हमारे एक मित्र जो कि मेरे छोटे भाई की तरह हैं और फिल्म निर्देशक भी हैं, वह एक फिल्म बना रहे थे. यह फिल्म अनाथ बच्चों की जिन्दगी पर बनाई जा रही थी जिसमें एक छोटा सा रोल उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी का भी होना बताया जा रहा था. इस सम्बन्ध में उक्त फिल्म निर्देशक महोदय की बातचीत पूर्व मुख्यमंत्री महोदय से हो भी चुकी थी और फिल्म की थीम भी तैयार हो चुकी थी. लेकिन समस्या थी फाइनेंस की जिसके लिए इन विदेशी रॉबिनहुड साहब से उक्त फिल्म निर्देशक धीरज पंडित की बातचीत हुई भी थी.
अपने को गरीबों का मसीहा मानने वाले और अरबों के मालिक कहे जाने वाले इन विदेशी सज्जन ने एक बेहद मामूली सी आर्थिक सहायता के लिए भी मना कर दिया. गरीब, अनाथ और बेसहारा बालिकाओं की बेहाल जिन्दगी पर बनने वाली इस फिल्म के लिए एक मामूली सा बजट नहीं दे पाए यह तथाकथित समाजसेवी. मजे की बात यह है कि इस फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक पूर्व मुख्यमंत्री के साथ इन स्वयम्भू समाजवादी और समाजसेवी महोदय के बड़े अच्छे सम्बन्ध बताये जाते हैं. विधानसभा चुनावों के दौरान तो यह महोदय और एक पूर्व मुख्यमंत्री हाथ में हाथ डाले जगह-जगह घूमते दिखाई दिए थे. लेकिन आज इन साहब को इन सब बातों की परवाह नहीं है. आज इन्हें गरीब और अनाथ बच्चियों के भविष्य से क्या लेना-देना? लगता है कि “अखिलेश भैया” के नाम का बुखार भी इनके सर से उतर चुका है. आज इन्हें किसी बात की कोई परवाह नहीं है. परवाह है तो बस नरकपालिका के कमीशन की, विदेशी सैर-सपाटे में ये सब कुछ भूल चुके हैं.
कुल मिलाकर एक बात कही जा सकती है कि “खोदा पहाड़ और निकली चुहिया, वो भी मरी हुई.”
कुछ ही वर्ष बीते होंगे जब चांदपुर में एक विदेशी सज्जन का आगमन हुआ था. इन सज्जन को इनके खास कारिंदों ने इस तरह से पेश किया कि मानो कोई रॉबिनहुड हो. और इनकी वेशभूषा और कारगुजारियों से भी ऐसा ही महसूस हुआ था कि जैसे चांदपुर की गरीब जनता को कोई दयावान मिल गया हो. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे इनका नीला रंग उतरता गया और मालूम हो गया कि जिस शख्स को चांदपुर वाले एलियन समझ रहे थे वह कोई एलियन नहीं बल्कि एक मामूली सा इंसान था जिसपर लालच, ढोंग, भ्रष्टाचार, मक्कारी, झूठ और फरेब की कीचड़ लिपटी हुई थी.