चांदपुर विधानसभा क्षेत्र में चुनावी सरगर्मियां तेज़ी पकड़ने लगी हैं।
इसके साथ ही विभिन्न पार्टियों से टिकट मांगने वालों की भी लंबी लाईन लगी हुई है।
इस लाईन में लगे हुए लोग अपने आपको जनता का बड़ा हमदर्द और गरीबनवाज सिद्ध करने में लगे हैं।
हर कोई अपनी दौलत और ताक़त का प्रदर्शन कर रहा है
हर उम्मीदवार जनता के वोटों का ठेकेदार बन रहा है।
पार्टियों के टिकटों की नीलामी शुरू हो चुकी है। कौन कितनी बड़ी बोली लगा सकता है, यह होड़ सी मची हुई है।
हर कोई अपनी दौलत और ताक़त का प्रदर्शन करने में लगा हुआ है।
टिकट के दावेदारों द्वारा सम्बंधित राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेताओं और आलाकमानों के दरबारों में रोजाना हाजिरी लगाई जा रही है।
शराब की नदियां बहाई जा रही हैं
पार्टी आलाकमानों के करीबियों और विश्वासपात्रों के लिए मुर्गों की बलि चढ़ाई जा रही है और शराब की नदियां बहाई जा रही हैं, और कई जगहों पर तो सुनने में आया है कि शराब के साथ-साथ शवाब का भी जबरदस्त इंतज़ाम किया जा रहा है।
कुल मिलाकर आजकल सम्बंधित पार्टियों के बड़े नेताओं और उनके चाटुकारों की पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में है।
कोरोना काल में कहां थे नेताजी
लेकिन आज हम पूछना चाहते हैं कि कोरोना काल में जब एक आम इंसान बेरोजगार हुआ घर में कैद था, और उसका परिवार दाने-दाने को मोहताज़ था, जब लोगों के घरों में फाके हो रहे थे, बच्चे भूख से बिलख रहे थे, रोजगार-धंधे चौपट हो गए थे।
रिक्शाचालक और दिहाड़ी मजदूर पाई-पाई के लिए मोहताज हो रहे थे, उनके घरों के चूल्हे ठंडे हो चुके थे।
तब ये वोटों के तमाम ठेकेदार और टिकट के दावेदार कहाँ थे?
इनमें से कितने नेताओं ने कोरोना काल में आम जनता को राहत सामग्री पहुंचाई थी?
कितने लोगों ने कोरोना काल में गरीबों की मदद की
आज जो लोग पार्टी के टिकटों के लिए लाखों-करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाने को तैयार हैं, उनमें से कितने लोगों ने कोरोना काल में पाई-पाई को मोहताज़ हुए ग़रीबों की मदद की थी?
कोरोना काल में जब ग़रीब और बेबस जनता भूखे पेट करवटें बदल रही थी, तब यह नेतागण अपने-अपने एयरकंडीशनर कमरों में नरम औऱ गुदगुदे बिस्तरों पर कुम्भकर्णी नींद में थे। लेकिन आज इनका दिन का चैन और रातों की नींद हराम हो गई है।
आज जनता को यह सवाल पूछने का पूरा हक़ है कि समाज के जो लोग उनके वोटों की ठेकेदारी कर रहे हैं, वह उस समय किस बिल में जा छुपे थे, जब आम जनता को उनकी वास्तव में जरूरत थी।
यह प्रश्न केवल चांदपुर के नेताओं से नहीं
यह प्रश्न मात्र चांदपुर विधानसभा क्षेत्र के नेताओं से ही नहीं है, अपितु यह पूरे उत्तरप्रदेश के उन तमाम पाखंडी और मक्कार लोगों की जमात से है जो टिकट की दावेदारों में शामिल हैं, जो लोग अपने समाज औऱ अपनी बिरादरी के वोटों की ठेकेदारी करने में जुटे हैं.
गांधी के तीन बन्दर बने बैठे थे
यह सवाल उन तमाम लोगों से है जिन्होंने आज जाति, सम्प्रदाय और मज़हब की दुकानें सजा रखी हैं। जबकि कल यही लोग अपनी ही जाति, धर्म और सम्प्रदाय के लोगों को काल के गाल में जाते हुए देख और सुनकर भी अपने घरों में गांधी के तीन बन्दर बने बैठे हुए थे।
इन्हें न तो उन गरीब, बेबस और लाचार लोगों की चीखें सुनाई पड़ रही थीं, न उनका दर्द दिखाई पड़ रहा था और न ही उनके लिए सांत्वना और हमदर्दी के दो बोल ही निकल पा रहे थे।
क्या जनता इन्हें अपना नेता स्वीकार करेगी
क्या जनता गांधी के इन तीन बंदरों को अपना नेता स्वीकार करेगी? क्या इन निष्ठुर हाथों में अपना भविष्य सौंपना पसंद करेगी? क्या अपनी जिम्मेदारियों औऱ नैतिक दायित्वों से दूर भागने वालों को अपना नेता चुन पाएंगे आप?