चांदपुर में कई ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन हिंदुत्व के लिए समर्पित कर दिया। लेकिन उसके बावजूद टिकट के लिए केवल एक “पप्पू भैया” ही क्यों?
इस प्रश्न का जवाब आपको ढूंढना होगा
यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब ढूंढना हर उस शख़्स का कर्तव्य बनता है जो कि किसी भी प्रकार से चांदपुर की राजनीति से जुड़ा है। और विशेषकर जिन लोगों का सम्बंध भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे हिन्दू संगठनों से है।
पिछले कुछ वर्षों का राजनीतिक इतिहास उठाइये
आप पिछले कुछ वर्षों का चांदपुर का राजनीतिक इतिहास उठाकर देख लीजिए। आपको मालूम होगा कि चांदपुर शहर के नगरनिकाय चुनाव से लेकर चांदपुर क्षेत्र के विधानसभा चुनावों तक भाजपा के टिकट के लिए केवल एक ही नाम सामने आता है।
और वह नाम है शहर के एक प्रसिद्ध उद्योगपति महोदय का जिन्हें प्यार से लोग “पप्पू भैया” भी कह देते हैं। पिछले एक लंबे समय से वह हर छोटे-बड़े चुनाव में टिकट की दावेदारी ठोंक देते हैं। आखिर क्यों?
इन्होंने अपना पूरा जीवन हिंदुत्व को समर्पित कर दिया
चांदपुर में कई ऐसे परिवार हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन आरएसएस और हिंदुत्व की विचारधारा को समर्पित कर दिया। जिसमें संजीव बंसल उर्फ काके परिवार, अनिल बंसल उर्फ क्रेशर वालों का परिवार, राधेश्याम कर्णवाल परिवार, पीडी गुप्ता परिवार, अशोक नेताजी का परिवार, पंडित जगत शर्मा परिवार सहित कई अन्य ऐसे नाम हैं जिनकी पीढियां कई वर्षों से हिन्दू और हिंदुत्व की सेवा करते आ रहे हैं।
यह वह लोग हैं जिन्होंने आरएसएस की विचारधारा को पुष्पित-पल्लवित करने के लिये वर्षों तक कठोर तपस्या की है, और आज भी कर रहे हैं। और भी कई ऐसे नाम हैं जो पर्दे के पीछे से लगातार सेवारत हैं। परन्तु इनमें से किसी ने भी कभी भाजपा के टिकट की अभिलाषा नहीं की है। क्या इन्हें अधिकार नहीं है?
क्या इनकी नीयत पर किसी प्रकार का कोई संदेह किया जा सकता है। यह वह लोग हैं जिन्होंने संघ की शाखाओं को नियमित किया, और दूसरों को उसमें जाने हेतु प्रेरित किया।
इन परिवारों का एक अलग रुतबा है
इसके अतिरिक्त कई ऐसे परिवार भी हैं जिनका समाज में एक अलग रुतबा है। जिसमें एक नाम कैलाश मित्तल परिवार का है, दूसरा डॉ. रामेश्वर मित्तल परिवार का है, तीसरा नाम लाला सुक्खन-भुक्खन परिवार, चौथा नाम लाला रामऔतार परिवार का है और पांचवा नाम है भगतजी पेट्रोल पंप वालों का परिवार।
यह वह नाम हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। राकेश-चुनील गुप्ता और बस्सी परिवार भी अपनी एक अलग पहचान रखता है। और भी ऐसे कई नाम हैं जिनके विषय में शायद हम और आप न जानते हों।
परन्तु प्रश्न फिर वहीं का वहीं है, कि आख़िर भाजपा किन कारणों से इन नामों पर स्वतः संज्ञान नहीं लेती। आख़िर “पप्पू” ही क्यों? क्या इसका एकमात्र कारण यह है कि वैश्य समाज में से किसी और ने अखाड़े में उतरने की कोशिश ही नहीं की। या फिर किसी को अखाड़े में उतरने ही नहीं दिया गया।
वैश्य समाज में यह सवाल आज नहीं तो कल अवश्य उठाया जाएगा। हालांकि दबे शब्दों में इस प्रश्न पर चर्चा चल रही है। लेकिन अभी तक किसी ने मुखर होकर इस सवाल का जवाब मांगने का कोई प्रयास नहीं किया है। लेकिन एक दिन मांगेंगे जरूर, बस प्रतीक्षा कीजिये।