जाने-माने उर्दू शायर जनाब बशीर बद्र साहब का एक शेर है- “कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यूँ ही कोई बेवफ़ा नहीं होता”.
आज के हालात में यह शेर समाजवादी के एक मज़बूत स्तम्भ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक दिग्गज नेता जनाब आज़म ख़ान साहब पर बिल्कुल सटीक बैठता है।
आज़म ख़ान अब भूमाफियों में गिने जाते हैं
एक समय उत्तरप्रदेश के कैबिनेट मंत्री रह चुके आज़म ख़ान आजकल भूमाफियों की गिनती में खड़े हो गए हैं। उनकी उम्र से ज़्यादा तो उनपर मुकदमे लगे हुए हैं। जिस शख़्स की भैंसे ढूंढने के लिये पुलिस के जवान दौड़भाग किया करते थे, शासन-प्रशासन जिसके सामने एक पैर पर खड़ा रहता था, एक ज़माने में जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बेताज बादशाह हुआ करता था। वही आज़म ख़ान जो आईएएस- आईपीएस अफसरों से जूते साफ कराने की बात किया करता था। आज जेल के एक कोने में पड़ा हुआ खामोश निगाहों से जेल के दरवाज़े की तरफ बड़ी उम्मीद से देखता है और आते-जाते पुलिस वालों और अफसरों की बूटों की धमक सुनकर चौंक जाता है।
आज़म ख़ान अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र बन गए हैं
कभी रामपुर के बेताज बादशाह कहलाने वाले आज़म ख़ान साहब की हालत आज ठीक वैसी ही है, जो एक ज़माने में बहादुर शाह ज़फ़र की हुई थी।
आज आज़म ख़ान की ज़ुबान पर भी वही शेर है जिसे किसी ज़माने में अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने गुनगुनाया होगा-
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें।
हमने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया।।
सपा से छुड़ाने लगे हैं दामन
एक समय था कि जब उत्तर प्रदेश की राजनीति आजम खान साहब के इर्दगिर्द घूमा करती थी। और आज आजम साहब राजनीतिज्ञों के इर्दगिर्द घूमते दिखाई दे रहे हैं।
अब ख़बर है कि आज़म ख़ान साहब समाजवादी पार्टी से अपना दामन छुड़ाने की तैयारियों में लगे हुए हैं।
समाजवादी पार्टी अब बुझता हुआ चिराग़ है
दरअसल, आज़म ख़ान एक बेहतरीन राजनीतिक सूझबूझ वाले दूरदर्शी नेता हैं।
2022 विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होते ही आजम खान समझ गए थे कि समाजवादी पार्टी अब बुझता हुआ चिराग़ है, जो बुझने से पहले बहुत ज़ोर से फड़फड़ा रहा है। और उसका तेल यानी मुस्लिम वोटबैंक अब धीरे-धीरे उससे किनारे होता जा रहा है।
मुसलमान सपा से दूरी बना रहे
यह कड़वा सच है कि उत्तर प्रदेश का मुसलमान अब सपा से दूरी बनाने लगा है, और आज़म ख़ान जैसे दूरदर्शी नेता इस बात को बख़ूबी जानते और समझते हैं। अखिलेश यादव भले ही कुछ भी दांवपेंच खेल लें, लेकिन समाजवादी पार्टी का परम्परागत वोट भविष्य में उससे अब कभी उतनी शिद्दत के साथ नहीं जुड़ने वाला।
जो अपने बाप का न हुआ…
उधर, अखिलेश यादव का अहंकारी और हिटलरशाही रवैया पार्टी के समझदार और दिग्गज नेताओं को रास नहीं आ रहा है।
एक सीधा सा सवाल है कि जो शख़्स अपने बाप का नहीं हुआ, वह किसी और का क्या होगा? यह सवाल आज़म ख़ान जैसे नेताओं के लिए भी मायने रखता है। और इसका जवाब भी वो बहुत बेहतर जानते हैं। इसलिए अखिलेश यादव पर से आज़म ख़ान भरोसा लगभग उठ चुका है। और अब इस शीशे में दरार आ चुकी है।
तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
जब शीशे में दरार आ जाती है तो उस शीशे को तोड़ देना ही बेहतर होता है। और बस यही करने का आज़म साहब ने भी मन बना ही लिया है।
अब तो अखिलेश यादव के लिए आज़म ख़ान साहब के पास बस एक ही शेर है-
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी।
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी।।