जहाँ एक तरफ मम्मी-डैडी कहना और कान्वेंट स्कूलों में पढ़ना-पढ़ाना सिम्बल स्टेटस समझा जाता है वहीं दूसरी ओर छतीसगढ़ के महासमुंद के बाग़बाहरा में एक गुरुकल आज भी भारतीय संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों को जीवित रखे हुए है. इस गुरुकुल का नाम है “कोसरंगी आश्रम”. इस आश्रम में शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा दी जाती है. इस आश्रम में ब्रह्मचर्य ग्रहण कर वैदिक और योग शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को भारतीय पुरातन संस्कृति से अवगत कराया जाता है. सर्पासन, शवासन, चक्रासन एवं पूर्ण वज्रासन इत्यादि योगासन सिखाये जाते हैं. इस आश्रम में प्रतिवर्ष 100 से अधिक योगर्थियों को योग शिक्षक के रूप में देशभर के उस स्थानों पर तैनात किया जाता है जहाँ के लोग बीमारी से जूझ रहे हैं और उनपर ईलाज कराने के लिए पर्याप्त सुविधाएँ और धन नहीं है. देशभर से कई बच्चे यहाँ योग विद्या सीखने के लिए पहुँचते हैं. ऋषि परम्परा से चलने वाला यह प्रदेश का एकमात्र गुरुकुल है. योग के अतिरिक्त इस गुरुकुल में संस्कृत, संस्कृति, वेद, दर्शन, ध्यान, अध्यात्म, अंग्रेजी, कम्प्युटर, विज्ञान और गणित की निःशुल्क शिक्षा दी जाती है.
इस आश्रम में शास्त्रों के अतिरिक्त शस्त्रों की भी शिक्षा दी जाती है. प्रातःकालीन सत्र में मलखंभ, तीरंदाजी, तलवारबाजी, लाठी चलाना आदि शिक्षा दी जाती है. इस आश्रम में तीरंदाजी पर विशेष ध्यान दिया जाता है. यहाँ के छात्र हाथों के बल जमीन पर खड़े होकर पैरों से भी अचूक निशाना लगा लेने में पारंगत हैं. इसके अलावा यहाँ के विद्यार्थी पानी और दर्पण में देखकर लक्ष्य भेदने, धागे में लटकी वस्तु को तीर चलाकर धागे से अलग करना इनके लिए बाएं हाथ का कमाल है. इनकी अद्भुत प्रतिभा को देखकर दर्शक दांतों तले उँगलियाँ दबा लेते हैं. इस आश्रम के कई बच्चे राज्योत्सव व गणतन्त्र दिवस समारोह में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हैं.
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