अभी हाल ही में सिंधु बॉर्डर पर एक “दलित अन्नदाता” की नृशंस हत्या हुई। यक्ष प्रश्न यह है कि इस हत्या के लिए जिम्मेदार कौन है?
क्या मोदी इन हत्याओं के लिए जिम्मेदार हैं
देश का विपक्ष और उसके समर्थक इस सबके लिए मोदी सरकार को दोषी मान रहे हैं।
ऐसे लोगों का मानना है कि मोदी सरकार इस हत्या सहित उन तमाम मौतों की दोषी है जो कि इस कथित किसान आंदोलन के चलते हुई है।
विपक्षी नेता यह तर्क देते हैं कि मोदी सरकार किसान नेताओं से बातचीत कर समस्या को सुलझाने की कोई सार्थक पहल नहीं कर रही है, जिसके कारण किसानों को आंदोलन करना पड़ रहा है।
द्रौपदी और श्रीकृष्ण का संवाद
यहाँ महाभारत के प्रसंग का हम उल्लेख करना चाहते हैं।
महाभारत के युद्ध से पूर्व जब श्रीकृष्ण कौरवों से सुलह का अंतिम प्रयास करने के लिये जा रहे थे, तो महारानी द्रौपदी ने उन्हें रोका और पूछने लगीं कि- हे सखा, क्या आप नहीं चाहते कि मैं अपनी प्रतिज्ञा को पूरी कर सकूं? श्री कृष्ण ने कहा कि- हे पांचाली, यदि मैं कौरवों से सुलह का प्रयास करने जा रहा हूँ तो इसमें भला तुम्हें क्या आपत्ति है, और उस सबका तुम्हारी प्रतिज्ञा से क्या लेना-देना है?
महारानी द्रौपदी ने कहा कि- “हे कृष्ण, मैंने प्रतिज्ञा ली थी कि मैं दुःशासन के लहू से अपने केश धोकर ही उन्हें बाधूंगी, अन्यथा मेरे यह केश सदैव ऐसे ही खुले रहेंगे।”
अतः यदि आपने दुर्योधन से सुलह हेतु वार्तालाप आरम्भ किया तो वह निश्चित रूप से सुलह करने के लिए मान जाएगा, और युद्ध नहीं होगा।
और जब युद्ध नहीं होगा तब दुःशासन का लहू कौन लाएगा। और इस प्रकार मेरी प्रतिज्ञा कभी पूरी नहीं होगी, और मेरे केश सदैव ऐसे ही खुले रहेंगे।
श्री कृष्ण ने द्रौपदी से पूछा- हे सखी, क्या तुम्हें पूर्ण विश्वास है कि मैं दुर्योधन को मनाने में सफ़ल हो जाऊंगा।
महारानी द्रौपदी ने उत्तर दिया- मुझे इस पर अटूट विश्वास है, कि यदि आप दुर्योधन को समझाएंगे तो वह आपकी वाकपटुता के सामने अधिक देर नहीं टिक पायेगा। और अंततः सुलह के लिये तैयार हो जाएगा।
तब श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा कि- “हे द्रौपदी, जितना विश्वास तुम्हें इस बात का है कि दुर्योधन मेरी बात को मानकर सुलह कर लेगा, उससे कहीं अधिक विश्वास मुझे इस बात पर है कि दुर्योधन मेरी बात को कभी नहीं मानेगा।
क्योंकि यदि दुर्योधन मानना भी चाहेगा, तब भी शकुनि और दुःशासन उसे मानने नहीं देंगे।
दुर्योधन का अहंकार और शकुनि की कुटिलता
श्रीकृष्ण ने ऐसा शायद इसलिए कहा होगा क्योंकि वह जानते थे कि दुर्योधन का अहंकार और सत्तालोलुपता, शकुनि की कुटिलता, दुःशासन की चाटुकारिता और कर्ण की अर्जुन से बदला लेने की प्रबल इच्छा। यह सब दुर्योधन को घेरे हुए हैं, और उनको युद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं दिखाई दे रहा है।
यह राष्ट्रवादी सरकार के विरोधी हैं
आज कमोवेश यही स्थिति तथाकथित किसान नेताओं की है, जो कि अहंकार और जिद्दी स्वभाव के वशीभूत हैं, विपक्ष की कुटिलता और सत्तालोलुपता के शिकार हैं, और चाटुकारों की भीड़ से घिरे हैं ।
और तमाम ऐसे लोग जो राष्ट्रवादी सरकार से “बदला” लेने को आतुर हैं, इस तथाकथित किसान आंदोलन के अगुआ बन गए हैं।
यह समझकर भी समझना नहीं चाहते
इसलिए हमें इस बात का पूर्ण विश्वास है कि मोदी सरकार कितना भी प्रयास कर ले, परन्तु उन्हें कभी नहीं समझा सकती जो सबकुछ समझकर भी कुछ समझना नहीं चाहते हैं।