जब भी विपक्ष के किसी नेता या नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध कर रहे किसी प्रदर्शनकारी से आप यह पूछेंगे कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश की जनता को यह आश्वासन दिया है कि CAA से भारत के किसी भी नागरिक की नागरिकता को कोई खतरा नहीं है, तब यह विरोध-प्रदर्शन क्यों? तब वह तपाक से एक ही जवाब देता है कि हमें मोदी जी की बातों पर भरोसा नहीं है, क्योंकि मोदी झूठ बोलता है। दूसरा सवाल अगर उनसे यह पूछा जाए कि आप यह धरना-प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं? तो हाथों में पत्थर लिए या “फ्री कश्मीर” का बैनर गले में लटकाए घूमता या “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह” जैसे देशद्रोही नारे लगाता टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य भी आपको यही जवाब देगा कि हम संविधान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वह इसे क्रांति का नाम भी दे सकता है।
परन्तु क्या किसी के पास इस प्रश्न का उत्तर है कि जब संसद जिसे लोकतन्त्र का मंदिर माना जाता है, और विधायिका जिसे लोकतंत्र का एक मजबूत स्तम्भ माना जाता है, ने इस कानून को बहुमत से पास कर दिया और देश के सर्वोच्च पद पर आसीन महामहिम राष्ट्रपति महोदय ने भी उसपर अपनी सहमति की मोहर लगा दी।
तब उस कानून पर विश्वास क्यों नहीं किया जा रहा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी धर्म, जाति, मत, मज़हब, या सम्प्रदाय विशेष के प्रधानमंत्री नहीं है बल्कि वह संवैधानिक व्यवस्था से चुनी हुई सरकार के मुखिया हैं जिसे इस देश की जनता ने अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा है।
इसके बावजूद कुछ लोगों, और कुछ हठी और दम्भी मुख्यमंत्रियों ने सर्वोच्च न्यायालय में CAA के ख़िलाफ़ याचिका डाली हुई है जिसपर माननीय सर्वोच्च न्यायालय को आने वाली 22 जनवरी को फ़ैसला लेना है।
तब ऐसे में यह प्रश्न स्वावभाविक ही है कि आखिर संविधान के स्वयम्भू रक्षक बने पाखंडियो को क्या इस देश की न्यायपालिका पर भी भरोसा नहीं है?
मोदी झूठ नहीं बोलता है, मोदी ने जो वादे इस देश की जनता से किये थे, उन्हीं वादों को पूरा करने के लिए वह प्रतिबद्ध है। मोदी से आप सत्य की ही अपेक्षा करें चूंकि वह एकमात्र ऐसा व्यक्तित्व है जो बिना किसी भेदभाव के, बिना के किसी पूर्वाग्रह के इस देश की एक अरब पैंतीस करोड़ जनता के हितों का ध्यान करते हुए इस देश में शांति, सुरक्षा और सौहार्द का वातावरण बनाये रखने का हरसम्भव प्रयास कर रहा है।