“ए पुलिस वालों, ए पुलिस, क्या तमाशा है। तुमसे ज़्यादा बदतमीज तो कोई हो ही नहीं सकता है।” क्या यह भाषा सही है?
यह भाषा किसी मुम्बई के माफिया डॉन या किसी फ़िल्म के ख़तरनाक विलेन का डॉयलॉग की नहीं है। बल्कि यह उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव का तथाकथित कथन है जो शायद उन्होंने अपनी एक चुनावी सभा के दौरान सम्भवतः वहां उपस्थित पुलिस अधिकारियों/कर्मचारियों की ओर ईशारा करते हुए कहा है। इसका एक वीडियो ख़ूब वायरल हो रहा है।
पुलिसवालों को क्यों बदतमीज बताया सपा मुखिया ने
ऐसी भाषा का प्रयोग क्यों किया
हालांकि यह कहना बहुत मुश्किल है कि उन्होंने ऐसी भाषा का प्रयोग क्यों किया। क्योंकि वीडियो देखकर कुछ समझ नहीं आ रहा है कि श्री अखिलेश यादव को इस प्रकार की भाषा का प्रयोग क्यों करना पड़ रहा है।
यह तो अंडरवर्ल्ड की भाषा है
श्री अखिलेश यादव कोई आम इंसान नहीं हैं और न ही उनका कोई सम्बन्ध अंडरवर्ड या बॉलीवुड से है, लेकिन जिस तरह की भाषा का प्रयोग उन्होंने पुलिस के लिये किया है, वह कदापि उचित नहीं जान पड़ती है। हालांकि हम उस वीडियो की कोई पुष्टि नहीं करते हैं। लेकिन ग़लत को ग़लत ही कहा जायेगा।
आजम साहब ने भी कुछ ऐसा ही कहा था
एक समय था जब समाजवादी के पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान साहब ने अपने एक भाषण के दौरान आई ए एस अधिकारियों को तन्ख्वाईये बताते हुए उनसे जूते पॉलिश कराने की बात कही थी। हालांकि हम उस वीडियो की भी कोई पुष्टि नहीं करते जिसमें आजम खान साहब को उपरोक्त बयान देते हुए दिखाया गया था।
माननीय मुलायम सिंह भी पीछे नहीं रहे
समाजवादी पार्टी के नेताओं की भाषा का स्तर यूँ भी बहुत उच्चकोटि का नहीं माना जा सकता है।
चाहे अबू आज़मी हों, एसटी हसन हों, अनुराग भदौरिया हों, शफीकुर्रहमान बर्क हों या फिर कोई और। सभी की भाषा का स्तर लगभग एक जैसा ही है। और तो और पार्टी के संस्थापक माननीय मुलायम सिंह की भाषा पर भी कई बार प्रश्नचिन्ह लग चुके हैं। वह तो कथिततौर पर बलात्कार जैसे घृणित कार्य को भी लड़कियों की छोटी-मोटी गलती बताकर सबको चौंका चुके हैं।
सपा समर्थकों की मानसिकता क्या है
दरअसल, समाजवादी पार्टी के अधिकांश समर्थक “टपोरी भाषा” को ही पसन्द करते हैं। क्योंकि सपा समर्थकों का एक बड़ा वर्ग बहुत कम पढ़ा लिखा है, और उनके लिए पुलिस और प्रशासन हमेशा “एक विलेन” की तरह से रहा है। आपराधिक मानसिकता के लोगों को पुलिस और प्रशासन से हमेशा ही डर रहता है। इसलिए वह उन नेताओं को ही पसन्द करते हैं जिनकी भाषाशैली उसी तरह की होती है, जिस प्रकार की भाषा माननीय अखिलेश यादव या उनकी पार्टी के तमाम अन्य बड़े नेता बोलते हैं।
इन नेताओं की मजबूरी है साहब
हालांकि सपा नेताओं के लिये इस तरह की कथित “टपोरी भाषा” बोलना और बाहुबलियों की तरह की बॉडी लैंग्वेज का प्रयोग करना उनकी जरूरत नहीं बल्कि उनकी मजबूरी है।
सपा की यही राजनीति है
सच पूछिए तो राजनीति में यह सब करना ही होता है, क्योंकि आप जिस प्रकार की मानसिकता के लोगों की भीड़ को सम्बोधित करते हैं, वैसी ही भाषाशैली और बॉडी लैंग्वेज का प्रयोग करना आपकी राजनीतिक मजबूरी बन जाता है।
यह अपेक्षा करना ही बेमानी है
फिलहाल चुनाव चल रहे हैं। और हमारे दृष्टिकोण से ऐसे में किसी भी पार्टी के नेता से संयमित, सुसंस्कृत और सभ्य भाषाशैली की अपेक्षा करना भी बेमानी ही है।
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