हमसे टेलीफोन पर हुई बातचीत पर भी उन्होंने कहा कि उन्होंने NRC पढ़ा है, और उसके अंतर्गत जो फार्म भरा जायेगा उससे दलितों और पिछड़ों का आरक्षण भी खत्म हो जाएगा. यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि NRC का अभी तक ड्राफ्ट भी तैयार नहीं हुआ है. तब ऐसे में कांग्रेस के इन जिलाध्यक्ष महोदय ने कौन सा फार्म पढ़ लिया, यह बात हमारे गले नहीं उतर रही है.
उधर कांग्रेस की महासचिव प्रियंका वाड्रा का कहना है कि किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह नागरिकता का प्रमाण मांगे. प्रियंका गाँधी को यह समझ लेना चाहिए कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, दुनिया का हर देश अपने नागरिकों का रजिस्टर तैयार करता है.
आजादी के बाद 1951 में जनगणना के बाद पहला NRC तैयार किया गया था. जहाँ तक प्रश्न नागरिकता का प्रमाण मांगने का है तो प्रत्येक देश अपने स्थाई नागरिकों के लिए कुछ अलग नियम बनाता है और शरणार्थियों के लिए कुछ अलग नियम और शर्तें होते हैं. यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि NRC तैयार करने का काम प्रियंका वाड्रा के पिता और तत्कालीन कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री स्व. राजीव गाँधी के कार्यकाल में हुआ था. जो कि उस समझौते के अंतर्गत हुआ था जो उस समय राजीव गाँधी ने असम के नेताओं से किया था और यह नेता भी कांग्रेसी ही थे.
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि नागरिकता नियम २००९ के तहत किसी भी व्यक्ति की नागरिकता तय की जाएगी. ये कानून १९५५ के आधार पर बना है. किसी भी व्यक्ति के लिए भारत का नागरिक बनने के लिए ५ तरीके हैं- १- जन्म के आधार पर नागरिकता २- वंश के आधार पर नागरिकता ३- पंजीकरण के आधार पर नागरिकता ४- देशीयकरण के आधार पर नागरिकता ५- भूमि विस्तार के आधार पर नागरिकता
दूसरी और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल नागरिकता कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी पहुँच चुके हैं और अभी यह मसला कोर्ट में ही है. तब ऐसे में कोर्ट फैसले का इन्तजार क्यों नहीं किया जा रहा. क्या इसलिए कि बात-बात पर संविधान का हवाला देने वाली कांग्रेस पार्टी को भारतीय संविधान और भारतीय न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है या फिर इसलिए कि उनको लगता है कि अन्य तमाम मुद्दों की तरह इस मसले पर भी उन्हें कोर्ट से फटकार ही मिलेगी. एक पूर्व सुनियोजित षड्यंत्र के तहत कांग्रेस (काला अंग्रेज) और उसके तमाम सहयोगी दलों ने पूरे देश में एक कम्युनिटी विशेष के लोगों को दिगभ्रमित किया हुआ है. उनके बीच मोदी और आरएसएस द्वारा एक काल्पनिक हिन्दू राष्ट्र की रूपरेखा खींचकर एक ख़ास डर पैदा किया जा रहा है. लेकिन इस देश की सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह पूरे देश में खासकर एक कम्युनिटी विशेष के लोगों के बीच अपने प्रतिनिधियों के भेजकर CAA (नागरिकता संशोधन कानून) और NRC (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) के अंतर और उसके तमाम नियमों और शर्तों का विधिवत रूप से अवगत कराएँ. साथ ही समाज और उसके ठेकेदारों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह कौवे के पीछे न भागें बल्कि अपने कानों को टटोलकर देखें.