उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या के विरोध में महाराष्ट्र सत्तारूढ़ गठबंधन ने 11 अक्टूबर को यानी आज राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया है. एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के सत्तारूढ़ गठबंधन महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) ने शनिवार को कहा था कि यह दिखाने के लिए बंद का आह्वान किया गया है कि राज्य देश के किसानों के साथ है. शिवसेना के राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने शनिवार को कहा था कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या के विरोध में 11 अक्टूबर को महाराष्ट्र में बंद में पूरी ताकत से भाग लेगी।
अब ज़रा इस गठबंधन सरकार की तस्वीर का दूसरा रुख़ देखिए।
16 अप्रैल 2020 को सैंकड़ों उपद्रवियों ने दो हिंदू साधुओं और उनके एक ड्राइवर की गडचिंचले गांव , पालघर जिला, महाराष्ट्र, में महाराष्ट्र पुलिस की उपस्थिति में लाठी-डंडों से पीट-पीटकर बेहद निर्मम हत्या कर दी थी। यह घटना इतनी दर्दनाक और भयावह थी कि एकबारगी पूरा देश हिल उठ गया था। औऱ उन निर्दोष और असहाय हिन्दू साधुओं की भीड़ से करुण पुकार और उनकी विवशता भरी मुस्कुराहट जैसे मानो कह रहे हों कि- “हे ईश्वर इन्हें क्षमा कर दे क्योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं।” आज भी हर किसी को वह मार्मिक दृश्य अंदर तक हिला देता है। किंतु इस सबके पश्चात भी महाराष्ट्र सरकार औऱ गठबंधन नेताओं ने उन निर्दोष हिन्दू साधुओं की निर्मम हत्या पर महाराष्ट्र बन्द तो छोड़िए, दो शब्द सहानुभूति के भी नहीं बोले थे। और तो और उद्धव सरकार हैवानियत के इस नंगे नाच को देख-समझकर भी अंजान बनने का ढोंग करती रही थी। और बहुत बेशर्मी के साथ दोषियों के इस घृणित कुकृत्य पर पर्दा डालने में लग गई थी।
आज भी कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी का वह बेशर्मी भरा और संवेदनहीन रवैया ज्यों का त्यों बना हुआ है। इनमें से किसी ने भी उन चार नौजवानों की हत्या पर कोई शोक प्रकट नहीं किया जिन्हें लखीमपुर खीरी में किसानों की आड़ में कुछ उपद्रवियों और भिंडरवाला समर्थकों ने बड़ी बेहरमी के साथ लाठी-डंडों, तलवारों और बल्लम आदि से पीट-पीटकर मार डाला था।
प्रश्न उठता है कि क्या केवल किसान ही इंसान हैं, बाकी सभी को हैवान मान लिया जाएगा। क्या इस देश का अन्नदाता एक आम किसान इतना हैवान हो सकता है। शायद कदापि नहीं।
लखीमपुर खीरी के किसानों की आड़ लेकर अपनी राजनीति चमकाने वाली कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी गठबंधन महाराष्ट्र सरकार अपने गिरेबाँ में झांकने को बिल्कुल तैयार नहीं है। उल्लेखनीय है कि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के जारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2018 में देशभर में किसानी से जुड़े 10,349 लोगों ने खुदकुशी की, जिसमें से महाराष्ट्र के 3,594 किसान थे. साल 2017 में देशभर में 10655 किसानों ने खुदकुशी की जिसमें से महाराष्ट्र से 3701 किसान थे.
लेकिन लाशों पर राजनीति करने वालों को इन आंकड़ों पर नज़र डालने की फुर्सत ही कहाँ है, साहब।
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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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