मनु हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के प्रथम पुरुष थे. वैदिक साहित्य से लेकर प्राचीन ग्रंथों तक भगवान मनु आदिमानव के रूप में जाने जाते हैं. वैदिक साहित्य और शतपथ ब्राह्मण में मनु को सूर्य का पुत्र और मानव जाति का पथ प्रदर्शक बताया गया है. प्रथम मनु का नाम “स्वयंभू मनु” था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी “शतरूपा”. ये स्वयं भू (अर्थात होना) ब्रह्म द्वारा प्रकट होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये. इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की संतानों से संसार के समस्तजनों की उत्पत्ति हुई. मनु की सन्तान होने के कारण ही वे “मानव” या “मनुष्य” कहलाये. सभी भाषाओँ के मनुष्य वाची शब्द मैन, मनुज, मानव इसी शब्द मनु की देन हैं. मनु शब्द का मूल “मन” धातु से पैदा हुआ है. “मानव” का हिंदी में अर्थ है वह जिसमें मन, जड़ और प्राण से कहीं अधिक सक्रिय है. मनुष्य में मन की शक्ति है, विचार करने की शक्ति है, इसलिए उसे मनुष्य कहते हैं.
राजर्षि मनु वेदों के बाद सर्वप्रथम धर्म प्रवक्ता, मानव मात्र के पूर्वज, राजधर्म और विधि के सर्वप्रथम प्रणेता थे. हिन्दू धर्म के अनुसार कुल १४ मनु हुए हैं, १. स्वयम्भुव मनु २. स्वरोचिष मनु ३. उत्तम मनु ४. तामस मनु या तापस मनु ५. रैवत मनु ६. चाक्षुषी मनु ७. वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु ८. सावर्णि मनु ९. दक्ष सावर्णि मनु १०. ब्रह्म सावर्णि मनु ११. धर्म सावर्णि मनु १२. रूद्र सावर्णि मनु १३. रौच्य मनु या देव सावर्णि मनु १४. इंद्र सावर्णि मनु या भौत मनु
एक-एक मनु का लाखों वर्षों का समय होता है अर्थात कुछ लाख वर्ष खंड के स्वामी एक मनु होते हैं फिर दूसरा उसके बाद तीसरे आदि मनु उस समय के अधिपति होते हैं. इसी क्रम में इस समय के मालिक सातवें अर्थात वैवस्वत मनु हैं. इसलिए यह सातवाँ मन्वन्तर हुआ जिसमें हम लोग रह रहे हैं. इसे वैवस्वत मन्वन्तर भी कहते हैं. यहाँ यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि महाराज मनु एक क्षत्रिय थे.
महाभारत में ८ मनुओं का उल्लेख है. शतपथ ब्राह्मण में मनु को श्राद्धदेव कहकर सम्बोधित किया गया है. श्रीमद भागवत में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रृद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारम्भ माना गया है. श्वेत वराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है. महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीप पृथ्वी पर राज्य किया. इन्हीं मनु महाराज ने मनु स्मृति नामक ग्रन्थ की रचना की, जो आज अपने मूलरूप में कहीं उपलब्ध नहीं है. अंत समय में महाराज मनु अपना समस्त राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकांत में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नेमिषार्णय तीर्थ चले गए.
“स्मृति” का अर्थ है याददाश्त, अर्थात प्राचीन काल में लेखक अपनी याददाश्त से पुराने नियमों का संकलन कर देते थे, उसे ही स्मृति कहा जाता था. हिन्दू धर्म में ऐसी लगभग ४० स्मृतियाँ हैं, स्मृतियों का सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है. महर्षि पराशर, अत्रि, हरिस, उशनस, अंगिरस, यम, उमव्रत, कात्यान, व्यास, दक्ष, शरतात्य, गार्गेय, बृहस्पति, नारद, विष्णु, याज्ञवल्क्य आदि की स्मृतियाँ भी प्राचीन भारत की सामाजिक और धार्मिक अवस्थाओं के विषय में बतलाती हैं. इनमें से एक मनुस्मृति भी है. मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्मशास्त्र है. इसे मानव-धर्म-शास्त्र, मनुसहिंता आदि नामों से भी जाना जाता है. यह उपदेश रूप में है जो महाराज मनु द्वारा ऋषियों को दिया गया. इसके बाद के धर्मग्रन्थकारों ने मनुस्मृति को एक सन्दर्भ के रूप में स्वीकारते हुए इसका अनुसरण किया है. धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी, जैसे दार्शनिक भी प्रमाण-स्वरूप इस ग्रन्थ को उद्घृत करते हैं. परम्परानुसार यह स्मृति स्वयम्भू मनु द्वारा रचित है. मनुस्मृति से यह भी पता चलता है कि स्वयंभू मनु के मूलशास्त्र का आश्रय का महर्षि भृगु ने उस स्मृति का उपवृहन किया था. जो प्रचलित मनु स्मृति के नाम से प्रसिद्द है.
वेदों के बाद यदि किसी ग्रन्थ की भारत और भारत से बाहर विदेशों में सर्वत्र अत्यधिक प्रतिष्ठा है, तो वह ग्रन्थ मनुस्मृति है. राजर्षि स्वयंभू मनु वेदों के बाद सर्वप्रथम धर्म प्रवक्ता, मानव मात्र के पूर्वज, राजधर्म और विधि के सर्वप्रथम प्रणेता थे. स्वयंभू मनु इस महान ग्रन्थ मनुस्मृति के प्रवक्ता हैं. प्रवक्ता इसलिए कि मनुस्मृति मूलतः प्रवचन है, जिसे मनु के प्रारम्भिक शिष्यों ने संकलित कर एक विधिवत शास्त्र या ग्रन्थ का रूप दिया. मनुस्मृति में कुल १२ अध्याय और २६८५ श्लोक हैं. डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने मनुस्मृति का विस्तृत और गहन अध्ययन किया है. जिसमें प्रत्येक श्लोक का भिन्न-भिन्न रीतियों से परिक्षण और पृथक्करण किया है ताकि प्रक्षिप्त श्लोकों को अलग से जांचा जा सके. उन्होंने मनुस्मृति के २६८५ में से १४७१ श्लोक प्रक्षिप्त (मिलावटी) पाये हैं, स्वयं बाबा साहेब भी मनुस्मृति को प्रक्षिप्त (मिलावटी) मानते थे. बहुत से पाश्चात्य विद्वान् जैसे मैकडोनल, कीथ, बुलहर इत्यादि भी मनुस्मृति में मिलावट मानते हैं.
सभी इतिहासकार यह मानते हैं कि मनुस्मृति की रचना दूसरी शताब्दी में हुई, तब तो आदि पुरुष मनु ने इसे लिखा नहीं. दूसरी शताब्दी में शुंग कालीन राज में मनु नाम का कोई व्यक्ति हुआ जिसने इसे लिखा. बाबा साहेब अम्बेडकर के अनुसार- “मनुस्मृति १८५ ईसवी पूर्व के बाद अस्तित्व में आई और ये भी कि तब तक अस्पृश्यता नहीं थी.”(अम्बेडकर-अछूत कौन थे? अध्याय १६). फाहियान और ह्वेनसांग ने भी मनुस्मृति का जिक्र नहीं किया और न ही अस्पृश्यता के बारे में लिखा.
संकलन : मनोज चतुर्वेदी शास्त्री