जो लोग मुझे मुसलमानों का विरोधी बता रहे हैं, पक्षकार लिख रहे हैं, मोदीभक्त बताकर गालियां दे रहे हैं या मुझे पानी पी-पीकर कोस रहे हैं, उनको बताना चाहूंगा कि-
मेरा मानना है कि जो शख़्स अपनी क़ौम, अपने मज़हब और अपने देश का वफ़ादार नहीं हो सकता, वह इस दुनिया में किसी का भी वफ़ादार नहीं हो सकता। मेरी क़ौम हिन्दू है, मेरा मज़हब हिंदुत्व है और मेरा देश हिन्दुस्थान है, अगर मैं इसका वफ़ादार नहीं हो सकता तो मैं तुमसे भी वफ़ा नहीं कर सकता।
चांदपुर के मुस्लिम दोस्तों के लिए एक शेर अर्ज़ है-
*तुमको उनसे मौहब्बत है, हुआ करे।*
*मुझको मेरी तन्हाइयों से जुदा न करो।।*
*तुमको मुबारक़ हों तुम्हारी वफ़ाएँ मगर।*
*मुझे बेवफ़ा कहकर यूं रुसवा न करो।।*
इस शहर के तमाम मुस्लिम नेताओं, समाजसेवियों, बुध्दिजीवियों से एक प्रश्न बहुत विनम्रता से पूछना चाहता हूं कि “शाहीन बाग़ में बैठी आपकी माताओं-बहनों और बेटियों जिनकी संख्या बमुश्किल सैंकड़ों में होगी, के लिए आपके दिलों में कितना दर्द, संवेदना और हमदर्दी उमड़ रही है। आज देश का लगभग प्रत्येक मुसलमान मानसिक तौर पर शाहीन बाग़ से जुड़ा है, और उस विरोध-प्रदर्शन का तन-मन- धन से समर्थन करने को व्याकुल है। जबकि उन बहन-बेटियों की सुरक्षा के लिए पुलिस-प्रशासन 24 घण्टे मुस्तेदी से लगा है।” परंतु कभी आपने सोचा है कि इस देश का हिन्दू-बौद्ध-सिक्ख औऱ जैन 1947 से आज तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अपने भाई-बहनों, माता-बहनों और बेटियों पर जुल्मों-सितम होते देखकर भी खामोश रहा, क्या उसे दर्द नहीं होता होगा? जो भेड़िये वहां पर बहन-बेटियों की इज्ज़त-आबरू पर हमला करते रहे, जिन लोगों को उनके घर से बेघर कर दिया गया, जिनकी बेटियां जबर्दस्ती उठा ली गईं और सामुहिक बलात्कार की शिकार हुईं, जिनको जबर्दस्ती धर्मपरिवर्तन के लिए मजबूर किया गया। जिनकी नस्लों को बर्बाद कर दिया गया, जो 23 प्रतिशत से मात्र 1.6 प्रतिशत रह गए, क्या उनके दर्द से भारत के हिंदुओं-सिक्खों-बौद्ध और जैनियों को कोई मतलब नहीं होना चाहिए?
आप मुसलमान हैं इसलिए आपको यह हक़ है कि आप दुनिया के किसी भी मुसलमान के हक़-नाहक, जायज़-नाजायज़ समर्थन के लिए आवाज़ उठा सकते हैं, सीरिया, इराक़, ईरान, रोहिंग्या मुसलमानों का दर्द आपका दर्द है, फिर भी आप सेक्युलर हैं, आप सँविधान की रक्षा कर रहे हैं।
लेकिन हम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में सिसकते हिदुओं के लिए आवाज़ उठाएं तो हम कट्टरपंथी हो गए, हम अंधभक्त हो गए।
अगर आपको शाहीन बाग़ में बैठी अपनी माताओं-बहनों-बेटियों और तमाम मुसलमान देशों से हमदर्दी हो सकती है तो मुझे भी इस दुनिया के तमाम हिन्दू-सिक्ख-जैन-बौद्ध भाइयों से मौहब्बत है।
– *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*