31 जनवरी 2018 से शुरू हुई भर्ती घोटाले की जांच में सीबीआई के 50 से अधिक तेजतर्रार अधिकारी एस पी राजीव रंजन के निर्देशन में उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग के अभिलेखों का परीक्षण कर रहे हैं। अब तक सीबीआई को जो सबूत मिले हैं वह इस बात की ओर साफ ईशारा कर रहे हैं कि आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव के इशारे पर प्रदेश की सबसे विशिष्ट नौकरी (प्रांतीय सिविल सेवा) *एक जाति विशेष* के खाते में लिखी गई। बता दें कि पीसीएस 2015 में कुल 521 अभ्यर्थियों का चयन हुआ था, जिसमें से करीब एक सौ से अधिक पीसीएस अफसरों की नियुक्ति प्रणाली सन्देह के दायरे में है।
उल्लेखनीय है कि यूपीपीएससी द्वारा साल 2012 से 2016 के बीच की गई पीसीएस अधिकारियों की भर्तियों में जाति विशेष के आवेदकों को साक्षात्कार में अधिक अंक देकर मेरिट में शामिल करने और लिखित परीक्षा के टॉपरों की अपेक्षा अधिक अंक दिए गए थे। इसके अलावा आयोग की ओर से की जाने वाली अन्य भर्तियों में भी जाति विशेष के आवेदकों को सहूलियतें मिलने के आरोप लगे थे।प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई 2017 को इस मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी। सपा सरकार के कार्यकाल में हुई इन भर्तियों को लेकर लगातार सवाल उठते रहे। आयोग की कार्यशैली के खिलाफ इलाहाबाद में अभ्यर्थियों ने लंबे समय तक आंदोलन भी किया था। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने इलाहाबाद जाकर अभ्यर्थियों के आंदोलन को अपना समर्थन दिया था।
तब सपा के ही एमएलसी रहे देवेन्द्र प्रताप सिंह ने लोक सेवा आयोग की भर्तियों की सीबीआई से जांच कराने की मांग करके तत्कालीन सपा सरकार को असहज कर दिया था। बाद में आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव की योग्यता को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट द्वारा डॉ. यादव को अयोग्य करार दिए जाने के बाद तत्कालीन सपा सरकार को उन्हें हटाना पड़ा था।
यहां ये बताना जरूरी है कि 2012 से 2016 के बीच प्रदेश में समाजवादी की सरकार थी, जिसके मुखिया मुलायम सिंह यादव थे और उनके सुपुत्र अखिलेश यादव उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। अखिलेश यादव को “विकास पुरूष” की भी संज्ञा दी गई थी।
यहां गौरतलब बात ये भी है कि समाजवादी पार्टी राममनोहर लोहिया को अपना आदर्श मानती है और समाजवाद की दुहाई देती है। अखिलेश यादव और उनकी पार्टी योगी सरकार पर लगातार लोकतंत्र का गला घोंटने और जतिवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाती रही है।
ऐसे में यह सवाल स्वभाविक ही है कि समाजवादी पार्टी का लोकतंत्र और समाजवाद क्या केवल एक जाति विशेष के लिए ही है? क्या लोकतंत्र के कथित प्रहरी इस सवाल का जवाब देंगे।