12 सितंबर को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कुशीनगर में पूर्ववर्ती सरकारों की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाते हुए कथिततौर पर कहा था, “अबसे पहले “अब्बाजान” कहने वाले गरीबों की नौकरी पर डाका डालते थे। पूरा परिवार झोला लेकर वसूली के लिए निकल पड़ता था। “अब्बाजान” कहने वाले राशन हज़म कर जाते थे। राशन नेपाल और बांग्लादेश पहुंच जाता था। आज जो गरीबों का राशन निगलेगा, वह जेल चला जाएगा।”
उधर स्वयंभू किसान नेता श्री राकेश टिकैत ने बागपत में दिए अपने एक बयान में असदुद्दीन ओवैसी साहब को कथिततौर पर भाजपा का “चचाजान” बताया है।
इस “अब्बाजान” और “चचाजान” के बयानों के बीच कुछ “भाईजान” फंसते नज़र आ रहे हैं। इन “भाईजानों” को श्री योगी का “अब्बाजान” वाला बयान हज़म नहीं हो रहा है, और इन लोगों ने सोशल मीडिया पर #hamare abbahan नाम से एक ट्रेन्ड चला रखा है।
श्री योगी के “अब्बाजान” वाले बयान को लेकर बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अहियापुर थाना क्षेत्र के भीखनपुर निवासी तमन्ना हाशमी ने श्री योगी पर अपमानजनक टिपण्णी करने का आरोप लगाया है और साथ ही उन्होंने कहा कि सीएम की इस टिपण्णी से समुदाय विशेष के लोग अपमानित महसूस कर रहे है. उल्लेखनीय है कि मुजफ्परपुर सीजेएम कोर्ट में सीएएम योगी के खिलाफ धारा 295, 295 (क) 296, और 511 के तहत परिवाद दर्ज कराया गया है. याचिका में यह आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकारों की तुलना करते हुए सीएम योगी ने एक जाति विशेष को टारगेट करते हुए कहा कि पूर्व की सरकार में अब्बाजान कहने वाले लोग गरीबों का राशन हजम कर लेते थे, लेकिन अब उनके राज्य में यह बंद हो गया है. इसी को लेकर तमन्ना हाशमी ने परिवाद दायर किया है. उनका कहना है कि सूबे के एक बड़े संवैधानिक पद पर बैठे सीएम का यह बयान देश को तोड़ने वाला है.
केवल “अब्बाजान” कहने मात्र से किसी जाति या वर्ग विशेष का अपमान कैसे हो सकता है। क्या अब्बाजान इतना असंसदीय, असंवैधानिक और अपमानजनक शब्द है? प्रश्न यह भी है कि अगर श्री योगी ने “अब्बाजान” के स्थान पर फादर या डैडी शब्द का प्रयोग किया होता तो क्या तब भी इतना हंगामा मचाया जाता। फिर यदि “अब्बाजान” शब्द अपमानित करने वाला है तो फिर “चचाजान” सम्मानित शब्द कैसे हो गया?? यदि कोई यह कहे कि महात्मा गांधी हमारे राष्ट्र के अब्बा थे, तो क्या यह आपत्तिजनक होगा? जब हम पिता को अंग्रेजी में फादर कहते हैं तो उर्दू में अब्बाजान कहने में आपत्ति क्यों है?
यह कहा जाता है कि श्री मुलायम सिंह यादव अपने आपको “मुल्ला” मुलायम अथवा “मौलाना” मुलायम कहलवाना अपनी शान समझते थे। समाजवादी पार्टी ने स्पष्ट रूप से एक बार कहा था कि “केवल मुस्लिम बेटियां ही हमारी बेटियां हैं”। उधर पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि “इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है”। कांग्रेस पार्टी के “युवराज” ने कथितरूप से कहा कि कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है। तब किसी “भाईजान” ने किसी न्यायालय में कोई परिवाद दायर क्यों नहीं किया था? तब इन भाईजानों को देश टूटता हुआ नज़र क्यों नहीं आया? तब किसी जाति या धर्म का अपमान क्यों नहीं हुआ था?? जब उद्दंड बच्चे अपने “अब्बाजान” के पक्ष में नारे लगाते हुए “पाकिस्तान जिंदाबाद” कहते हैं, तब कोई क्यों नहीं बोलता?
जो लोग खुलकर
भरी सभाओं में “अल्लाह हू अकबर” बोलते हैं, या फिर जालीदार टोपियां पहनकर बिना रोज़े रखे रोजेदारों के साथ बैठकर इफ्तारी करते हैं, वह “अब्बाजान” ही कहे जाएंगे। इसमें बुरा क्या मानना है। यह तो उनके लिये गौरव की बात होनी चाहिये।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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