AIMIM (आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन) का एक इतिहास है. देश की आजादी से २० साल पहले की बात है यानि १९२७ की, उस समय दक्षिण भारत की रियासत हैदराबाद पर निजाम उस्मान अली खान की हुकूमत थी, उस वक्त नवाब महमूद नवाज खान किलेदार ने मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन (एम.आई.एम) नाम के संगठन की नींव रखी. इसके संस्थापक सदस्यों में सैयद कासिम रिजवी का नाम भी शामिल था जो कट्टर रजाकार नामक हथियारबंद गुट का सरगना था. एम.आई.एम और रजाकार दोनों ही हैदराबाद के देशद्रोही निजाम के समर्थक थे. इस संगठन ने न केवल मजहबी कारणों से ८० प्रतिशत हिन्दू आबादी वाले हैदराबाद के भारत में विलय का विरोध किया, बल्कि तमाम हिन्दुओं की हत्या के साथ कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म भी किया. हैदराबाद में आर्य समाज के प्रख्यात वकील श्यामलाल वकील की रजाकारों ने नृशंस हत्या कर दी थी.
३१ मार्च १९४८ को एम.आई.एम के कासिम रिजवी ने रियासत के मुसलमानों को एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुरआन लेकर भारत पर चढाई करने को कहा. १० सितम्बर १९४८ को सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को एक खत लिखा जिसमें उन्होंने हैदराबाद को हिंदुस्तान में शामिल होने का आखिरी मौका दिया. तब हैदराबाद के निजाम ने सरदार पटेल की अपील ठुकरा दी और तब के MIM के अध्यक्ष कासिम रिजवी ने खुलेआम भारत सरकार को धमकी दी थी कि यदि सेना ने हमला किया तो उन्हें रियासत में रह रहे ६ करोड़ हिन्दुओं की हड्डियाँ ही मिलेंगी. इस पर सरदार पटेल ने १३ सितम्बर १९४८ को हैदराबाद पर हमला कर दिया. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हमले के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु देश से बाहर थे. सेना ने ४ दिन में ही हैदराबाद के निजाम के लड़ाकों की कमर तोड़ दी और निजाम पाकिस्तान भाग गया. उसके बाद एम.आई.एम को देशद्रोही संगठन मानकर इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था.
अब्दुल वाहिद ओवैसी |
१९५७ में भारत छोड़ने से पूर्व रिजवी ने एम.आई.एम की कमान अब्दुल वाहिद ओवैसी को सौंपी जिसने बाद में दल के नाम के आगे “अखिल भारतीय (आल इंडिया)” शब्द जोड़ दिया. ये वही अब्दुल वाहिद था जिसे ११ महीने जेल में रखा गया था. इस पर हैदराबाद पुलिस ने साम्प्रदायिक सद्भावना को भंग करने, मज़हबी नफ़रत फ़ैलाने, स्टेट और देश के ख़िलाफ़ मुसलमानों को भड़काने के आरोप तय किये गए थे. बाद में इसकी कमान सुल्तान सलाहुद्दीन को मिली जो कि “सलार-ए-मिल्लत” अर्थात मुसलमानों के नेता के नाम से मशहूर हो गए. उसके बाद संगठन की बागडोर उसके पुत्र असुद्दीन ओवैसी के हाथों में पहुंची, किन्तु उसका मूल चिन्तन अब भी अपरिवर्तित है.
सलाहुद्दीन ओवैसी |
आज ओवैसी परिवार की राजनैतिक शक्ति के साथ-साथ उनके साधन और संपत्ति में भी ज़बरदस्त वृद्धि हुई है. असद्दुदीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने २४ दिसम्बर २०१२ को आदिलाबाद के निर्मल टाउन में एक जलसे में टीवी कैमरों और मीडिया की मौजूदगी में कहा था कि हम मुसलमान सिर्फ २५ करोड़ हैं, और तुम (हिन्दू) १०० करोड़ हो लेकिन केवल १५ मिनट के लिए अपनी पुलिस हटा लो तो हम बता देंगे कि कौन ज़्यादा ताक़तवर है. जब ओवैसी ने ये कहा तो वहां उपस्थित करीब २०,००० से २५,००० मुसलमानों ने “नारा-ए-तदबीर,
असदुद्दीन ओवैसी |
अल्लाह हू अकबर” के नारे लगाये थे और अकबरुद्दीन ओवैसी की बात का समर्थन किया था. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अकबरुद्दीन ओवैसी “ओवैसी अस्पताल” का प्रबंध निदेशक भी है. इस अस्पताल की स्थापना उसके पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिमों के लिए की थी. अकबरुद्दीन एक ईसाई महिला सबीना के प्यार में पड़ गया बाद में उसने उससे शादी भी कर ली. लेकिन एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अकबरुद्दीन की पत्नी का धर्म बदलवाकर उसे मुसलमान बनाया गया.
कई टिप्पणीकारों ने ओवैसी को “जिन्ना” तक कह डाला है. माना जाता है कि ओवैसी बंधु मुस्लिम समुदाय के एकमात्र प्रवक्ता होने के लिए जिन्ना की बोली के समान एक तरह से “गैर साम्प्रदायिक मुस्लिम पहचान” की अपील करते हैं. उनका राष्ट्रवाद के साथ इस्लामवाद का ब्रांड हैदराबाद के पुराने शहर और मुंबई में मुस्लिम युवकों के कट्टरपंथ के सम्भावित क्षेत्रों में पनपता है.
नोट – इस लेख के कुछ अंश www.hindimedia.in से लिए गए हैं.