नवम्बर, २०१७ में आर्कबिशप ने कहा था कि “अगर राष्ट्रवादी चुनाव जीतते हैं तो देश की पंथनिरपेक्षता एवं लोकतान्त्रिक मूल्य खतरे में पड़ जायेंगे, मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा, लोगों का संविधानिक अधिकार कुचला जायेगा. अल्पसंख्यक, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग असुरक्षित हो जायेगा.” ९ फरवरी २०१८ को अंगामी बैप्टिस्ट चर्च कौंसिल के कार्यकारी निदेशक डा. वी अट्सी दोलीई ने आरोप लगाया था कि हिदुत्ववादी ताकतें प्रलोभन देकर नागा समाज में प्रवेश कर रही हैं”. गुजरात चुनाव के दौरान गुजरात के आर्कबिशप थॉमस मैकवा ने के पत्र जारी किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि “गुजरात चुनाव में अगर राष्ट्रवादी जीतते हैं तो वे देश को गलत रास्ते पर ले जायेंगे”.
अब जरा कुछ तस्वीर के दुसरे रुख को भी देख लीजिये- १९७१-१९८१ में ईसाई जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय स्तर पर १९.२ प्रतिशत और गुजरात में २१.३६ प्रतिशत थी. १९८१-९१ में यह दर राष्ट्रीय स्तर पर १७ प्रतिशत और गुजरात में ३६.९६ प्रतिशत हो गई. १९९१-२००१ में वृद्धि दर राष्ट्रीय स्तर पर २२.१ प्रतिशत तो गुजरात में ५६.३० प्रतिशत थी. २००१-२०११ में राष्ट्रीय स्तर पर ईसाई जनसंख्या वृद्धि दर ११.२९ हो गई. १९९१ से २००१ की जनगणना के मुकाबले २००१ से २०११ की गणना में ईसाई जनसंख्या वृद्धि दर हिन्दू जनसंख्या वृद्धि दर से कम हो गई.
‘लाइट आफ लाइफ’ कैथोलिक पत्रिका के 1964 के जुलाई अंक में ईसाई नवयुवकों को परामर्श देते हुए निर्देश किया गया-’ईसाई छात्रों तथा स्नातकों का यह कर्त्तव्य है कि वे ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखा करें और इस विषय में वे धर्म-निरपेक्ष नीति वाली पत्र-पत्रिकाओं का लाभ उठा सकते हैं। किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वे शुरू-शुरू में ही अपने लेखों में ईसाईयत का प्रचार करने लगें। अच्छा तो यह होगा कि पहले वे सामान्य लेख लिखकर आगे चलकर के पत्रों में खुलकर ईसाई विचारधारा का प्रचार करें।’
२०१५-१६ में विदेशों से सबसे ज्यादा फंडिंग पाने वाले भारतीय एनजीओ में ईसाई मिशनरी सबसे आगे थीं. केरल की अयाना चेरीटेबल ट्रस्ट रही. जिसे ८२६ करोड़ रुपये की फंडिंग मिली.