✍️मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री
1938 में पंडित नेहरू और मौहम्मद अली जिन्ना के बीच हुए एक पत्र-व्यवहार से मुस्लिम लीग की 14 सूत्रीय मांगों का खुलासा हुआ था।
आज के परिपेक्ष्य में उनमें से कुछ को हम सामने रखना समीचीन समझते हैं.
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (व्यक्तिगत विधि या निजी कानून) और मुस्लिम संस्कृति की वैधानिक रूप से सुरक्षा की गारंटी
- मुसलमानों को गोहत्या की आज़ादी रहे।
- मुसलमानों के अज़ान देने और अपने मज़हब सम्बन्धी रस्मों-रिवाज़ पूरे करने पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी न हो।
- वन्दे मातरम गीत त्याग दिया जाए।
- उर्दू भारत की राष्ट्रभाषा हो, और कानूनी गारंटी चाहते हैं कि उसके प्रयोग में किसी प्रकार की रुकावट नहीं आएगी।
- मिली-जुली सरकारें बनें।
इन मांगों पर यदि आज के परिपेक्ष्य में ग़ौर किया जाए तो INDI गठबंधन के लगभग सभी दलों के “घोषणा पत्रों” में 1938 में की गई मुस्लिम लीग की “मुस्लिम पर्सनल लॉ” की वैधानिक रूप से सुरक्षा की गारंटी की मांग को ही प्रमुख स्थान दिया गया है। तथाकथित सेक्युलर और समाजवादी दलों द्वारा वन्देभारत गीत को तो न जाने कब का त्यागा जा चुका है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गौहत्या पर कोई स्पष्ट कानून आजतक नहीं बन पाया है। और कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों द्वारा समय-समय पर “गो-माता” शब्द का अपमान व तिरस्कार कर किया जाता रहा है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर अपनी पुस्तक “पाकिस्तान or पार्टीशन ऑफ इंडिया (1945)” की पृष्ठ संख्या (260-1) में लिखते हैं- “कांग्रेस ने मुसलमानों को राजनीतिक और अन्य रियायतें देकर, उन्हें सहन करने और खुश करने की नीति अपनाई है। क्योंकि वे समझते हैं कि मुसलमानों के समर्थन के बिना वे अपने मनोवांछित लक्ष्य “स्वतंत्रता” को नहीं पा सकते।
मुझे लगता है कि कांग्रेस ने दो बातें समझी नहीं हैं। पहली तो ये कि “तुष्टिकरण और समझौते” में अंतर होता है। तुष्टिकरण का अर्थ है, एक आक्रामक व्यक्ति या समुदाय को मूल्य देकर अपनी ओर करना। और यह मूल्य होता है, उस आक्रमणकारी द्वारा किये गए निर्दोष लोगों पर, जिनसे वह किसी कारण से अप्रसन्न हो, हत्या, बलात्कार, लूटपाट और आगजनी जैसे अत्याचारों को अनदेखा करना। दूसरी ओर समझौते का अर्थ है- दो पक्षों के बीच कुछ मर्यादाएं निश्चित कर देना जिनका उल्लंघन कोई भी पक्ष नहीं कर सकता।
डॉ. अम्बेडकर कहते हैं कि – तुष्टिकरण से आक्रांता की मांगों और आकांक्षाओं पर कोई अंकुश नहीं लगता, समझौते से लगता है।”
डॉ. अम्बेडकर आगे लिखते हैं कि- कांग्रेस यह बात नहीं समझ पाई है कि छूट देने की नीति ने मुस्लिम आक्रामकता को बढ़ावा दिया है। और, इससे भी अधिक शोचनीय है कि मुसलमान इन रियायतों का अर्थ “हिंदुओं की पराजित मानसिकता और सामना करने की ईच्छाशक्ति का अभाव” से लगाते हैं।
स्रोत- डॉ. अम्बेडकर की दृष्टि में मुस्लिम कट्टरवाद, लेखक- एस.के. अग्रवाल, सुरुचि प्रकाशन
पृष्ठ संख्या-38-41
✍️समाचार सम्पादक, हिंदी समाचार-पत्र,
उगता भारत
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