चांदपुर विधानसभा में चर्चा है कि यदि सपा और लोकदल का गठबंधन होता है तो चांदपुर सीट लोकदल के पाले में जा सकती है। ऐसे में इस सम्भावना को लेकर पूरे क्षेत्र में यह बहस छिड़ी है कि सपा-लोकदल गठबंधन का टिकट किसे मिलेगा?
दो नामों की चर्चा प्रमुखता से है
हालांकि इस टिकट पर कई दिग्गजों की नज़र है। लेकिन उसके बावजूद क्षेत्र में दो नामों की चर्चा प्रमुखता से हो रही है। जिसमें पहला नाम पूर्व गन्ना राज्यमंत्री श्रीमान स्वामी ओमवेश का है, और दूसरा नाम पूर्व बसपा विधायक जनाब मौहम्मद इक़बाल उर्फ इक़बाल ठेकेदार का है।
स्वामी ओमवेश ने 1996 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में और 2002 में लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयश्री प्राप्त की थी। उसके बाद से अभी तक स्वामी ओमवेश कोई चुनाव नहीं जीते।
मौहम्मद इक़बाल ने 2002 में अपना पहला चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और हार गए थे। उसके बाद 2007 और 2012 में उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और लगातार दोनों चुनावों में जीत हासिल की थी। लेकिन 2017 में वह भाजपा की वर्तमान विधायक श्रीमती कमलेश सैनी से करीब 35649 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे।
मौहम्मद इक़बाल मुस्लिम समाज के सबसे मजबूत प्रतिनिधि
स्वामी ओमवेश और मौहम्मद इक़बाल दोनों का ही दबंग नेताओं में शुमार होता है। हालांकि स्वामी ओमवेश को जाट समाज का प्रतिनिधि माना जाता है। लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम समाज में उनकी बहुत गहरी पैठ है। उधर मौहम्मद इक़बाल को मुस्लिम समाज का सबसे मज़बूत प्रतिनिधि माना जाता है। और अभी तक मौहम्मद इक़बाल को क्षेत्र के सबसे दिग्गज मुस्लिम नेताओं में गिना जाता है।
2019 में बसपा से कर लिया था किनारा
वर्तमान में स्वामी ओमवेश समाजवादी पार्टी में हैं। इससे पूर्व काफी समय तक वह लोकदल सहित कई अन्य पार्टियों में भी रहे हैं। जबकि मौहम्मद इक़बाल ने वर्तमान में किसी पार्टी में नहीं हैं। इससे पहले वह बसपा के दिग्गज नेताओं में गिने जाते थे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने बसपा से किनारा कर लिया था। यद्यपि अभी भी उनकी गाड़ी और निवास पर नीला झंडा लहराया हुआ देखा बताया जाता है।
फिलहाल वर्तमान में दोनों ही नेताओं का दूर तक कोई सम्बन्ध राष्ट्रीय लोकदल से नहीं है।
यादव समाज का नहीं है कोई विशेष योगदान
अगर राष्ट्रीय लोकदल और सपा का गठबंधन होता है। तो मुस्लिम और जाट का समीकरण सबसे ज्यादा काम करेगा। यहां समझने वाली बात यह है कि चांदपुर विधानसभा में यादव समाज का कोई विशेष योगदान नहीं है। जबकि परिसीमन के बाद से जाट समाज का भी दबदबा कम हुआ है। अलबत्ता मुस्लिम मतदाता की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।
स्वामी ओमवेश लगातार जनसम्पर्क में हैं
स्वामी ओमवेश चुनाव से काफी पहले से लगातार जनसम्पर्क में हैं।और इस बीच मौहम्मद इक़बाल ने भी मुस्लिम समाज को अपने पक्ष में एकजुट करने का हरसम्भव प्रयास किया है। जिसके फलस्वरूप, कई मुस्लिम बिरादरियों ने मौहम्मद इक़बाल को अपना खुला समर्थन देने की घोषणा कर दी है।
डॉ. शकील हाशमी की हो सकती है बल्ले-बल्ले
जानकारों का यह भी मानना है कि यदि सपा-लोकदल गठबंधन का टिकट स्वामी ओमवेश को जाता है। और यह भी तय है कि भाजपा से भी किसी बहुसंख्यक को ही टिकट दिया जाएगा। तब ऐसे में मुस्लिम समाज बसपा उम्मीदवार डॉ. शकील हाशमी के पक्ष में एकपक्षीय वोट कर सकता है।
कौन ज्यादा मजबूत है यह तय करना मुश्किल
हालांकि यह केवल राजनीतिक कयास है और वास्तविकता से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। लेकिन इस सम्भावना को पूरी तरह से झुठलाया भी नहीं जा सकता।
साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम समाज में मौहम्मद इक़बाल का पलडा अन्य किसी से भी कहीं अधिक भारी है।
कुल मिलाकर यदि समस्त आंकड़ों और कयासों पर गम्भीरता से विचार किया जाए। तो मौहम्मद इक़बाल और स्वामी ओमवेश में से कौन ज्यादा मजबूत दावेदार है, यह तय करना बेहद मुश्किल है।
अलबत्ता यदि केवल मुस्लिम समाज के दृष्टिकोण से देखा जाए। तो मौहम्मद इक़बाल का पलडा कहीं ज़्यादा भारी नज़र आता है। और यदि जाट समाज के दृष्टिकोण से देखें तो निश्चित रूप से स्वामी ओमवेश का वज़न कहीं ज्यादा है।