माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 4 अक्टूबर 2021 को तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में एक किसान संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि *”जब तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी गई है, तो किसान संगठन किसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.”* जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की पीठ ने कहा कि कानूनों की वैधता को न्यायालय में चुनौती देने के बाद ऐसे विरोध प्रदर्शन करने का सवाल ही कहां उठता है. अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने 3 अक्टूबर 2021 के लखीमपुर खीरी कांड का जिक्र किया था, जिसमें आठ लोग मारे गए थे. इसपर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि *”ऐसी कोई घटना होने पर कोई इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता.”*
यहां ग़ौरतलब है कि जिस कथित किसान आंदोलन में यह सब बवाल हुआ, विभिन्न सूत्रों के हवाले से ख़बर है कि वहां पर जो लोग उपस्थित थे उन्होंने अपने हाथों में लाठियां, बल्लम,तलवारें और काले झंडे ले रखे हुए थे। सोशल मीडिया पर घटना के कई वीडियो शेयर किए गए (हम इन वीडियो की पुष्टि नहीं करते) जिनमें यह पाया गया कि वहां उपस्थित कुछ कथित किसानों ने दुर्दांत आतंकी भिंडरावाले के फोटो लगी टी-शर्ट्स पहने हुई थीं।
अब प्रश्न यह उठता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय और केंद्र व राज्य सरकारों के बार-बार आग्रह करने के बावजूद “किसान आंदोलन” के नाम पर हिंसक प्रदर्शन, सड़क जाम आदि क्यों हो रहे हैं? इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है।
लखीमपुर खीरी की घटना में आठ लोगों की हत्या हुई, जिसमें से चार लोग गाड़ी से कुचले गए जबकि चार लोगों को उपद्रवियों ने निर्दयता से पीट-पीटकर मार डाला। लेकिन विपक्ष का दोहरा चरित्र देखिये कि विपक्ष के किसी भी नेता ने उन चार लोगों के परिवार वालों से सहानुभूति के दो शब्द भी नहीं बोले। राकेश टिकैत ने तो संवेदनहीनता और गैर-जिम्मेदाराना रवैये की सारी हदें पार करते हुए यह तक कह दिया कि उन चारों की मौत “क्रिया की प्रतिक्रिया” थी।
दूसरे शब्दों में कहें तो राकेश टिकैत ने एक पत्रकार और तीन भाजपा कार्यकर्ताओं की उपद्रवियों द्वारा की गई नृशंस हत्या को जस्टिफाई करने का प्रयास किया है।
यह वही लोग हैं जो कि आतंकियों के संवैधानिक और मानवाधिकारों की दुहाई देते हुए आधी रात को न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं, और माननीय न्यायधीशों को अपने आरामगृहों से निकलकर आतंकवादियों की सुनवाई करनी पड़ती है। यह वही कांग्रेस है जिसकी एक नेता कथित रूप से बाटला हाउस कांड में मारे गए आतंकियों के लिए रातभर आंसू बहाती हैं और उनकी सुपुत्री NRC-CAA के दौरान सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमले करने वालों की मौत पर दहाड़ें मारती हैं। इनके भाई साहब जनेऊ पहनकर ब्राह्मण पुत्र होने का दावा करते हैं लेकिन ब्राह्मण युवाओं की नृशंस हत्या पर इनके मुहं से एक शब्द नहीं फूटता।
विपक्षी दलों के प्रवक्ता चार किसानों की मौत की दुहाई देते हुए खूब गला फाड़ते हैं लेकिन चार युवाओं की मौत पर उनके मुहं में दही जम जाता है।
विडम्बना तो देखिए कि जो लोग 84′ के दंगों में मारे गए निर्दोष सिखों के हत्यारों जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार को सज़ा नहीं दिलवा पाए, जो कश्मीरी पंडितों के कातिलों की पैरवी करते हैं, जो मुजफ्फरनगर दंगों में मारे जाने वाले सैंकड़ों लोगों (जो कि वास्तव में किसान पुत्र थे), को सम्मानित करते हैं, जो गायत्री प्रजापति जैसे लोगों को शरण देते हैं, जिन्हें आतंकीयों को छुड़ाने के लिए हाईकोर्ट से फटकार लगती है, जिनके राज में एक पत्रकार को जिंदा जला दिया जाता है, वह लोग आज न्याय और नीति पर व्याख्यान दे रहे हैं। जिसे देखो वह न्यायाधीश बन रहा है, हर कोई यह सिद्ध करने में लगा है कि वही एकमात्र न्यायप्रिय, सत्यनिष्ठ और मानवता का पुजारी है।
इसे कुछ यूं कहिये-
*जाहिलों की जमात में भेड़िए बने नमाज़ी, गिद्ध बने हकीम और लोमड़ी बनी क़ाज़ी।।*
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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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