हमारे दृष्टिकोण से आजकल इस देश में तीन तरह के लोग हैं। एक अंधभक्त, दूसरे जिन्नाभक्त और तीसरे बगुला भगत। इनमें से बगुलाभगत वाली श्रेणी पर अपनी अगली पोस्ट में चर्चा करेंगे।
अभी हम केवल अंधभक्त और जिन्नाभक्त श्रेणी का विश्लेषण करेंगे।
इस देश में जो लोग भारत राष्ट्र, भारतीय संस्कृति, सभ्यता, भाषा और परम्पराओं के प्रति पूर्ण आस्था, विश्वास और समर्पण रखते हैं।
वह तमाम लोग जो अपनी मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति निष्ठावान हैं, और जिन्हें वंदे मातरम और भारत माता की जय कहने में गर्व की अनुभति होती है।
जो भारतीय महापुरुषों, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी सरीखे राष्ट्रनायकों अपना नायक मानते हैं और विदेशी आक्रांताओं को खलनायक के रूप में परिभाषित करते हैं।
जिनके हृदय में भारत के सभी पवित्र ग्रन्थों, तीर्थस्थलों, ऋषि-मुनियों तथा प्राचीन इतिहास के प्रति अगाध श्रद्धा और सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी है।
जो भारत के प्रत्येक शत्रु देश को अपना परम शत्रु मानते हैं। और जिनकी पूरी आस्था और विश्वास भारत के संविधान में है, वह सभी “अंधभक्त” कहे जाते हैं।
दूसरे शब्दों में जो “भारत राष्ट्र का प्रहरी” है, वही अंधभक्त कहलाता है। चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, मत अथवा सम्प्रदाय का हो।
जबकि इसके ठीक विपरीत जो “लड़कर लिया पाकिस्तान, हंसकर लेंगे हिंदुस्तान” की जिन्नावादी अवधारणा के प्रति पूर्ण आस्था रखते हैं। जो विदेशी आक्रांताओं को अपना नायक मानते हैं।
जो पाकिस्तान के जनक मौहम्मद अली जिन्ना की तस्वीरों को अपने सीने से लगाये घूमते हैं किंतु स्वातन्त्र्य वीर सावरकर सरीखे राष्ट्रभक्तों के चित्र लगाने पर आपत्तियां जताते हैं।
जिन्हें वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारों से आपत्ति है, परन्तु “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाना वह अपना जन्मसिद्ध अधिकार बताते हैं।
जो “आतंकवाद” को “क्रांति” और “आतंकवादियों” को क्रांतिकारी के रूप में परिभाषित करते हैं। जो पाकिस्तान के मैच हारने पर टीवी तोड़ देते हैं, लेकिन भारत के मैच हारने पर मिठाईयां बांटते हैं।
जो “आतंकियों” की मौत पर छातियाँ पीट-पीटकर विधवा विलाप करते हैं, लेकिन भारतीय जवानों की वीरगति पर घी के दिए जलाकर खुशियां मनाते हैं।
जो वंदे भारत ट्रेन पर पत्थर बरसाते हैं। जो “पत्थर मार गैंग” और “टुकड़े-टुकड़े गैंग” की दृढ़ता के साथ पैरवी करते हैं। जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
जिनके लिए “राष्ट्रधर्म” से बड़ा “स्वधर्म” है। वह तमाम लोग ही सही मायने में “जिन्नाभक्त” हैं। दूसरे शब्दों में यही तमाम लोग “राष्ट्र के शत्रु” कहे जा सकते हैं।
- ✍️मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार-सम्पादक उगता भारत
9058118317
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