25 सितंबर 1990 को भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवानी ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए गुजरात के सोमनाथ से राम रथयात्रा निकाली।
करीब डेढ़ लाख कारसेवकों को गिरफ़्तार कर लिया गया
इस यात्रा को उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश से पहले तत्कालीन लालू यादव की सरकार ने रोक लिया। यात्रा के अगुवा लालकृष्ण आडवाणी को नजरबंद कर लिया गया। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी।
इसके बावजूद भी लाखों कारसेवकों का जत्था नहीं रूका। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब डेढ़ लाख कारसेवकों को गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस दिया। राम मंदिर को लेकर कार सेवकों का जोश इतना उफान पर था कि वे पैदल ही आगे बढ़े जा रहे थे।
पूरे यूपी की सड़कों पर कारसेवक ही कारसेवक दिखाई दे रहे थे। सरकार के निर्देश पर पुलिस ने उन्हें काबू करने के लिए बेइंतहा जुल्म ढाये गए।
वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता
उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या के बारे में बयान दिया था कि – “वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता।”
कोठारी भाइयों ने फहराया केसरिया झंडा
30 अक्टूबर 1990 को कोठारी भाइयों ने गुम्बद के ऊपर भगवा ध्वज फहरा कर मुलायम सिंह को सीधी चुनौती दी। रामकुमार कोठारी और शरद कोठारी नामक यह दो भाई हीरालाल कोठारी और सुमित्रा देवी कोठारी की संतान थे। जो कि बीकानेर (राजस्थान) के मूल निवासी थे।
कोठारी बंधुओं का जन्म कोलकाता में हुआ था और उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा मध्यप्रदेश के बैतूल में हुई थी। दोनों ही भाइयों के बीच मात्र 2 वर्ष का अंतर था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए होने की वजह से बचपन से ही दोनों भाइयों में राष्ट्रभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। पढ़ाई के साथ साथ राष्ट्रीय सेवक से भी जुड़े रहें, आगे चलकर दोनों कोठारी बंधु ने RSS का वर्ष का प्रशिक्षण भी साथ साथ प्राप्त किया।
200 किलोमीटर पैदल चलकर कोठारी बन्धु अयोध्या पहुंचे थे
200 किलोमीटर पैदल चलकर कोठारी बन्धु अयोध्या पहुंचे थे। विवादित ढांचे के ऊपर सबसे पहले राजकुमार कोठारी और शरद कोठारी चढ़े। कोठारी बंधु सगे भाई थे। राजकुमार कोठारी ने सबसे पहले भगवा झंडा फहराया।
कोठारी बंधुओं का अमर बलिदान
अर्धसैनिक बलों ने कारसेवकों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। कारसेवकों में भगदड़ मच गई, कोठारी बंधु भी उनमें से एक थे। रामकुमार कोठारी और शरद कोठारी दोनों भाई साथ में ही थे। फायरिंग होते देख दोनों लाल कोठी के समीप एक घर की आड़ में छुप गए।
CRPF के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई।
परम रामभक्त और राष्ट्रभक्त कोठारी बंधु रामकाज करते हुए श्रीराम के श्रीचरणों में परम शांति को प्राप्त हो गए। वीरगति के समय दोनों भाइयों की उम्र क्रमशः मात्र 22 और 20 वर्ष थी। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था।
बेटों की मौत से हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। दोनों का शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल अयोध्या आए थे और उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था।
कोठारी बंधुओं के नाम पर सड़क निर्माण
भाइयों की याद में पूर्णिमा कोठारी उनके दोस्त राजेश अग्रवाल के साथ मिलकर ‘राम-शरद कोठारी स्मृति समिति’ नाम से एक संस्था चलाती हैं। मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य ने अब दोनों भाइयों के नाम पर अयोध्या में सड़क निर्माण की घोषणा भी की है।
कारसेवकों की लाशें सरयू में तैरती मिलीं थीं
30 अक्टूबर तक क़रीब 1 लाख लोग वहाँ पहुँच चुके थे, जिसमें 20,000 साधु-संत ही थे। सरयू नदी के पुल पर जब कारसेवक जमा हुए, तब पुलिस ने गोली चलाई।
मंदिर परिसर में गुम्बद पर चढ़े कारसेवकों पर गोलियाँ चलाई गईं। नींव की खुदाई कर रहे लोगों पर गोली चलाई गई। कई कारसेवकों की लाशें सरयू नदी में तैरती मिलीं।
लाशों को बालू के बोरो से बांध दिया गया था
उनकी लाशों को बालू के बोरो से बांध दिया गया था ताकि वो तैरकर ऊपर ना आ सकें। यहां तक की औरतों और साधुओं तक को नहीं छोड़ा गया था।
जलियांवाला कांड की याद ताज़ा करा दी थी
इस गोलीकांड ने अयोध्यावासियों को 1919 के जलियांवाला कांड की याद दिला दी थी। रामजन्मभूमि से लगभग 500 मीटर दूर हनुमानगढ़ी चौराहे से लालकोठी जाने वाले मार्ग को 1990 की घटना के बाद कारसेवकों की याद में शहीद मार्ग कहा जाने लगा।
वहीं इन शहीदों को लेकर दिगंबर अखाड़ा में शहीदों के स्मारक चिन्ह भी स्थापित किया गया। जिसपर प्रत्येक वर्ष रामभक्त इन कारसेवकों को 2 नवंबर के दिन श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
वहीं इसके साथ ही रामजन्मभूमि दर्शन करने वाले रामभक्तों को आज भी कारसेवकों की याद सीडी व किताबों के माध्यम से दिलाई जाती रही है।
जब मुलायम सिंह हुए मुल्ला मुलायम सिंह
1990 के इस गोलीकांड के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह बुरी तरह चुनाव हार गए और कल्याण सिंह सूबे के नए मुख्यमंत्री बने। तब मुलायम को ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा जाने लगा था। क्योंकि उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश दिए थे। और तो और उन्हें मुसलमानों का नेता भी कहा जाने लगा था।
और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षा बल ज़रूर मारते
मुलायम सिंह यादव ने नवंबर 2017 में अपने 79वें जन्मदिन के मौके पर सपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए अपने इस कृत्य को जायज ठहराया था।
मुलायम ने इस गोलीकांड के 27 वर्षों बाद कहा था कि देश की ‘एकता और अखंडता’ के लिए अगर सुरक्षा बलों को गोली चलाकर लोगों को मारना भी पड़े तो ये सही था।
इतना ही नहीं, उन्होंने कहा था कि अगर इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षा बल ज़रूर मारते। मुलायम ने गर्व के साथ आँकड़े गिनाते हुए कहा था इस गोलीकांड में 28 कारसेवकों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
शत-शत नमन उन समस्त श्रीरामभक्त हुतात्माओं को जिन्होंने धर्मयज्ञ में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।