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एक बार जब स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास आते हैं और कहते हैं कि मैं तपस्या करना चाहता हूँ तो स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि “जब तुम्हारे आसपास के लोग दुःख और दरिद्रता से व्यथित हों तो क्या तुम्हारा मन तपस्या में लग पायेगा? तुम्हें तो तपस्या की बात अपने मन से निकालकर समाज कल्याण के बारे में ध्यान लगाना चाहिए.” ऐसी बातें सुनकर स्वामी विवेकानन्द अपने मन से तपस्या की बात निकालकर समाज कल्याण में जुट गए अर्थात रामकृष्ण परमहंस एक महान सच्चे समाज सुधारक थे. समाज सुधारक और महान संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म १८ फरवरी १८३६ को जन्में थे. संत परमहंस महान योगी, उच्चकोटि के विचारक थे. स्वामी रामकृष्ण परमहंस के जीवन चरित्र से हमें जो शिक्षा मिलती है वह उनके विचारों के समान ही अनमोल है.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था. इनका जन्म कामारपुकुर, नमक गाँव, हुगली जिला, पश्चिम बंगाल, भारत के एक गरीब वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम खुदीराम और माता का नाम चंद्रमणि देवी था. स्वामी जी के गुरु का नाम भैरवी और तोतापरी. स्वामी जी का विवाह २३ वर्ष की आयु में सर्दामानी मुखोपधयाय था. स्वामी जी ने अपना पूरा जीवन माँ काली की सेवा साधना में व्यतीत किया. कोलकाता की महारानी रासमुनि का मन्दिर जो आज दक्षिणेश्वर नाम से प्रसिध है, उसी में स्वामी जी ने पुजारी बनकर जीवन व्यतीत किया.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था. इनका जन्म कामारपुकुर, नमक गाँव, हुगली जिला, पश्चिम बंगाल, भारत के एक गरीब वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम खुदीराम और माता का नाम चंद्रमणि देवी था. स्वामी जी के गुरु का नाम भैरवी और तोतापरी. स्वामी जी का विवाह २३ वर्ष की आयु में सर्दामानी मुखोपधयाय था. स्वामी जी ने अपना पूरा जीवन माँ काली की सेवा साधना में व्यतीत किया. कोलकाता की महारानी रासमुनि का मन्दिर जो आज दक्षिणेश्वर नाम से प्रसिध है, उसी में स्वामी जी ने पुजारी बनकर जीवन व्यतीत किया.
कहा जाता है कि स्वामी परमहंस के पिता ने सपने में भगवान विष्णु को अपने घर में जन्म में जन्म लेते हुए देखा था तथा इनकी माताजी को ऐसा प्रतीत हुआ था कि शिवमंदिर में तीव्र प्रकाश उनके गर्भ में प्रवेश कर रहा है. स्वामी जी योग और तन्त्र पद्धति में पारंगत साधक थे. साथ ही उन्होंने श्रद्धा भाव-भक्ति युक्त साधना, भक्ति पर विशेष बल तथा प्रचार भी किया.
जीवन के अंतिम पड़ाव में स्वामी जी को कैंसर हो गया था. जिसके कारण १६ अगस्त १८८६ की ब्रह्ममूर्त में यह दिव्य-आत्मा अंततः परमात्मा में विलीन हो गई.
स्वामी जी के शिष्यों में स्वामी विवेकानन्द, राखल चन्द्र घोष, स्वामी अभेदानंद, तारकनाथ घोषाल, स्वामी रामकृष्णानन्द, स्वामी सरदानन्द, स्वामी निर्मलानन्द, स्वामी अखन्दानंद का नाम प्रमुख है.
१- दुनिया का एकमात्र ईश्वर ही पथ-प्रदर्शक और सच्चे राह दिखलाने वाला है.
२- बिना स्वार्थ के कर्म करने वाले इन्सान वास्तव में खुद के लिए अच्छा कर्म करते हैं.
३- धर्म की बात तो हर कोई करता है लेकिन अपने आचरण में लाना सबके बस की बात नहीं है.
४- जब तक हमारा जीवन है हमें सीखते रहना चाहिए.
५- ईश्वर के अनेकों रूप और अनेकों नाम हैं और अनेक तरीकों से ईश्वर की कृपा दृष्टि को प्राप्त किया जा सकता है और हम ईश्वर को किस नाम या किस तरह से पूजा करते हैं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि हम अपने अंदर उस ईश्वर को कितना महसूस करते हैं.
६- अथाह सागर में पानी और पानी का बुलबुला दोनों एक ही चीज हैं, ठीक उसी प्रकार ईश्वर और जीवात्मा दोनों एक ही है बस फर्क इतना है कि ईश्वर सागर की तरह अनंत तो जीवात्मा बुलबुले की तरह सीमित है.
७- सत्य की राह बहुत ही कठिन है और जब हम सत्य की राह पर चलें तो हमें बहुत ही एकाग्र और नम्र होना चाहिए क्योंकि सत्य के माध्यम से ही ईश्वर का बोध होता है.
संकलन- मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”