जनविश्वास यात्रा के दौरान गुलाब सिंह डिग्री कॉलेज में सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की जनसभा में सत्ता के नशे में चूर भाजपा नेताओं द्वारा मीडिया की कोई सुध नहीं ली गई।
सत्ता की हनक में यह सब नहीं देख पाए
मीडियाकर्मियों को केवल एक तख़्त की व्यवस्था की गई थी जिसपर चांदपुर शहर के अतिरिक्त बाहर से आने वाले मीडिया के लोग भी खड़े हुए थे। बार-बार उसके टूटने का डर सा बना हुआ था। लेकिन सत्ता की हनक में भाजपा नेताओं को मीडिया की यह परेशानी दिखाई नहीं दे रही थी।
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सत्ता पक्ष को नहीं थी इसकी परवाह
प्रिंट मीडिया के लोगों के बैठने की कोई समुचित व्यवस्था भी नहीं की गई थी। कई वरिष्ठ पत्रकार अपने लिए कुर्सियां तलाशते घूमते रहे। जबकि कइयों को तो खड़े रहकर ही रिपोर्ट्स तैयार करनी पड़ी। लेकिन सत्ता पक्ष के नेताओं को इसकी कोई चिंता नहीं थी। वह तो आराम से अपने सिंहासन पर विराजमान रहे।
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सत्ता का मद इंसान को अंधा बना देता है
कहते हैं कि सत्ता का मद इंसान को अंधा, बहरा और गूंगा बना देता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण नितिन गडकरी की जनसभा में स्पष्ट देखने को मिला। जनसभा में कई घण्टों की प्रतीक्षा के पश्चात मंत्री जी पधारे। जहां एक ओर जनता नेताजी के दर्शनों की प्यासी थी, वहीं दूसरी ओर मीडियाकर्मियों का गला पानी की प्यास से सूख रहा था। काफी देर बाद सत्ता पक्ष के नेताओं ने कुछ छोटी-छोटी बोतलों में चुल्लू भर पानी भेजा, जो कि ऊंट के मुहं में जीरा साबित हुआ। प्यास इतनी शिद्दत से लगी थी कि वहां उपस्थित मीडिया के लोग पानी की तरह बोतलों पर बाज की तरह झपट पड़े। और ऐसी छीनाझपटी मची कि कोई बोतल ले गया, कोई ढक्कन तो कोई पानी गटक गया।
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फ़ोटो खिंचवाने में आगे रहे नेताजी
यहाँ मज़े की बात यह है कि सत्ता धारियों में अपने फोटो और वीडियो बनवाने की तो ख़ूब होड़ मची हुई थी। भाजपा के टिकट के दावेदारों में मीडिया के सामने आने की ख़ूब आपाधापी देखी गई। लेकिन इस सबके बावजूद किसी को भी इस बात की चिंता नहीं थी कि सुबह से भूखे-प्यासे बैठे मीडियाकर्मियों के लिए कुछ खाने-पीने का कोई इंतज़ाम भी कर दिया जाए।
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मीडिया भी है इसके लिए जिम्मेदार
हालांकि इस सबके लिए केवल सत्ता पक्ष के नेताओं और जनसभा के आयोजकों को अकेले जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिए मीडिया के वह तमाम लोग भी जिम्मेदार हैं जो 100-100 रुपये के विज्ञापनों के लिए छुटभैया नेताओं की चमचागिरी और चाटुकारिता में लगे रहते हैं।
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छपास रोग वाले तो ध्यान रखें
अंत में हम तो बस इतना ही कहना चाहेंगे कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। उसका मान-सम्मान भी बेहद जरूरी है। कम से कम वह लोग तो मीडिया का ध्यान रख ही सकते हैं, जिन्हें “छपास रोग” लगा हुआ है। सत्ता का क्या है साहब, आनी-जानी माया है। कभी योगी के पास तो कभी भोगी के पास।