
तमाम मीडिया स्रोतों के माध्यम से यह समाचार प्राप्त हुआ कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय BHU के कुलपति प्रोफेसर सुधीर कुमार जैन ने एक बार फिर बड़े विवाद को हवा दे दी है।
BHU में कुलपति ने कराया रोज़ा अफ्तार

ख़बर है कि कुलपति महोदय ने BHU के महिला महाविद्यालय में बीते बुधवार की शाम रोजा इफ्तार का आयोजन हुआ। इसमें कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन के साथ महाविद्यालय के रोजेदार शिक्षक, शिक्षिकाओं व छात्राओं ने अपना रोजा खोला।
BHU के छात्र संगठनों ने पुतला फूंककर जताया विरोध

समाचार मिला है कि BHU के छात्र संगठनों ने कुलपति की इस करतूत का पुरजोर विरोध किया है और उनका पुतला भी फूंका गया है। छात्रों का यह विरोध कितना सही है और कितना ग़लत। इसपर न केवल ध्यान देने की परम आवश्यकता है अपितु इस घटना को बेहद गम्भीरता से समझने औऱ उसपर गहन चिंतन की भी आवश्यकता है।
कुलपति की ढिठाई
इस देश के चंद तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल और स्वघोषित बुद्धिजीवी सहित तमाम वामपन्थी और कांग्रेसी भले ही कुलपति की इस हिमाकत और ढिठाई को गंगा-जमुनी तहज़ीब और भाईचारे का नाम देकर साम्प्रदायिक सौहार्द, प्रेम और सद्भावना की काल्पनिक कथाएं सुना रहे हों। और स्वयं कुलपति महोदय भी इसपर अपनी पीठ थपथपा रहे हों। परन्तु सत्य यह नहीं है।
AMU में भी कराओ नवरात्र फलाहार
जो लोग BHU में हुए इस रोजा अफ्तारी को भाईचारे का प्रतीक बता रहे हैं, उन तमाम स्वघोषित बुद्धिजीवियों से हमारा प्रश्न है कि क्या कभी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, उस्मानिया यूनिवर्सिटी अथवा जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में नवरात्र के अवसर पर कन्या पूजन का आयोजन कराया गया है? प्रश्न यह भी है कि क्या हाल ही में मुस्लिम विश्वविद्यालयों में श्री रामनवमी का पूजन अथवा कोई कार्यक्रम आयोजित किया है? क्या BHU में रोजा अफ्तार कराने वाले AMU में नवरात्र फलाहार कराने की हिमाकत कर सकते हैं??
स्वघोषित बुद्धिजीवियों की चुप्पी
इन प्रश्नों का उत्तर आपको केवल और केवल “नहीं” में ही प्राप्त होगा। रवीश कुमार, कुलपति जैन और तमाम इन जैसे स्वघोषित बुद्धिजीवी इन प्रश्नों का उत्तर न तो दे सकते हैं और न ही देना चाहते हैं।
हिंदुओं की खून-पसीने की हवा में उड़ाया जा रहा है
वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के समय जब एक मुस्लिम निजाम से चंदा मांगा गया था तो उसने अपना जूता फेंककर मारा था। आज हिन्दू समाज की गाढ़े खून-पसीने की कमाई को “भाईचारे” अथवा “गंगा-जमुनी तहज़ीब” के नाम पर उड़ाया जा रहा है।
कुलपति ने अपने खर्च और अपने आवास पर क्यों नहीं किया
अगर यह मान भी लिया जाए कि BHU के कुलपति महोदय द्वारा इस प्रकार के आयोजनों से साम्प्रदायिक सौहार्द बनाने की कोशिश की जा रही थी, तब उन्होंने यह कार्यक्रम अपने आवास पर अपने निजी खर्च पर आयोजित क्यों नहीं किया? जिन मुस्लिम शिक्षिकाओं और छात्राओं ने इसमें भाग लिया, उन लोगों ने स्वयं के खर्च पर और अपने आवासों पर इसका आयोजन क्यों नहीं किया।
जिहादियों को खुश करने की क़वायद
एक तरफ हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इस तरह के आयोजनों को राष्ट्र्पति भवन और प्रधानमंत्री कार्यालयों में बंद करने की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी का कुलपति विश्वविद्यालय परिसरों में इस प्रकार के अनावश्यक और आपत्तिजनक कार्य करके सेक्युलर दल्लों और जिहादियों को खुश करने की कवायद में लगे हुए हैं।
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बहुत सही लिखा विप्र श्रेष्ठ
हार्दिक आभार