कांग्रेस ने कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी के कंधों पर अपना सर रख दिया है। कहते हैं कि डूबते को तिनके सहारा चाहिए होता है, और कांग्रेस का जहाज डूब रहा है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि ख़ुद कन्हैया कुमार कह रहे हैं। कन्हैया कुमार वही हैं जो जेएनयू में प्रति वर्ष दुर्दांत आतंकी अफ़ज़ल गुरु की मौत पर “अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे क़ातिल जिंदा हैं” कहकर छाती पीट-पीटकर आंसू बहाते थे। यही कन्हैया कुमार कहते थे- भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह। यह वही कन्हैया कुमार हैं जो बिहार में बेगूसराय से चुनाव लड़े थे और गिरिराज सिंह ने उन्हें 4 लाख से भी अधिक मतों से हरा दिया था। दूसरे किरदार हैं जिग्नेश मेवाणी, जिन्होंने कहा था कि “मोदी की जीत सामूहिक पागलपन का नतीजा है”। यह कहकर न केवल उन्होंने लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों का अपमान किया था, बल्कि देश के उस प्रत्येक नागरिक को “पागल” बताने दुस्साहस किया था, जिन्होंने श्रीमान मोदी को अपना कीमती मत दिया था। विडम्बना देखिये कि देश की सबसे पुरानी और गांधीवादियों की जमात कांग्रेस पार्टी ने अपनी डूबती हुई नैया की पतवार इन दोनों नौसिखिया राजनीतिज्ञों को सौंप दी है। क्या कांग्रेस को श्री राहुल गांधी के युवा नेतृत्व पर भरोसा नहीं रहा या फ़िर कन्हैया कुमार की तरह ही कांग्रेस को “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह” का नारा रास आने लगा है और अब कांग्रेस भी टुकड़े-टुकड़े गैंग में शामिल हो गई है? यूं बाटला हाउस कांड में मारे गए आतंकियों की मौत पर रातभर रोने वाली कांग्रेस के लिए टुकड़े-टुकड़े गैंग से रिश्ता कोई नया नहीं है। यह वही कांग्रेस है जिसमें सैफुद्दीन सोज, दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे तमाम लोग शामिल हैं जिन्होंने हमेशा पाकिस्तान और कश्मीर के मुद्दों पर भारत सरकार विरोधी रुख अपनाने का प्रयास किया है। कांग्रेस में आतंकियों और पत्थरबाजों को “भटका हुआ नौजवान” बताने की बहुत पुरानी परम्परा है।
सत्तामोह में धृतराष्ट्र बन चुकी कांग्रेस को इन दोनों, दुर्योधन और दुःशासन के कुकृत्य दिखाई नहीं पड़ रहे, या फिर वह देखना ही नहीं चाहती है। विडम्बना तो यह है कि सदैव अपने आपको स्वतंत्रता संग्राम का नायक बताने वाली औऱ गांधीवाद की दुहाई देने वाली कांग्रेस कन्हैया कुमार जैसे “खलनायक” को अपना “नायक” बनाने पर क्यों तुली है?
यक्ष प्रश्न यह भी है कि क्या कांग्रेस कन्हैया कुमार जैसे खलनायकों को भारत की युवापीढ़ी का आदर्श बनाना चाहती है? क्या शहीदे आज़म भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक-उल्ला -खान, चंद्रशेखर आज़ाद और मंगल पांडे सरीखे नौजवानों और कांग्रेसी नेताओं ने देश को आजादी इसीलिए दिलवाई थी कि भारत की सबसे पुरानी गांधीवादी पार्टी इस देश की युवापीढ़ी को दुर्योधन और दुःशासन का चरित्र अपनाने और उन्हें अपना आदर्श बनाने के लिए प्रेरित करेगी?
कांग्रेस की जिस डूबती हुई नैया को श्रीमान राहुल गांधी और श्रीमति प्रियंका वाड्रा नहीं बचा पाए, क्या उसे कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी जैसे राजनीति के बाल कलाकार बचा पाएंगे? और यदि वास्तव में ऐसा हो जाता है तो निश्चित रूप से यह “गांधी परिवार” का दुर्भाग्य ही होगा।
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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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