भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बीती 24 सितंबर को अमेरिका के राष्ट्रपति को टैग करके ट्वीट किया। टिकैत ने लिखा कि “भारतीय किसान पीएम मोदी की सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। पिछले 11 महीने के विरोध प्रदर्शन के दौरान 700 किसानों की जान जा चुकी हैं। इस काले कानून से हमारी रक्षा होनी चाहिए। कृपया पीएम मोदी से अपनी मीटिंग में हमारे मुद्दों पर भी ध्यान दें।”
इससे पूर्व पीडीपी अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती साहिबा ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करने की सलाह दी थी। AIMIM अध्यक्ष जनाब असदुद्दीन ओवैसी और नेशनल कांफ्रेंस के फ़ारुख अब्दुल्ला साहब ने तालिबान से बातचीत करने की सलाह दी थी। कांग्रेस नेताओं ने हमेशा ही भारत के अंदरूनी मसलों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने की कोशिश की है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण न किया होता तो आज POK हमारा होता। कांग्रेस के युवराज श्री राहुल गांधी ने भी विदेशों में भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। अपने घर का झगड़ा चौराहों पर ले जाना शायद विपक्ष की सबसे बड़ी कमज़ोरी रही है। जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अक्सर भारत की छवि धूमिल हुई है।
अब स्व. चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के सुपुत्र और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति को ट्वीट करके भारत के अंदरूनी मामलों को अंतरराष्ट्रीय पटल पर रखने का असफ़ल प्रयास किया है।
अपने मंचों से “अल्लाह हू अकबर” का नारा लगाने वाले टिकैत साहब से हमें यह आशा नहीं थी कि वह सीधे जो बाइडेन साहब के दरबार में घण्टा बजायेंगे, हमें तो पूरा विश्वास था कि टिकैत साहब तालिबान के मुल्ला बरादर से गुहार लगाएंगे या फिर इमरान खान से अपनी समस्याओं को साझा करेंगे। तुर्की और बांग्लादेश के मुखियाओं से बात करेंगे अन्यथा शी जिनपिंग से तो शत-प्रतिशत मुलाकात कर ही लेंगे। लेकिन टिकैत साहब ने हमारी सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। राकेश टिकैत साहब ने तो तमंचे का लाइसेंस लेकर सीधा तोप का ऑर्डर दे दिया।
क्या कभी राकेश टिकैत ने यह विचार किया कि उनके स्व. पिताश्री महेंद्र टिकैत ने कभी किसी बाहरी हस्तक्षेप के लिए मदद की गुहार क्यों नहीं लगाई? जबकि बाबा टिकैत अपने समय के बड़े किसान नेताओं में गिने जाते थे। श्रीमान राकेश टिकैत को यह समझ नहीं आ पा रहा है कि वह किसान हितों की बात करते-करते विपक्ष के राजनीतिक हितों को साधने में लग गए हैं। इस देश का सच्चा किसान भारत की आन, बान और शान के लिए अपनी जान दे सकता है। जिस किसान का बेटा सीमाओं पर बंदूक ताने, और दुश्मन को निशाने पर लिए खड़ा है, उस किसान का हित देशहित से बड़ा नहीं हो सकता, और यह बात शायद टिकैत साहब बहुत बेहतर तरीके से समझ पा रहे होंगे।
इस समय पूरा विश्व आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है और अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद तो ख़तरा और भी बढ़ गया है, उधर चीन, पाकिस्तान और तुर्की लगातार भारत को घेरने में लगे हैं। ऐसे समय में भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय सेना का उत्साहवर्धन करे। श्रीमान राकेश टिकैत को यह भी समझना होगा कि राष्ट्र प्रथम है और राष्ट्र सर्वोपरि है। कोई भी समस्या राष्ट्र की समस्या से बड़ी नहीं हो सकती और कोई भी हित राष्ट्र के हित से अधिक मूल्यवान नहीं हो सकता।
राकेश टिकैत साहब को समझना होगा कि विपक्ष उनके कंधे पर रखकर निशाना लगा रहा है। विपक्ष को किसानों के हित की इतनी अधिक चिन्ता होती तो शायद आज किसानों के समक्ष कोई समस्या ही नहीं होती। किसान तो किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह के पास भी गुहार लगाने गया था, और स्वयं बाबा टिकैत अपने पूरे जीवन किसान हितों के लिए पूर्ववर्ती सरकारों से लड़ते रहे। इस सबके बावजूद आज तक किसान और सरकार के बीच का संघर्ष अनवरत जारी है। और हमेशा चलती रहेगी। कोई बाइडेन या टिकैत उस संघर्ष को सदा के लिए नहीं मिटा सकता।
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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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