एक दूसरे गांव के लिए कुछ दूर आगे बढ़े होंगे कि रास्ते में एक सिल्वर ग्रे कलर की एसयूवी सामने से आकर खड़ी हो गयी।करीब 7-8 लोग एसयूवी में से उतरे. उनके हाथ में एके-47 थीं. एसयूवी से उतरे लोगों ने विधायक कृष्णानंद राय की गाड़ी पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
बताते हैं कि इस घटना में 500 राउंड से ज़्यादा गोलियां चलीं थीं। इस फायरिंग में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय, गनर निर्भय उपाध्याय, ड्राइवर मुन्ना, रमेश राय, श्यामशंकर राय, अखिलेश राय और शेषनाथ सिंह की मौत हो गई थी। पोस्ट्मॉर्टम रिपोर्ट में मालूम हुआ कि इन सात लोगों के शवों से कुल 67 गोलियां बरामद की गयी थीं।
मुन्ना बजरंगी की जेल में हुई हत्या
पूर्वांचल के इस जघन्य हत्याकांड में मुख़्तार अंसारी और उनके बड़े भाई अफ़जाल अंसारी पर सीधे आरोप लगे थे। ख़बर मिली कि दोनों भाईयों के इशारे पर डॉन मुन्ना बजरंगी ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। वही मुन्ना बजरंगी जिसकी 9 जुलाई 2018 को बागपत जेल में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
एक समय मुन्ना बजरंगी को मुख्तार का खास शूटर माना जाता था। हालांकि बाद में दोनों के संबंध खराब हो गए थे। मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद अंसारी परिवार ने मुख्तार की जान को भी खतरा बताया था और सुरक्षा की मांग की थी।
अवधेश राय हत्याकांड
1991 में बनारस की पिंडरा सीट से विधायक रह चुके और नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ दो लोकसभा चुनाव हार चुके अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय की हत्या हो गयी। अवधेश राय को बृजेश सिंह का क़रीबी माना जाता था।
इस हत्या में भी मुख़्तार अंसारी गैंग का नाम आया था। कहा जाता है कि साल 1991 में एक बार मुख़्तार अंसारी को पुलिस हिरासत में लिया, लेकिन दो पुलिस वालों को गोली लगी और मुख़्तार अंसारी फ़रार हो गए।
अपराध की दुनिया में मुख्तार अंसारी का प्रवेश
सुभानुल्लाह अंसारी के घर में साल 1963 में मुख़्तार अंसारी ने जन्म लिया। सुभानुल्लाह के पिता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रह थे। जबकि सुभानुल्लाह ख़ुद एक कम्युनिस्ट नेता थे।
1988 में ही अपराध की दुनिया में मुख़्तार का नाम आ गया था. मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या हुई. इस हत्याकांड के लिए भी मुख्तार गैंग को जिम्मेदार ठहराया गया।
1996 में मुख्तार अंसारी का राजनीति में प्रवेश
1996 में मुख़्तार अंसारी का राजनीति में विधिवत प्रवेश हुआ और मुख्तार अंसारी पहली बार विधानसभा पहुंचे। कुल मिलाकर मुख़्तार अंसारी ने अपने लिए बड़ी राजनीतिक ज़मीन तैयार कर ली थी। लोगों की मदद, लोकल काम, ठेकेदारी और बड़ा रसूख़ सबकुछ था।
मुख्तार अंसारी को ध्रुवीकरण की राजनीति करने का महारथी माना जाता है। हालांकि इस बात से मुख्तार अंसारी और उनके भाईयों ने हमेशा इंकार ही किया है। जबकि सच यह है कि मुख़्तार अंसारी पर खुली जीप में बैठकर साम्प्रदायिक दंगे भड़काने के भी कई आरोप लगे और केस भी दर्ज हुए।
2007 में बसपा का हाथ थाम लिया
2007 में मुख्तार अंसारी ने बहन सुश्री मायावती का हाथ थाम लिया। और उस समय बसपा ने जनता के सामने मुख्तार अंसारी को “रॉबिन हुड” के रूप में पेश किया। और उन्हें ‘ग़रीबों का मसीहा’ और ‘कमज़ोरों की लड़ाई लड़ने वाला’ बताया।
2009 लोकसभा चुनाव में मुख़्तार अंसारी ने बनारस लोकसभा से भाजपा के मुरली मनोहर जोशी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा। इस दिग्गज भाजपा नेता से मात्र 17000 वोटों से मुख़्तार अंसारी चुनाव हार गए।
2010 में कौमी एकता दल बनाया
2010 में बहन मायावती ने अंसारी भाईयों को अपनी पार्टी से बाहर निकाल दिया। तब अंसारी भाइयों ने अपनी नयी पार्टी बनाई और उसका नाम रखा “क़ौमी एकता दल”। 2012 में मुख़्तार अंसारी ने मऊ विधानसभा सीट जीत ली। इसके पहले इसी सीट पर 2002 और 2007 में निर्दलीय जीत दर्ज की थी।
2014 में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव की घोषणा
2014 में मुख़्तार ने कहा कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ चुनाव लड़ेंगे लेकिन कुछ ही दिनों बाद मुख़्तार अंसारी ने ऐलान किया कि सेकूलर वोटों का बंटवारा ना हो, इसलिए वो अपना नाम वापिस ले रहे हैं।
2016 में राजनीतिक गलियारों में चर्चा रही कि मुख़्तार अंसारी की पार्टी क़ौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में हो गया है। बताते हैं कि अफ़जाल अंसारी और शिवपाल यादव ने मिलकर इस बात का ऐलान किया था। लेकिन उस समय तक भतीजे अखिलेश यादव ने सपा पर अपनी पकड़ को बेहद मज़बूत बना लिया था। औऱ पार्टी की “गुंडा पार्टी” की छवि को सुधारने की कोशिश में लगे अखिलेश यादव को कुख्यात मुख़्तार की पार्टी के सपा में विलय से सख़्त परहेज़ था। लिहाज़ा, मुख़्तार एंड कम्पनी ही सपा से बाहर नहीं गए, बल्कि चचा शिवपाल यादव को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
लेकिन बहन मायावती ने “अपराध साबित नहीं हुए” वाली नीति खेलते हुए मुख़्तार अंसारी को एक बार फिर से बसपा में वापस बुला लिया।
2019 में पंजाब पुलिस ने पकड़ा
2017 में मुख़्तार अंसारी ने मऊ विधानसभा हथिया ली, तो 2019 में अफ़जाल अंसारी ने बसपा के टिकट पर कृष्णानंद राय के क़रीबी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री, सांसद और भाजपा नेता मनोज सिन्हा को ग़ाज़ीपुर लोकसभा से हरा दिया।
2019 में पंजाब में मुख़्तार अंसारी पर एक एफ़आईआर दर्ज हुई।लिहाजा पंजाब पुलिस बांदा जेल पहुंची और जेल अधिकारियों ने मुख्तार को पंजाब पुलिस को सौंप दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अप्रैल 2021 में अंसारी को फिर यूपी की बांदा जेल में ले जाया गया।
मऊ से पांच बार के विधायक मुख्तार अंसारी के खिलाफ न केवल यूपी में बल्कि अन्य राज्यों में भी 50 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं।
सेक्युलर पार्टियों के नायक बने हैं
आजकल कानून के “खलनायक” मुख़्तार अंसारी बाँदा जेल में हैं और प्रदेश की “सेक्युलर पार्टियों” के “नायक” बने हुए हैं।
पहले असदुद्दीन ओवैसी साहब ने उन्हें अपनी पार्टी में आने का न्यौता दिया। अब सुना है कि चचा शिवपाल यादव की सपा में वापसी की खबरों के साथ ही कुख्यात माफ़िया डॉन मुख़्तार अंसारी की वापसी का रास्ता भी साफ़ होने लगा है।
हालांकि इस बार मुख़्तार की वापसी का श्रेय चचा शिवपाल को नहीं बल्कि सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर को दिया जाएगा। क्योंकि ओपी राजभर ही तो हैं जो मुख्तार अंसारी को समाजवादी पार्टी का ब्रांड एंबेसडर बनाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। अब प्रश्न यह है कि क्या सपा मुखिया श्री अखिलेश यादव माफ़िया डॉन मुख़्तार अंसारी के गुनाहों पर पर्दा डालते हुए उन्हें सपा का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त कर पाएंगे। अथवा इस बार मुख्तार के साथ-साथ ओपी राजभर का भी शिवपाल जैसा ही हाल होने वाला है।