पंजाब के निवर्तमान मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता चरण जीत सिंह चन्नी सहित कुछ विपक्षी नेताओं, पप्पूजीवियों, आन्दोलजीवियों, टुकड़े-टुकड़े गैंग और जिहादियों का आरोप है कि लखीमपुर खीरी कांड ने जलियांवाला बाग कांड की याद ताज़ा कर दी।
*२१ जुलाई १९९३* को पश्चिम बंगाल में तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ कलकत्ता में राइटर्स बिल्डिंग तक एक विरोध मार्च का आयोजन किया गया था। उनकी मांग थी कि सीपीएम की “वैज्ञानिक धांधली” को रोकने के लिए वोटर आईडी कार्ड को वोटिंग के लिए एकमात्र आवश्यक दस्तावेज बनाया जाए। विरोध के दौरान पुलिस ने १३ लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी और कई अन्य घायल हो गए। इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने कहा था कि “पुलिस ने अच्छा काम किया है।” २०१४ की जांच के दौरान, उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुशांत चटर्जी ने पुलिस की प्रतिक्रिया को *”अकारण और असंवैधानिक” बताया। न्यायमूर्ति चटर्जी ने कहा, *”आयोग इस नतीजे पर पहुंचा है कि यह मामला जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी बदतर है।”*
*7 नवम्बर 1966* को हरियाणा के करनाल ज़िले से जनसंघ के सांसद स्वामी रामेश्वरानंद उस एक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. उनकी मांग थी कि देश में एक क़ानून बने जिसके अनुसार गोहत्या को अपराध माना जाए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस माँग का समर्थन कर रहा था. इस माँग को लेकर हज़ारों साधु-संत अपनी गायों के साथ दिल्ली चले आए। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तत्कालीन कांग्रेस सरकार के आदेश पर इन निहत्थे और निर्दोष साधु-संतों पर पुलिस बल ने सीधे गोली चलाई थी, जिसमें आधिकारिक तौर पर 10 लोगों की मृत्यु हुई थी। हालांकि अन्य स्रोतों ने इस गोलीबारी में मरे लोगों की संख्या सैंकडों में बताई है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने अपनी क़िताब ‘बैलेट: टेन एपिसोड्स देट हैव शेप्ड इंडियन डेमोक्रेसी’ में 1966 की उस घटना का वर्णन किया है. उस समय देश की प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी थीं जोकि प्रियंका वाड्रा और राहुल गांधी की दादी हैं।
*31 अक्टूबर 1984* को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी और इसके अगले रोज़ से ही दिल्ली और देश के दूसरे कुछ हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे.
कुछ साल पहले इन दंगों पर नज़र डालने वाली एक किताब ‘व्हेन ए ट्री शुक डेल्ही’ छपी थी. इसमें दंगे की भयावहता, हताहतों और उनके परिजनों के दर्द और राजनेताओं के साथ पुलिस के गठजोड़ का सिलसिलेवार ब्यौरा है. इस भयावह घटना पर टिप्पणी करते हुए 19 नवंबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री और इंदिरा गाँधी के उत्तराधिकारी उनके पुत्र राजीव गाँधी ने बोट क्लब में इकट्ठा हुए लोगों के हुजूम के सामने कहा था-
*”जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी़, तो हमारे देश में कुछ दंगे-फ़साद हुए थे. हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध आया, कितना ग़ुस्सा आया और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है. जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है.”*
यह बयान हजारों बेघर, बेसहारा सिख परिवारों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा था, जिनके स्वजन इन दंगों में जिंदा जलाए दिए गए, तलवारों से बड़ी बेरहमी से काट दिए गए थे।
*30 अक्टूबर 1990* को क़रीब 1 लाख लोग अयोध्या पहुँच चुके थे, जिसमें 20,000 साधु-संत ही थे। सरयू नदी के पुल पर जब कारसेवक जमा हुये, तब प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार के आदेश पर पुलिस ने गोली चलाई। मंदिर परिसर में गुम्बद पर चढ़े कारसेवकों पर गोलियाँ चलाई गईं। नींव की खुदाई कर रहे लोगों पर गोली चलाई गई। जब कारसेवक गुम्बद पर चढ़े हुए थे, तब सीआरपीएफ ने भी गोली चलाई थी, सीमा सुरक्षा बल ने भी फायरिंग की। कारसेवा करते हुए क़रीब 11 लोग मौके पर ही शहीद हो गए थे। इसके विरोध में भड़के दंगों में कई लोग मारे गए थे। क़रीब 30 शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा था। सुरक्षा बलों की इस सीधी गोलीबारी में मस्जिद के गुम्बद पर झंडा फहराने वाले *कोठारी बन्धु* भी शहीद हो गए थे।
माननीय मुलायम सिंह यादव ने नवंबर 2017 में अपने 79वें जन्मदिन के मौके पर सपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए अपने इस कृत्य को जायज ठहराया था। श्री मुलायम ने इस गोलीकांड के 27 वर्षों बाद कहा था कि देश की *”एकता और अखंडता’ के लिए अगर सुरक्षा बलों को गोली चला कर लोगों को मारना भी पड़े तो ये सही था। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा था कि अगर इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षा बल ज़रूर मारते।* यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उस समय देश के गृहमंत्री मुफ़्ती मौहम्मद सईद थे।
और तो और जब लखीमपुर खीरी कांड कक लेकर कांग्रेसी छाती पीट रहे हैं, तभी राजस्थान के हनुमानगढ में अशोक गहलौत सरकार के आदेश पर प्रदेश के किसानों पर लाठीचार्ज किया जा रहा था।
समझ नहीं आता कि कांगी, वामी और उनके पिछलग्गू दलों के नेता अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांकते।
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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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