संविधान के आर्टिकल 19 के मुताबिक अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार पर 8 किस्म के प्रतिबंध हैं.
राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक-व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, कोर्ट की अवहेलना, मानहानि, हिंसा भड़काऊ, भारत की अखंडता व संप्रभुता… इनमें से किसी भी बिंदु के तहत अगर कोई बयान या लेख आपत्तिजनक पाया जाता है तो उसके खिलाफ सुनवाई और कार्रवाई के प्रावधान हैं.
हेट स्पीच पर क्या प्रावधान है
भारतीय दंड विधान यानी आईपीसी के सेक्शन 153(A) के तहत प्रावधान है कि अगर धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, रिहाइश, भाषा, जाति या समुदाय या अन्य ऐसे किसी आधार पर भेदभावपूर्ण रवैये के चलते बोला या लिखा गया कोई भी शब्द अगर किसी भी समूह विशेष के खिलाफ नफरत, रंजिश की भावनाएं भड़काता है या सौहार्द्र का माहौल बिगाड़ता है, तो ऐसे मामले में दोषी को तीन साल तक की कैद की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
हेट स्पीच में कैद और जुर्माना दोनों
आईपीसी के सेक्शन 295(A) के तहत भी तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सज़ा का प्रावधान है. यह सेक्शन पिछले से इसलिए अलग है क्योंकि इसमें देश के किसी भी समुदाय की केवल धार्मिक भावनाएं आहत करने को लेकर व्यवस्था है. धार्मिक भावनाओं के अलावा किसी और किस्म के भेदभाव का ज़िक्र इस सेक्शन में नहीं है.
सेक्शन 95 राज्य को यह अधिकार देता है
क्रिमिनल प्रोसीजर कोड का सेक्शन 95 राज्य को अधिकार देता है कि वह किसी प्रकाशन विशेष को प्रतिबंधित कर सके. इस सेक्शन के मुताबिक सेक्शन 124ए, सेक्शन 153ए या बी, सेक्शन 292 या 293 और सेक्शन 295ए के तहत अगर कोई प्रकाशन (अखबार, किताब या कोई भी दृश्यात्मक प्रकाशन) आपत्तिजनक करार दिया जाता है तो केंद्र या भारत का कोई राज्य उसे प्रतिबंधित कर सकता है.
हेट स्पीच की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं है
हेट स्पीच अथवा भड़काऊ बयान का कोई ठोस आधार नहीं है, सही मायने में इसकी कोई स्पष्ट व्याख्या ही नहीं है। सच पूछिये तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को स्वछंदता समझने वाले उद्दंड लोगों के मुहं पर लगाम लगाने के लिये इस शब्द “हेट स्पीच” का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन विडम्बना यह है कि सत्तापक्ष के लोगों ने जागरूक समाज के लोगों का दमन करने के लिए इस कानून का दुरुपयोग किया है। और हिटलरशाही सरकारों ने अपने तमाम विरोधियों का मुहं बन्द रखने के लिए इसका केवल और केवल दुरुपयोग ही किया।
कानून की नजर में क्या है हेट स्पीच, कितनी हो सकती है सजा
तुष्टिकरण के लिए किया दुरुपयोग
तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों ने इस कानून का दुरुपयोग कर बहुसंख्यक वर्ग को “गांधी के तीन बन्दर” बनाकर छोड़ दिया। हेट स्पीच कानून का सबसे अधिक दुरुपयोग करने वाले वही लोग हैं जिन्होंने इस कानून का निर्माण किया था।
धर्म संसद में भड़काऊ भाषण: हेट स्पीच
जय श्रीराम कहना भी हेट स्पीच जैसा ही बना
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के इस देश में ‘जय श्रीराम’ कहना और ‘भारत माता की जय’ बोलना भी “हेट स्पीच” सा ही बन गया है। जबकि दूसरी ओर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम पर टीका-टिप्पणी करने और भारत माता को डायन बताने वालों को “सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म” का मसीहा बताया जाता है।
शांतिदूत और शांति का मसीहा बताया जाता है
अजीब विडम्बना देखिये कि जो लोग 100 करोड़ को 15 मिनट में काटने की बात कहते हैं, जो लोग चिकन नेक काटने के लिये उकसाते हैं, जो श्रीराम मंदिर को तोड़कर पुनः बाबरी मस्जिद बनाने की बात करते हैं, जो लोग खुलेआम सड़कों पर मज़हबी उन्मादी नारे लगाते हैं, जो लोग सार्वजनिक रूप से हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान करते हैं, जो लोग खुलेतौर पर संविधान को चुनौती देते हैं, ऐसे तमाम लोगों को “शांतिदूत” और “शांति का मसीहा” बताया जाता है।
यही लोग लोकतंत्र को खतरे में बताते हैं
ऐसे तमाम लोग जो वास्तव में “हेट स्पीच” देते हैं, अक्सर वही लोग इस देश में संविधान की दुहाई देते हैं, यही लोग लोकतंत्र को खतरे में बताते हैं, इन्हीं लोगों का मज़हब ख़तरे में आता है। और यही लोग ईशनिंदा की आड़ में जीने का हक़ छीन लेते हैं।
इनकी ज़बान पर कब लगाम लगेगी
इन लकीर के फ़क़ीर और उद्दंड लोगों के लिए कोई संविधान, कोई तंत्र मायने नहीं रखता। यह हेट स्पीच के वास्तविक जन्मदाता हैं।
आख़िर इनकी ज़बान पर लगाम कब लगेगी।
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