आज बहुत से लोग भाजपा की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं। कई लोग पेट्रोल, डीज़ल की महंगाई का रोना रो रहे हैं, उनका मानना है कि भाजपा सरकार ने सबसे अधिक मंहगाई बढ़ा दी है। पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों की बात करें तो सबसे पहले ये समझना ज़रूरी है कि तेल की क़ीमतें चार स्तर पर तय होती हैं-
1- अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में तेल के दाम, रिफ़ाइनरी तक पहुंचने में लगा फ़्रेट चार्ज (समुद्र के ज़रिए आने वाले सामानों पर लगने वाला कर)
2- डीलर का मुनाफ़ा और पेट्रोल पंप तक पहुंचने का सफ़र
3- जब पेट्रोल पंप पर पहुँचता है तो यहाँ इस पर केंद्र सरकार की ओर से तय एक्साइज़ ड्यूटी जुड़ जाता है.
4- इसके साथ ही राज्य सरकारों की ओर से वसूला जाने वाला वैल्यू ऐडेड टैक्स यानी वैट भी इसमें जुड़ जाता है.
26 जुलाई 2021 को केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने लोकसभा में बताया था कि सबसे ज्यादा वैट मध्यप्रदेश सरकार पेट्रोल पर लेती है. जो 31.55 रुपये प्रति लीटर है. वहीं डीज़ल पर सबसे ज्यादा वैट राजस्थान सरकार लेती है जो 21.82 रुपये प्रति लीटर है. डीज़ल का सबसे अधिक उपयोग किसानों औऱ ट्रांसपोर्ट के कार्यों में किया जाता है, और राजस्थान में सत्ता में बैठी कांग्रेस सरकार सबसे अधिक वैट डीजल पर ही वसूलती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आज की तारीख में कांग्रेस पार्टी अपने आपको किसानों का सबसे बड़ा हितैषी बता रही है।
केंद्र की सरकार की ओर से तेल कीमतों पर जो कर लगाया जाता है, वह एक्साइज ड्यूटी के रूप में लगाया जाता है, जो कि अनुमानतः 32.90 रुपये है।
पेट्रोलियम राज्यमंत्री रामेश्वर तेली के संसद में दिए गए एक बयान के अनुसार, पेट्रोल और डीजल के दाम साल 2010 से बाजार के हवाले हैं. 26 जून 2010 से पेट्रोल की कीमतें बाजार की चाल से तय होती हैं जबकि डीजल की दर 19 अक्टूबर 2014 को पूरी तरह से बाजार के नियंत्रण में चली गई. उल्लेखनीय है कि 2010 में देश में कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी।
पिछली बार साल 2014 से 2016 के बीच कच्चे तेल के दाम तेजी से गिर रहे थे तो सरकार इसका फायदा आम लोगों को देने के बजाय एक्साइज ड्यूटी प्लस रोड सेस के रूप में अपनी आमदनी बढ़ाती रही. नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच केंद्र सरकार ने 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई और केवल एक बार राहत दी. ऐसा करके साल 2014-15 और 2018-19 के बीच केंद्र सरकार ने तेल पर टैक्स के जरिए 10 लाख करोड़ रुपये कमाए. वहीं राज्य सरकारें भी नहीं चूकीं. पेट्रोल-डीजल पर वैट ने उन्हें मालामाल कर दिया. साल 2014-15 में जहां वैट के रूप में 1.3 लाख करोड़ रुपये मिले तो वहीं 2017-18 में यह बढ़कर 1.8 लाख करोड़ रुपये हो गया.
यहां यह जानना जरूरी है कि तेल कीमतों से होने वाले मुनाफ़े का एक बड़ा हिस्सा केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा जनहितकारी योजनाओं में खर्च किया जाता है। गरीबों और मजदूरों को मुफ़्त का राशन, मुफ़्त की बिजली-पानी और अन्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, वह सब आपकी औऱ हमारी जेबों से ही जाता है।
पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे आर्थिक रूप से सुदृढ और सम्पन्न राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकारें हैं, इस सबके बावजूद भी उन्होंने तेल कीमतों में अपने मुनाफ़े को कम नहीं किया।
सच तो यह है कि कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों को मालूम है कि तेल कीमतों को नियंत्रित करना पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ में नहीं है और वह यह भी जानते हैं कि यदि उत्तरप्रदेश में सपा या बसपा की सरकारें भी बनती हैं, तब भी वह तेल की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण नहीं कर पाएंगी।
कटु सत्य तो यह है कि सारा खेल केवल और केवल कुर्सी हथियाने के लिए खेला जा रहा है, जिसे कहीं न कहीं देश विरोधी ताकतों द्वारा प्रायोजित और प्रोत्साहित किया जा रहा है। और आम जनता विशेषकर राष्ट्रवादी औऱ देशभक्त जनता विपक्ष के बुने इस जाल में बुरी तरह से फंसती जा रही है।
(विभिन्न मीडिया सूत्रों से संकलित खबरों पर आधारित)
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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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