आज 8 फरवरी है, यानी दिल्ली चुनाव में मतदान की तारीख, आज दिल्ली के मतदाता सभी पार्टियों का भाग्य ईवीएम में बंद कर देंगे। लेकिन हमें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है कि चुनाव कौन जीतेगा, बल्कि यह देखना ज़्यादा दिलचस्प होगा कि शाहीन बाग़ की जनता के भाग्य में अभी और कितने दिन रास्ते बदलकर सफ़र करना लिखा है?, कब तक बच्चे अपने घरों पर बैठे रहेंगे?, कब तक एम्बुलेंस रोकी जाती रहेंगी?, कब तक लोग अपने व्यापार, अपनी रोजी-रोटी के साधनों को बर्बाद होते देखते रहेंगे?
यह भी देखना है कि शाहीन बाग़ का धरना किस या किन पार्टियों द्वारा प्रयोजित किया गया है, साथ ही यह भी देखना होगा कि केंद्र सरकार और नई दिल्ली सरकार इस धरने से कैसे निपटती हैं? क्योंकि दिल्ली सरकार बनते ही पुलिस-प्रशासन केंद्र सरकार के हाथों में आ जायेगा, हालांकि अभी तक यह चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों का पालन कर रहा है।
अब देखना यह है कि मोदी सरकार गांधीवाद को अपनाएगी यानी बातचीत के ज़रिए मसले को हल करने का प्रयास करेगी, अथवा इंदिरा गांधी के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए, “डंडा तंत्र” द्वारा इसको खाली करवाने का प्रयास करेगी।
वैसे *अगर सच्चाई देखी जाए तो अब शाहीन बाग़ भाजपा के गले में हड्डी की तरह फंस गया है, न निगले बन रहा है और न ही उगले। क्योंकि अगर भाजपा CAA पर एक भी कदम पीछे हटाती है तो उसके लिए यह थूककर चाटने वाली स्थिति होगी क्योंकि भाजपा के दिग्गज नेता और देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह सार्वजनिक रुप से यह बयान दे चुके हैं कि “नागरिकता संशोधन क़ानून पर केंद्र सरकार एक इंच भी पीछे नहीं हटेगी”। कदम पीछे हटाते ही पूरे देश में ही नहीं वरन पूरी दुनिया में भाजपा की किरकिरी हो जाएगी और देश के 100 करोड़ हिंदुओं के साथ-साथ पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों का विश्वास भी भाजपा से उठ जाएगा। और यदि वह अपनी बात पर अड़ी रहती है तो शाहीन बाग़ को खाली कराना उसके लिए लोहे के चने चबाने जैसा होगा। क्योंकि अभी तक जो हमारा तजुर्बा रहा है, वह यही कहता है कि मोदी जी गांधीवाद को नहीं छोड़ेंगे, और शाहीन बाग़ जिन्नावाद से पीछे नही हटेगा।