३० जनवरी १९४८ की शाम रोज की तरह महात्मा गाँधी शाम को आभा और मनु के कंधों पर हाथ रखकर दिल्ली के बिरला मन्दिर में प्रार्थना सभा में जा रहे थे. शाम ठीक ५ बजकर १७ मिनट पर नाथूराम गोडसे भीड़ को चीरकर बीच के रास्ते में निकल आया. मनु ने उसे रोकने का प्रयास किया किन्तु नाथूराम गोडसे ने मनु को धक्का दे दिया. गाँधी से दो फुट के फासले पर खड़े होकर उसने गाँधी पर तीन गोलियां दाग दीं. गोडसे ने जिस पिस्तौल से गोलियां दागी थीं, वह ९ एम.एम् की इटली निर्मित “बेरगट्टा ऑटोमेटिक गन” थी. यह कुल ६ इंच लम्बी थी और इसकी नली की लम्बाई केवल ३.७ इंच थी. इसमें एक बार में ७ गोलियां भरी जा सकती थीं. इससे निकली एक गोली एक सेकंड में ७५० फिट की दुरी तय करती थी. जबकि गोडसे और गाँधी के बीच की दुरी महज २-३ फिट ही थी. गोडसे ने यह गन २८ जनवरी १९४८ को ग्वालियर में गंगाधर दंडवते से महज ३०० रूपये में ली थी. गंगाधर दंडवते ने यह गन जगदीश प्रसाद गोयल से खरीदी थी.
गोली मारने के बाद गोडसे ने भागने की कोई कोशिश नहीं की थी. तुषार गाँधी के अनुसार “हत्या के बाद गोडसे हाथ ऊपर करके वहीँ खड़ा हो गया था. लेकिन उस स्थान पर पुलिस मौजूद नहीं थी. किसी ने भी गोडसे के पास जाने की हिम्मत नहीं की थी, लेकिन बिडला हॉउस के एक माली ने बाद में हिम्मत जुटाकर गोडसे से उसकी पिस्तौल छीनकर उसे पकड़ लिया था”. घटना के चार घंटे बाद ९ बजकर ४५ मिनट पर कनाट प्लेस निवासी नन्दलाल मेहता ने एफआईआर नम्बर ६८ दर्ज कराई थी. जिसमें उर्दू में १८ लाइनें लिखी थीं. लेकीन इस एफआईआर में अपराधी के सामने का खाना खाली छोड़ा गया था. गाँधी की हत्या के पश्चात नन्दलाल मेहता द्वारा दर्ज एफआईआर के अनुसार उनके मुख से निकला अंतिम शब्द “हे राम” था. लेकिन स्वतंत्रता सेनानी और गाँधी जी के निजी सचिव के तौर पर काम कर चुके वी कल्याणम का दावा था कि यह बात सच नहीं है. बताया जाता है कि गाँधी हत्या के समय वी. कल्याणम गाँधी जी के ठीक पीछे खड़े थे. कल्याणम के अनुसार गोली लगने के बाद गाँधी जी के मुहं से एक भी शब्द नहीं निकला था. यहाँ ये भी उल्लेखनीय है कि गाँधी जी की शारीरिक अवस्था और उनकी आयु को देखते हुए और ये जानते हुए भी कि जिस पिस्तौल से गोली चलाई गई उसकी एक गोली एक सेकंड में ७५० फुट की दुरी तय करती थी जबकि हत्यारे और गाँधी के बीच महज २-३ फिट की ही दूरी थी, हत्यारे ने एक के बाद एक ऑटोमेटिक गन से ताबड़तोड़ तीन गोलियां चलाई थीं. गाँधी जी की हत्या की जाँच के लिए गठित आयोग ने किसी से यह पूछताछ करने की कोई जहमत नहीं उठाई कि क्या वास्तव में गाँधी के मुहं से कोई शब्द निकला था? और यदि निकला था तो क्या यह शब्द “हे राम” था?. जिसके चलते आज तक भी ये कभी साबित नहीं किया जा सका कि अंतिम समय में गाँधी जी के मुहं से कोई शब्द भी निकला था और अगर निकला भी था तो क्या वह शब्द “हे राम” ही था. लेकिन गाँधी समर्थकों ने इसे खूब प्रचारित किया कि गाँधी जी ने अंतिम शब्द “हे राम” ही कहे थे.
मामले की प्रारम्भिक जांच तत्कालीन एसएचओ द्सौन्धा सिंह, पुलिस उपाधीक्षक जसवंत सिंह और कांस्टेबल मोबाब सिंह ने की थी. १५ मई १९४८ ईसवी के भारत सरकार के गजट में गाँधी जी की हत्या के साजिश में ९ अभियुक्तों के नाम बताये गए थे- नाथूराम गोडसे ( मुख्य अभियुक्त), शंकर क्रिस्टिया, गोपाल गोडसे, मदन लाल पाहवा, नारायण आप्टे, वीर सावरकर, विष्णु करकरे, दिगम्बर बडगे और परचुरे. इस केस के लिए आत्मचरण को विशेष न्यायाधीश नियुक्त किया गया था, अभियोजन पक्ष की ओर से बम्बई के एडवोकेट जनरल सी के दफ्तरी और उनके चार सहायक थे जबकि बचाव् पक्ष की ओर से हिन्दू महासभा के अध्यक्ष एल.वी. भोपलकर सामने आये. दिल्ली के लालकिले में इस केस की सुनवाई हुई. १० फरवरी १९४९ को अदालत ने अपना फैसला सुनाया. इस फैसले में वीर सावरकर को सबूत न मिलने के कारण बरी कर दिया गया. शंकर क्रिस्टिय को पहले आजीवन कारावास की सजा हुई किन्तु बाद में उच्च न्यायालय ने अपील करने पर छोड़ने का निर्णय लिया. दत्तात्रेय परचुरे अपील में बरी हो गए. मदन लाल पाहवा, विष्णु करकरे और गोपाल गोडसे को आजीवन कारावास की सजा हुई. दिगम्बर बडगे को सरकारी गवाह बनने के कारण छोड़ दिया गया. नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को १५ नवम्बर १९४९ ईसवी को फांसी दे दी गई. गोपाल गोडसे जो कि नाथूराम गोडसे के भाई थे, उनको १९६५ में रिहा कर दिया गया, २००५ में उनका निधन हो गया.
विशेष – यह लेख “भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन” (ज्ञान सदन प्रकाशन) जिसके (लेखक मुकेश बरनवाल) की पुस्तक में से सम्पादित किये गए कुछ अंश पर आधारित है