शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि पाकिस्तान के क़ायदे-आज़म मौहम्मद अली जिन्ना एक बेहद सेक्युलर इंसान थे। और इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि डॉ. सरोजिनी नायडू ने जिन्ना को “हिन्दू-मुस्लिम एकता का राजदूत” कहा था। इसी जिन्ना ने उस समय के मुसलमानों के सबसे आंदोलन “ख़िलाफ़त आंदोलन” में भाग लेने पर यह कहकर गांधी जी का विरोध किया था कि यह मज़हबी मसला है और इसमें राजनीति का दख़ल उचित नहीं। बाद में यही जिन्ना पाकिस्तान का जनक बन गया और इसी शख़्स के कहने पर मुस्लिम लीग ने कलकत्ता में “डायरेक्ट एक्शन दिवस” मनाया था जिसमें लाखों हिंदुओं की नृशंसता पूर्वक हत्या हो गई थी।
यह भी शायद कम लोगों को मालूम है कि गांधी और जिन्ना दोनों के विचार एकदूसरे से बिल्कुल नहीं मिलते थे, यहाँ तक कि जिन्ना ने गांधी के असहयोग आंदोलन से भी असहमति दर्शाई थी।
टू नेशन थ्योरी का सिद्धांत जिन्ना ने नहीं बल्कि सर सय्यद अहमद खान ने 1867 में दिया था, पाकिस्तान शब्द भी जिन्ना ने नहीं दिया बल्कि रहमत अली ने दिया था। अल्लाहमा इक़बाल जिन्ना से सहमत नहीं थे लेकिन हिन्दू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग क्षेत्रों की मांग जरूर उन्होंने रखी थी।पर वह भारत के विभाजन के पक्ष में नहीं थे।
आजकल जिसे देखो जिन्ना बनने की कोशिश में लगा है, चाहे ओवैसी बन्धु हों, चाहे शरजील इमाम हो, चाहे फैजुल हसन हो, चाहे अमनुत्तल्ला खान हों या फिर कोई और।
जिन्ना बनने के लिए बेहद शातिर और एक खास रणनीति की आवश्यकता होती है, जिन्ना ने कुछ भी नहीं पकाया था बल्कि उसने पके-पकाए को खाना शुरू कर दिया था।
आज जो लोग मुसलमानों के रहनुमा बनने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं, वह लोग केवल मुग़ालते में जी रहे हैं। क्योंकि खुद मुसलमान ही किसी को जिन्ना बनाने की कोशिश में नहीं है। पूरे भारत का मुसलमान यह जानता है कि इस्लाम खतरे में नहीं है और न ही हो सकता है। मुसलमानों को यह भी पता है कि नागरिकता संशोधन कानून से उनकी खुद की नागरिकता को कोई खतरा नहीं है। अलबत्ता इतना ज़रूर है कि NRC को लेकर उनके मन में थोड़ा बहुत खौफ़ है लेकिन उसके लिए उनके पास काफी वक्त और तमाम दरवाजे हैं जिनपर जाकर वह अपनी आवाज़ उठा सकते हैं।
लेकिन दिक़्क़त उन लोगों को ज़्यादा हो रही है जो मुसलमानों के रहनुमा बनने या कहिए कि जिन्ना बनने की कोशिशों में लगे हैं। फिलहाल सबसे ज्यादा दर्द उन्हीं को हो रहा है। अगर मोदी-शाह अपने सीने चीरकर भी इन्हें दिखला दें तो भी यह विश्वास नहीं करने वाले क्योंकि यह चाहते ही नहीं कि यह मुद्दा खत्म हो।
क्रमशः
-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
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