कहां गए वो राम हमारे
वो मर्यादा कहां गया
एक वचन पे त्यागे तपस्वी
अपने प्रिय संतान को
एक वचन पे किया न्योछावर
खुद अपने ही प्रान को
ऐसे अमर,सुर वीरों का
अटल इरादा कहां गया
कहां गए वो राम……
धन,दौलत और महल, अटारी
जब अपनों ने छीना था
वीर धीर वनगमन स्वीकारा
कोई प्रश्न कभी ना था
अपनों पे सर्वस्व लुटा कर
जीवन सादा कहां गया
कहां गए वो राम…………
शूर्पणखा की मोहनी मूरत
को जिसने अस्वीकार किया
राष्ट्रधर्म और राजधर्म पे
सब कुछ अपना वार दिया
जूठे बेर खा शबरी तारे
नेक इरादा कहां गया
कहां गए वो राम……..
राज-पाठ ,पितु -मातु, पियारी
एक- एक कर छूट गये
दिव्य पुरुष हिम्मत ना
छोड़ा सारे रिश्ते टूट गए
धर्म निभाना ,सीता लाना
अडिग इरादा कहां गया
कहां गए वो राम……..
स्वरचित
ममता उपाध्याय