बीते रविवार 31 अक्टूबर को भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की 146वीं जयंती “राष्ट्रीय एकता दिवस” के अवसर पर हरदोई में एक रैली को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने पाकिस्तान के कायदे-आज़म और भारत के “महा-खलनायक” मौहम्मद अली जिन्ना का गुणगान करते हुए कहा कि “सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना ने एक ही संस्थान से पढ़ाई की और बैरिस्टर बने और उन्होंने आजादी दिलाई।”
अखिलेश यादव ने आगे कहा कि “उन्हें आजादी के लिए किसी भी तरीके से संघर्ष करना पड़ा होगा तो पीछे नहीं हटे।”
शायद अखिलेश यादव भूल गए कि
यह कहते हुए समाजवादी अखिलेश यादव शायद यह भूल गए कि मौहम्मद अली जिन्ना ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में किये गए अपने संघर्ष की बहुत बड़ी कीमत इस देश से वसूल की थी।
जिन्ना समर्थक आज भी भारत की हार का जश्न मनाते हैं
अखिलेश यादव शायद यह भी भूल गए कि “लड़ के लिया पाकिस्तान, हंस के लेंगे हिंदुस्तान” कहने वाले जिन्ना समर्थक आज भी भारत की हार का जश्न मनाते हैं। जिन्नावादियों का यह टुकड़े-टुकड़े गैंग “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह” के नारे लगाते हैं।
राष्ट्रीय एकता दिवस पर राष्ट्र के टुकड़े-टुकड़े करने वाले राष्ट्रद्रोही जिन्नाभक्तों की जिस टोली को श्री अखिलेश यादव उनके आका का नाम लेकर प्रसन्न करना चाहते हैं।
वह आज भी जिन्ना की उस विचारधारा को ही पुष्पित-पल्लवित करने में लगे हैं, जिसे जिन्ना ने 1940 में लाहौर में मुस्लिम लीग के एक अधिवेशन में अपने भाषण के माध्यम से सामने रखा था।
1940 में मौहम्मद अली जिन्ना ने कहा था
“हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग धार्मिक दर्शन, सामाजिक रीति-रिवाज और साहित्य से संबंधित हैं। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि हिंदू और मुसलमान इतिहास के विभिन्न स्रोतों से अपनी प्रेरणा प्राप्त करते हैं।“
-मौहम्मद अली जिन्ना
उनके पास अलग-अलग महाकाव्य, अलग-अलग नायक और अलग-अलग एपिसोड हैं। जो एक के लिये नायक है, तो वह दूसरे के लिए खलनायक है।”
जिन्ना ने ही डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी
वही जिन्ना जिसने 29 जुलाई 1946 को मुम्बई में मुस्लिम लीग की बैठक बुलाई। इसमें पाकिस्तान की मांग करते हुए उसने 16 अगस्त 1946 को ‘सीधी कार्रवाई दिवस’ यानी “Direct Action Day की घोषणा की।
नोआखली में हुआ विश्व का सबसे बड़ा नरसंहार
जिसके बाद कलकत्ता के नोआखली में जो कुछ हुआ। आज भी वह दुनिया के इतिहास में कहीं पर भी एक दिन के अंदर कत्लेआम का सबसे बड़ा मामला है।
बाद में इस दंगे की जांच के लिए स्पेन्स कमीशन बनाया गया। जिसने माना कि मारे गए लोगों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक है। ये दंगा नहीं, बल्कि एक सुनियोजित नरसंहार था।
10,000 हिंदुओं को बेदर्दी से काट डाला गया था
एक अनुमान के अनुसार इस नरसंहार में करीब 10,000 लोगों को बहुत बेदर्दी से क़त्ल कर दिया गया था।
इसके लिए सीधे तौर पर जिन्ना समर्थक मुसलमान थे। लेकिन जिन्ना के मुस्लिम लीगी मंत्रिमंडल के एक आदेश से स्पेंस कमीशन की जांच रोक दी गई। क्योंकि इस जांच में मुख्यमंत्री सुहरावर्दी व अनेक लीगी मंत्रियों की भूमिका स्पष्ट रूप से सामने आने लगी थी।
हालांकि सुहरावर्दी बाद में नोआखाली दंगों के समय महात्मा गांधी का प्रिय हो गया था। बाद में वो पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चला गया और 1956 में वहां का प्रधानमंत्री बना।
भारत दुनिया का पहला देश है
यह थी मौहम्मद अली जिन्ना की वह असल तस्वीर जिसपर तथाकथित “धर्मनिरपेक्षता” के अलमबरदारों ने हमेशा पर्दा डाले रखा। भारत दुनिया का शायद पहला ऐसा देश है। जहाँ लुटेरों, दगाबाजों, हत्यारों और आक्रान्ताओं का महिमामंडन किया जाता है।
और “हिन्दू” विश्व की पहली ऐसी कौम है जिसने अपने ही भाई-बंधुओं के हत्यारों और बहन-बेटियों के बलात्कारियों का महिमामंडन करनेवालों को न केवल सर-आंखों पर बैठाया अपितु उनके हाथों में अपना भविष्य भी सौंप दिया।
जिन्ना और पटेल की विचारधारा में अंतर
जहां तक जिन्ना और सरदार पटेल की विचारधारा का प्रश्न है। तो इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं, “जिन्ना ने तो महाराजा को एक खाली पन्ना तक देते हुए कहा था कि वह इस पर अपनी सभी शर्तें लिख सकते हैं।”
मोहम्मद अली जिन्ना जूनागढ़ का पाकिस्तान में विलय करवाना चाहते थे। लेकिन सरदार पटेल ने इसे रोकने के लिए वी.पी मेनन को जूनागढ़ भेजा था और पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फिर गया था।
इन ऐतिहासिक घटनाक्रमों से यह समझना सहज है कि सरदार पटेल भले ही मौहम्मद अली जिन्ना के साथ पढ़े-बढ़े हों, और आजादी की लड़ाई में भी वह कंधे से कंधा मिलाकर रहे हों। लेकिन इस सबके बावजूद उन्होंने जिन्नावाद को नहीं अपनाया। सरदार पटेल ने हमेशा राष्ट्रवाद, राष्ट्रहित और राष्ट्रप्रेम को ही वरीयता दी।
समाजवाद से जिन्नावाद की ओर अग्रसर श्री अखिलेश यादव को महान राष्ट्रभक्त और भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल से कम से कम इतना तो सीख ही लेना चाहिए कि समाजवाद से जिन्नावाद की ओर बढ़ने से कहीं बेहतर होगा कि राष्ट्रवाद की ओर बढ़ा जाए। श्री अखिलेश यादव की ओर से सरदार पटेल के लिए शायद इससे बेहतर कोई और श्रद्धांजलि नहीं हो सकती।