सूत्रों के हवाले से ख़बर है कि कल 12 सितंबर को बिजनौर में ब्राह्मणों का “महामिलन” होने जा रहा है जिसमें केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र “टेनी” पधार रहे हैं। अजय कुमार मिश्र खीरी लोकसभा से सांसद हैं और 2022 में पश्चिमी उत्तरप्रदेश के ब्राह्मण वोटों को भाजपा के पक्ष में एकजुट करने का दारमोदार सांसद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र “टेनी” के कंधों पर डाला गया है।
इससे पहले बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र भी बिजनौर का दौरा करके जा चुके हैं। उन्हें भी बसपा पार्टी हाईकमान की ओर से ब्राह्मणों को बसपा के पाले में लाने एक दायित्व सौंपा गया है। अब केवल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के किसी ब्राह्मण नेता के आगमन की प्रतीक्षा है।
सही पूछिये तो जैसे कूड़ी के भाग्य 12 साल में एक बार जागते हैं, ठीक वैसे ही ब्राह्मणों के भाग्य भी 5 साल में एक ही बार जागते हैं। इसको कुछ इस तरह समझिये
*सुना है ब्राह्मणों की थाली में पुलाव आ गया है।*
*लगता है फिर से कोई चुनाव आ गया है।।*
उसके बाद तो ब्राह्मण केवल फुटबॉल बनकर रह जाता है, इस कार्यालय से उस कार्यालय और इस नेता से उस नेता तक, रातदिन चक्कर काटता है।
अब ख़बर मिली है कि कल होने वाले “ब्राह्मण महामिलन” में पुरोहितों के लिये वेतन और सम्मान निधि की मांग उठाई जाएगी। कोई समझदार इंसान इन लोगों से पूछे कि पिछले 5 वर्षों में भाजपा ने मदरसों को हाईटेक करने के लिए सारे जतन किये, लेकिन क्या एक बार भी किसी ब्राह्मण नेता ने मंदिरों और संस्कृत विद्यालयों को हाईटेक करने के लिए आवाज़ उठाई? हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार कहा कि वह मदरसों के छात्रों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर देखना चाहते हैं। लेकिन कभी उन्होंने यह कहने का साहस किया कि वह भारतवर्ष के तमाम संस्कृत विद्यार्थियों और पुरोहितों के एक हाथ में वेद और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर देखना चाहते हैं? एससी-एसटी एक्ट पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलटने वाली मोदी सरकार ने कभी वैदिक ब्राह्मणों को अलग से आरक्षण करने की मांग पर विचार करने की ज़हमत उठाई है। कभी श्री मोदी-योगी सरकार ने ब्राह्मण समाज के सम्मान, सुरक्षा और उनके आर्थिक विकास हेतु कोई ठोस कदम उठाए हैं? गोरक्षा के लिए हथियार उठाने वालों ने कभी किसी ब्राह्मण की रक्षा के लिए कोई दृढ़ संकल्प किया है? इन सवालों का जवाब किसी के भी पास नहीं है और कभी होगा भी नहीं। क्योंकि ब्राह्मण स्वयं एकजुट होकर अपने ही समाज की सुरक्षा, सम्मान और आर्थिक उन्नति के विषय में नहीं विचार करता है तो फिर बाकी लोगों को क्या कहा जा सकता है?
पुरोहितों को वेतन और सम्मान निधि पर चर्चा करने से पहले यह भी आवश्यक है कि भारतवर्ष के समस्त मंदिरों को सरकारी अधिग्रहण से मुक्ति मिले। जिसपर आजतक किसी ब्राह्मण संगठन ने कोई सार्थक प्रयास नहीं किया और न ही किसी सरकार ने कोई पहल की है।
“ब्राह्मण महामिलन” नाम तो दे दिया गया है, परन्तु प्रश्न यह भी है कि ब्राह्मणों को एकजुट कौन करेगा? ब्राह्मणों को एकजुट कर, उन्हें एक मंच पर लाना ठीक ऐसा ही है जैसे रेत को मुट्ठी में करना।
ब्राह्मण का सबसे बड़ा विरोधी भी ब्राह्मण ही है। अगर ब्राह्मण एकजुट हो जाये और एकमत होकर किसी एक दिशा में चलने लगे तो निश्चित रूप से वह समस्त विश्व का नेतृत्व कर सकता है। परन्तु बिल्ली के गले में घण्टी बांधेगा कौन? यहां तो सब चूहे बने बैठे हैं।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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