सर्दी में गरीबों को रजाई- कम्बल और चांदपुर में सपाइयों को सिम्बल की बहुत जरूरत है।
जिसे देखो सिम्बल को रो रहा है
चांदपुर विधानसभा में जिस सपा नेता को देखो वही सिम्बल का रोना रो रहा है। वैसे हर सपा नेता और उसका समर्थक यही कह रहा है कि सिम्बल मेरे पास है। लेकिन सिम्बल दिखाने को कोई तैयार नहीं है।
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समाजवादियों का कुतर्क
समाजवादियों का कुतर्क देखिये साहब कि कह रहे हैं – “पार्टी की गाइडलाइन है कि पार्टी के सिम्बल को सोशल मीडिया पर शेयर न किया जाए।” गोया के पार्टी का सिम्बल न हो गया, बल्कि ए के 47 हो गई जिसे शेयर करने में डर लग रहा है। नाहिद हसन जैसे गैंगस्टर और मुख़्तार अंसारी जैसे माफियाओं को टिकट बांटने की बात करने वालों को भला अपना सिम्बल दिखाने में एतराज़ क्या है?
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सिम्बल न हुआ 20 साल पुराना अचार हो गया
बचपन में हम कहा करते थे कि हमारे पास 20 साल पुराना अचार है। जब कोई कहता कि दिखाओ कहाँ है। तो हम जवाब देते कि अगर दिखा दिया तो ख़राब न हो जाएगा। ठीक ऐसी ही कुछ हालत चांदपुर विधानसभा से सपा टिकट के दावेदारों की है। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्षा के पति रफी सैफ़ी से लेकर पूर्व गन्ना राज्यमंत्री स्वामी ओमवेश तक, सभी के समर्थक इस बात का ढोल तो ख़ूब पीट रहे हैं कि सिम्बल उनके नेता जी की जेब में है। लेकिन दिखाने के लिए नहीं है।
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साईकिल की गद्दी कहाँ है
कभी-कभी तो लगता है कि साइकिल का हैंडल मुहम्मद इकबाल साहब के पास है, घण्टी मुन्तजिर साहब उठा लाये, कैरियर फरीद ठेकेदार के क़ब्जे में है, एक पहिया रफ़ी सैफ़ी उठाये घूम रहे हैं, और दूसरा पहिया स्वामी जी के हाथ लग गया है। बाकी बची गद्दी, वह अखिलेश भैया के कार्यालय में रखी है।
इसीलिए कोई भी साइकिल का सिम्बल दिखाने को तैयार नहीं है। क्योंकि मुकम्मल साइकिल किसी के भी पास नहीं है। यह तो बिल्कुल वही बात हुई- टिकट हम ही लाएंगे, लेकिन सिम्बल नहीं दिखाएंगे।
कायदे की बात यह है
कायदे की बात तो यह है साहब, कि सिम्बल लाओ और प्रेसवार्ता करके उसमें सबको दिखा दो। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
लेकिन दिक़्क़त यह है कि बिल्ली के गले में घण्टी बांधेगा कौन? यहां तो आयाराम- गयाराम की स्थिति बनी हुई है। किसका पत्ता कब कट जाए, यह किसी को नहीं पता साहब। अरे जब पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव और आजम खान सहित मूलचन्द चौहान जैसे सपाई दिग्गजों का सितारा गर्दिश में जा सकता है, तो भला मौहम्मद रफ़ी और स्वामी ओमवेश जैसों का क्या कहना।
एक कहावत है साहब- “उसे” मरा जब जानिए, जब तेहरवीं तीजा होए। बाकी तो आप ख़ुद समझदार हैं।